रेल सुरक्षा का स्वर्णकाल : रिकॉर्ड गिरावट वाली दुर्घटनाएं, तीन गुना बढ़ा बजट और तकनीक से सुरक्षित हुआ देश का रेल नेटवर्क
वैज्ञानिक पद्धतियों ने ट्रैक सुरक्षा को नई मजबूती दी
भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुरक्षा को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाते हुए पिछले एक दशक में अभूतपूर्व सुधार दर्ज किए हैं। इसके परिणामस्वरूप रेल दुर्घटनाओं में रिकॉर्ड गिरावट आई है। जहां 2004-14 के दौरान औसतन 171 परिणामी रेल दुर्घटनाएं प्रतिवर्ष होती थीं, वहीं 2025-26 में अब तक यह संख्या घटकर मात्र 11 रह गई है—जो भारत की रेलवे सुरक्षा यात्रा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
जयपुर। भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुरक्षा को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाते हुए पिछले एक दशक में अभूतपूर्व सुधार दर्ज किए हैं। इसके परिणामस्वरूप रेल दुर्घटनाओं में रिकॉर्ड गिरावट आई है। जहां 2004-14 के दौरान औसतन 171 परिणामी रेल दुर्घटनाएं प्रतिवर्ष होती थीं, वहीं 2025-26 में अब तक यह संख्या घटकर मात्र 11 रह गई है, जो भारत की रेलवे सुरक्षा यात्रा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। सुरक्षा बढ़ाने के लिए रेलवे ने वित्तीय और तकनीकी दोनों स्तरों पर व्यापक निवेश किया है। सुरक्षा बजट 2013-14 के ₹39,463 करोड़ से बढ़कर 2025-26 में ₹1,16,470 करोड़ तक पहुंच गया है, जो लगभग तीन गुना वृद्धि है। कोहरे से बचाव के उपकरणों की संख्या 2014 के 90 से बढ़कर 2025 में 25,939 हो गई है। यह 288 गुना की बढ़ोतरी है, जो अत्याधुनिक तकनीक को अपनाने की दिशा में बड़ा कदम है। रेलवे ट्रैक और स्टेशन स्तर पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। पिछले चार महीनों में 21-21 स्टेशनों पर केंद्रीकृत इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग और ट्रैक सर्किटिंग का कार्य पूरा किया गया है। अब तक 6,656 स्टेशनों पर आधुनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम और 6,661 स्टेशनों पर ट्रैक सर्किटिंग की व्यवस्था स्थापित की जा चुकी है। लेवल क्रॉसिंग गेटों पर सुरक्षा मजबूत करने हेतु 10,098 स्थानों पर इंटरलॉकिंग लागू की गई है।
तोड़फोड़ और छेड़छाड़ से निपटने के लिए रेलवे प्रशासन राज्य पुलिस, जीआरपी, आरपीएफ और केंद्रीय एजेंसियों के साथ सक्रिय समन्वय बनाए हुए है। संवेदनशील क्षेत्रों में संयुक्त गश्त, विशेष खुफिया इकाइयों की तैनाती और स्थानीय निवासियों में जागरूकता बढ़ाकर सुरक्षा को बहुस्तरीय बनाया गया है। तकनीकी उन्नयन के तहत ‘कवच’ जैसी अत्याधुनिक एंटी-कोलिजन प्रणाली को दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर सफलतापूर्वक लागू किया गया है और 15,500 आरकेएम पर इस तकनीक का विस्तार जारी है। इसके अतिरिक्त, आधुनिक ट्रैक संरचना, लंबी रेल पटरियाँ, अल्ट्रासोनिक परीक्षण, ओएमएस व टीआरसी आधारित निगरानी जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों ने ट्रैक सुरक्षा को नई मजबूती दी है।
वेल्ड विफलताएँ और रेल दरारों में 90% तक आई कमी, अनमैन्ड लेवल क्रॉसिंग का पूर्ण उन्मूलन, और एलएचबी कोचों के निर्माण में 18 गुना वृद्धि जैसे परिणाम रेलवे की सुरक्षा प्रतिबद्धता को प्रमाणित करते हैं। इन सुधारों के साथ भारतीय रेलवे अब दुनिया के सुरक्षिततम रेल नेटवर्क में अपनी जगह मजबूती से स्थापित कर रहा है।

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