डॉ. प्रभाकर नारायण पाठक ने पार ब्रह्म परमेश्वर और डॉ. नाहर ने प्रस्तुत किया दक्षिण भारतीय राग
अध्ययन से ही मिलेगी नाट्य शास्त्र की गहरी समझ
हमारी आज की पीढ़ी पढ़ने से कतराती है, जबकि जितना अधिक हम अध्ययन करेंगे, उतना ही नाट्यशास्त्र के गहरे अर्थों और महत्व को समझ पाएंगे।
जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से इंटरनेशनल ध्रुवपद धाम ट्रस्ट के संयोजन में आयोजित दो दिवसीय ध्रुवपद-धरोहर समारोह के दूसरे दिन राजस्थान की समृद्ध ध्रुवपद परंपरा पर गहन विमर्श हुआ। यह कार्यक्रम पद्मश्री पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग को समर्पित रहा। संवाद-प्रवाह से कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसमें ध्रुवपद गायिका प्रो. मधु भट्ट तैलंग और ध्रुवपद गायक डॉ. श्याम सुंदर शर्मा ने राजस्थान में ध्रुवपद के संरक्षण और विकास पर अपने विचार साझा किए। संवाद का संचालन साहित्यकार राजेश आचार्य ने किया। इस अवसर पर डॉ. शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ढूंढाड़ क्षेत्र की रामलीला और प्रचलित संगीत रचनाएं का विमोचन किया गया। इसके बाद दिल्ली के बिहार घराने के ध्रुवपद गायक डॉ. प्रभाकर नारायण पाठक ने अपने सुरीले और सधे हुए गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने राग यमन और यमन कल्याण में चीतल तथा सूलताल में पार ब्रह्म परमेश्वर और शंकर शिव पिनाक धर ध्रुवपद प्रस्तुत किए। राग बागेश्वरी एवं राग बसंत में धमार नार चली आवत और सूलताल में नवल बसंत नवल वृंदावन की विविध लयकारी के साथ प्रभावशाली प्रस्तुति दी। समारोह में भागलपुर मिश्रा घराने के विख्यात बेला वादक पं. डॉ. संतोष नाहर ने अपने उत्कृष्ट वादन से संगीत प्रेमियों को अभिभूत किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय राग वाचस्पति से कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
अध्ययन से ही मिलेगी नाट्य शास्त्र की गहरी समझ : भार्गव
जवाहर कला केंद्र की ओर से केन्द्र के कृष्णायन सभागार में आयोजित नाट्यशास्त्र पर व्याख्यान एवं परिचर्चा के दो दिवसीय कार्यक्रम मंगलवार को संपन्न हुआ, जिसमें वरिष्ठ नाट्य गुरु भारतरतन भार्गव व संस्कृति कर्मी डॉ. राजेश कुमार व्यास ने नाट्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों व तत्वों पर परिचर्चा करते हुए अपने विचार प्रस्तुत किए। परिचर्चा के दौरान भार्गव ने नाटक की बदलती शैलियों पर प्रकाश डाला और बताया कि पाश्चात्य शैली से प्रभावित नाटकों में नाट्यशास्त्र के मूल तत्वों की कमी देखी जाती है। भार्गव ने कहा कि मुगलकाल और ब्रिटिश शासन के समय नाट्यशास्त्र को भारी नुकसान हुआ, जिससे पारंपरिक नाट्य कला की निरंतरता बाधित हुई। हमारी आज की पीढ़ी पढ़ने से कतराती है, जबकि जितना अधिक हम अध्ययन करेंगे, उतना ही नाट्यशास्त्र के गहरे अर्थों और महत्व को समझ पाएंगे।
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