पुत्र जन्म पर ही नहीं, कन्या जन्म पर भी मनाने लगे लोहड़ी
यह पर्व सर्दियों के जाने और बसंत ऋतु के आने का संकेत
शादी के बाद जिसकी पहली लोहड़ी है, उसे अपने घर में रहकर लोहड़ी मनाना और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण माना जाता है।
जयपुर। आमतौर पर घरों में नई दुल्हन के आने और पुत्र जन्म पर लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती थी, लेकिन अब कन्या के जन्म लेने पर भी लोहड़ी पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाने लगी है। जबकि श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ ने तो कन्या लोहड़ी अलग से सामूहिक स्तर पर मनाकर नजीर पेश की है। यह त्योहार भगवान सूर्य और अग्नि को समर्पित है। यह पर्व सर्दियों के जाने और बसंत ऋतु के आने का संकेत है। लोहड़ी की रात सबसे ठंडी मानी जाती है। इस त्योहार पर पवित्र अग्नि में फसलों का अंश अर्पित किया जाता है।
कैसे मनाते हैं लोहड़ी
रात के समय सभी लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं और आग जलाते हैं। इस अलाव में गेहूं की बालियां, रेवड़ी, मूंगफली, खील, चिक्की और गुड़ से बनी चीजें अर्पित की जाती हैं। हर साल लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी के शुभ अवसर पर लोग एक-दूसरे को मिठाइयां भेंट करते हैं और शुभकामनाएं देते हैं। यह पर्व नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है। पंजाबियों के लिए यह त्योहार काफी महत्व रखता है। इस त्योहार के दिन पंजाबी गीत और डांस का आनंद लिया जाता है। इस रात को लोहड़ी जलाकर सभी रिश्तेदार और परिवार वाले उसकी पूजा करते हैं।
बुरी नजर से बचाने के लिए बच्चे को आग के पास तपाते हैं
महिलाएं अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर उसे लोहड़ी की आग तपाती हैं। माना जाता है इससे बच्चा स्वस्थ रहता है और उसे बुरी नजर नहीं लगती। शादी के बाद जिसकी पहली लोहड़ी है, उसे अपने घर में रहकर लोहड़ी मनाना और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण माना जाता है।
दुल्ला भट्टी को भी याद किया जाता है
दुल्ला भट्टी अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। अमीर व्यापारी लड़कियां खरीदते थे तब भट्टी ने लड़कियों को छुड़वाया और उनकी शादी भी करवाई। इस तरह महिलाओं का सम्मान करने वाले वीर को लोहड़ी पर याद किया जाता है।
इनका कहना है
कन्या लोहड़ी मनाने का स्वागत योग्य कदम है, यह हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर में व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जबकि जयपुर में भी इसकी अच्छी शुरूआत हुई है। मुझे लगता है कि इससे दोनों जिलों का बिगड़ा हुआ लिंगानुपात अधिक ठीक हो जाएगा।
-जसबीर सिंह, पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान अल्पसंख्यक आयोग, राजस्थान
पुत्र जन्म पर अधिक खुशी और उत्साह के साथ मनाई जाने वाली लोहड़ी अब कन्या जन्म पर भी मनाई जाने लगी है। यह एक बहुत बड़ा सकारात्मक कदम है, लोगों के नजरिए में बदलाव आया है। लोग लड़के और लड़की में भेद करने वाली मानसिकता से बाहर निकल आए हैं। यह बड़ा क्रांतिकारी कदम है, यही बात गुरु नानकजी ने समय-समय पर कही है।
-डॉ. मन्जीत कौर, गुरु वाणी चिंतक एवं शोधकर्ता, जयपुर
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