चिकित्सा शिक्षा विभाग के ताजा फरमान से नाराज चिकित्सक, एसएमएस मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों के अधीक्षकों ने दिया सामूहिक इस्तीफा
क्या है विवादित आदेश ?
चिकित्सा शिक्षा विभाग के हालिया आदेशों के विरोध में एसएमएस मेडिकल कॉलेज और जुड़े अस्पतालों के अधीक्षकों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। आदेश में प्रिंसिपल और अधीक्षक की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक, क्लीनिकल काम 25% तक सीमित और वरिष्ठता संबंधी नए नियम लागू किए गए हैं। राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन ने इसे असंवैधानिक और शिक्षकों के अधिकारों पर हमला बताया।
जयपुर। चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से हाल ही में मेडिकल कॉलेज और उनसे जुड़े अस्पतालों में प्रिंसिपल और अधीक्षक के पदों पर लगे चिकित्सकों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक के आदेश का अब खुलकर विरोध शुरू हो गया है। इसके विरोध में आज सुबह एसएमएस मेडिकल कॉलेज और उनसे जुड़े अस्पतालों के अधीक्षकों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया है। इन अधीक्षकों ने एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी को एक साथ इस्तीफे सौंपे। इससे पहले सरकार के हालिया आदेश का राजस्थान मेडिकल कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन ने विरोध किया था। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. धीरज जैफ ने बताया कि चिकित्सा विभाग ने जो आदेश जारी किया है वो पूरी तरह से गैर वाजिब है। इसके पीछे की मंशा किसी को पता नहीं है। यह आदेश वरिष्ठ चिकित्सकों के अधिकारों पर हमला है। हम इन आदेशों को गंभीर आपत्ति के साथ अस्वीकार करते हैं। किसी भी पद पर रहने की अधिकतम आयु 57 वर्ष तय करना असंवैधानिक है, जबकि रिटायरमेंट 65 वर्ष है। इन आदेशों से लगता है कि सरकार राज्य से बाहर के डॉक्टरों को लाने की तैयारी कर रही है। यह राजस्थान के शिक्षकों के हितों पर सीधा प्रहार है। इस आदेश से सीनियर प्रोफेसरों की वरिष्ठता और योग्यताएं प्रभावित होंगी। प्रिंसिपल और अधीक्षक को क्लिनिकल व यूनिट हेड की भूमिका से हटाना शैक्षणिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाएगा। गौरतलब है कि राजस्थान टीचर्स मेडिकल एसोसिएशन ने दो दिन पहले चेताया था कि सरकार आदेश वापस लें, वरना अधीक्षक पद पर बैठे सभी चिकित्सा सामूहिक इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद आज कांवटिया, जे के लोन, गणगौरी समेत तमाम अस्पतालों के अधीक्षकों ने इस्तीफा सौंप दिया।
क्या है विवादित आदेश ?
11 नवंबर को जारी आदेशों में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कई बड़े बदलाव किए हैं। प्रिंसिपल और अधीक्षक निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे। डॉक्टर सीधे प्रिंसिपल पद पर नियुक्त नहीं हो सकेंगे। प्रिंसिपल पद के लिए 3 वर्ष अधीक्षक/अतिरिक्त प्रिंसिपल और 2 वर्ष विभागाध्यक्ष का अनुभव अनिवार्य है। प्रिंसिपल चयन के लिए 4 सदस्यीय उच्चस्तरीय कमेटी बनाई गई है। प्रिंसिपल और अधीक्षक को क्लीनिकल कार्य केवल 25% तक सीमित किया गया है. दोनों पदों पर नियुक्त व्यक्ति को यूनिट हेड या एच ओ डी नहीं बनाया जाएगा।

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