राजस्थान में आदिवासी क्षेत्र की 'बीएपी' बनी तीसरे नम्बर की पार्टी, कांग्रेस के कमजोर होने से हुआ पार्टी का उदय
कांग्रेस पार्टी की वजह से तीसरे मोर्चे के दलों में बना उतार चढ़ाव
लिहाजा राजस्थान में क्षेत्रीय दलों का वजूद भाजपा से अधिक कांग्रेस पर ही ज्यादा निर्भर रहा है।
जयपुर। राजस्थान में चुनाव के वक्त तीसरे मोर्चे के दल हमेशा राजस्थान में अपनी सरकार बनाने का दावा करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद इन दलों के खुद केसमीकरण बदल जाते हैं। खास बात यह है कि इन दलों के समीकरण बदलने में सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी की भूमिका रहती है।
राजस्थान में तीसरे मोर्चे के दलों में बीएसपी, आप, आरएलपी, बीएपी, लोजपा, इनेलो आदि पार्टियां मुख्य रूप से सक्रिय हैं, लेकिन हर चुनाव में इनके समीकरण अलग होते हैं। इस बार आदिवासी क्षेत्र की बीएपी पार्टी तीसरे प्रमुख दल के रूप में उभरी है। इससे पहले दो विधानसभा चुनाव में बीएसपी पार्टी उभरी थी। आरएलपी पार्टी का वजूद भी सामने आया, लेकिन यह भी ज्यादा लंबी नहीं चल सकी। इस बार आदिवासी क्षेत्रों में बीएपी पार्टी ने 4 विधायक और एक सांसद सीट जीतकर भाजपा और कांग्रेस के बाद अपना वजूद दिखाया। सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने कुछ प्रभाव दिखाया था, लेकिन इस चुनाव में यह प्रभाव फीका रहा।
तीसरे मोर्चे के दलों की स्थिति में कांग्रेस की रही महत्वपूर्ण भूमिका:
राजस्थान में तीसरे मोर्चे के दलों के विस्तार में हमेशा कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। जिन क्षेत्रों में कांग्रेस कमजोर हुई, वंहा ये क्षेत्रीय दल सीट जीत पाए। आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का जिन सीटों पर सालों तक वर्चस्व रहा, वंहा कांग्रेस जब कमजोर हुई तो बीएपी जैसी पार्टियों का उदय हुआ। बीएसपी जैसी पार्टियों को भी राजस्थान में इसी वजह से कई बार जीत नसीब हुई। दूसरा पहलू यह भी है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस ने तीसरे मोर्चे के दलों में बीएपी, आरएलपी जैसे दलों से गठबंधन किया तो उन्हें लोगों के बीच पकड़ बनाने में आसानी रही। अधिकांश क्षेत्रीय दलों का वोट बैंक और कांग्रेस का वोट बैंक एक ही रहा है। लिहाजा राजस्थान में क्षेत्रीय दलों का वजूद भाजपा से अधिक कांग्रेस पर ही ज्यादा निर्भर रहा है।
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