ग्रीन हाईड्रोजन बनाने के प्रशिक्षण के लिए आईएएस टी. रविकांत भी जाएंगे जर्मनी

ग्रीन हाईड्रोजन बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए भारत से जर्मनी जाएगा एक दल

ग्रीन हाईड्रोजन बनाने के प्रशिक्षण के लिए आईएएस टी. रविकांत भी जाएंगे जर्मनी

यह दल 5 दिन का प्रशिक्षण लेकर लौटेगा। इसमें केन्द्र सरकार के अधिकारियों के साथ गुजरात, केरल और मध्यप्रदेश से भी एक-एक अधिकारी है।

जयपुर। देश में अक्षय ऊर्जा से ग्रीन हाईड्रोजन बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए भारत सरकार का एक दल अगले सप्ताह जर्मनी जाएगा। इस दल में राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम के अध्यक्ष टी. रविकांत भी हैं। यह दल 5 दिन का प्रशिक्षण लेकर लौटेगा। इसमें केन्द्र सरकार के अधिकारियों के साथ गुजरात, केरल और मध्यप्रदेश से भी एक-एक अधिकारी है। देश में कई राज्यों में अक्षय ऊर्जा से ड्रीम हाईड्रोजन बनाने की अपार संभावनाएं हैं। हाईड्रोजन को सभी उद्योगों में प्रयोग लिया जाता है। फिलहाल यह कोयला और बिजली से बनाया जाता है, जो काफी महंगा है। ग्रीन हाईड्रोजन एक तरह की स्वच्छ ऊर्जा है, जो रीन्युबल एनर्जी जैसी सोलर पावर का इस्तेमाल कर पानी को हाईड्रोजन और ऑक्सीजन में बांटने से पैदा होती है। बिजली जब पानी से होकर गुजारी जाती है तो हाईड्रोजन पैदा होती है। ये हाईड्रोजन कई चीजों के लिए ऊर्जा का काम कर सकती है। भारत में हाईड्रोजन की कीमत 340 से 400 रुपए प्रति किलो है। ग्रीन हाईड्रोजन का इस्तेमाल इंडस्ट्री में तभी बढ़ेगा, जब इसकी कीमत 150 रुपए प्रति किलो तक पहुंचेगी। रिफाइनरी, फर्टिलाइजर और स्टील उद्योग हाईड्रोजन के सबसे बड़े उपभोक्ता है। इन उद्योगों के अलावा बिजली उत्पादन, हाईड्रोजन स्टोरेज और मोबिलिटी इंडस्ट्री (बैटरी से चलने वाली कारों, रेल, ट्रक, बस और जलपोत) में भी सस्ते हाईड्रोजन उत्पादन को लेकर आरएंडडी गतिविधियां बढ़ गई हैं। 

नेशनल हाईड्रोजन मिशन का किया ऐलान
भारत ने इस साल फरवरी में नेशनल हाईड्रोजन मिशन का ऐलान किया था। इसके तहत भारत को 2030 तक हर साल पचास लाख टन ग्रीन हाईड्रोजन बनाने में सक्षम बनाना है। ग्रीन हाईड्रोजन बनाने के लिए पानी और सस्ती बिजली की जरूरत है। भारत के पास ये दोनों संसाधन मौजूद हैं। भारत के पास काफी लंबा समुद्र तट है और भरपूर सूरज की रोशनी भी सोलर बिजली और समुद्र के पानी ग्रीन हाईड्रोजन बनाने में काफी मददगार साबित हो सकता है। भारत ने तो एक कदम आगे बढ़ कर ग्लोबल ग्रीन हाईड्रोजन हब बनने का मंसूबा बांध रखा है। 

 

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