खेला राष्ट्रीय नाट्य समारोह : रिश्तों के बिखराव और असंतोष की गूंज है नाटक आधे-अधूरे
युवा पीढ़ी के सपनों, संघर्षों और दबावों की कहानी भंवर
नाटक की कहानी एक ऐसे परिवार की है, जहां रिश्तों में बढ़ती दूरी, असंतोष और अस्तित्व की जटिलता को दर्शाया गया।
जयपुर। जवाहर कला केंद्र में खेला राष्ट्रीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन नाटक आधे-अधूरे एवं भंवर का मंचन हुआ। संवाद प्रवाह में आधे-अधूरे की टीम एवं नाटक के सलाहकार बीकानेर निवासी दलीप सिंह भाटी और नाट्य निर्देशक राजदीप वर्मा और प्रकाश संयोजक शहजोर अली ने विचार रखे। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक राजीव आचार्य ने मॉडरेशन किया। कृष्णायन में आधे-अधूरे नाटक ने दर्शकों पर प्रभावशाली छाप छोड़ी। यह नाटक मोहन राकेश लिखित है, जिसकी परिकल्पना एवं निर्देशन ऋषिकेश शर्मा ने किया है। नाटक की कहानी एक ऐसे परिवार की है, जहां रिश्तों में बढ़ती दूरी, असंतोष और अस्तित्व की जटिलता को दर्शाया गया।
युवा पीढ़ी के सपनों, संघर्षों और दबावों की कहानी भंवर
रंगायन सभागार में राजदीप वर्मा के निर्देशन में हुआ नाटक भंवर एक आधुनिक परिवार की कहानी को बयां करता है जो बाहर से तो सामान्य दिखता है, लेकिन अंदर ही अंदर वह बिखरा हुआ है। नाटक का मुख्य पात्र सुनील लेखक बनना चाहता है, लेकिन वह अपने पिता और समाज की उम्मीदों के बीच इस कदर फंसा हुआ है कि उसे वहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता। उसके पिता उसे इंजीनियर या सरकारी अफसर बनता देखना चाहते हैं, लेकिन सुनील अपनी अलग पहचान बनाने के रास्ते पर चलना चाहता है। सुनील की मां परिवार को एक डोर में बांध कर रखना चाहती है। सभी सदस्य अपनी राहें चुन रहे हैं जो एक दूसरे से काफी अलग हैं। ऐसे में वह सही और गलत नहीं, बल्कि दो सही बातों का साथ देने के द्वंद में फंसी है। नाटक इसी के ईद-गिर्द घूमता है।
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