राजस्थान में पहली बार हुई दुर्लभ सर्जरी, लिवर ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन से मिला नया जीवन
सर्जरी 42 वर्षीय पुरुष मरीज की थी
डॉक्टर्स ने राजस्थान की पहली लिवर ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी कर एक दुर्लभ और जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
जयपुर। महात्मा गांधी अस्पताल, जयपुर में सेंटर फॉर डाइजेस्टिव साइंसेज के डॉक्टर्स ने राजस्थान की पहली लिवर ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी कर एक दुर्लभ और जटिल ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
एचपीबी सर्जरी व लिवर ट्रांसप्लांटेशन विभागाध्यक्ष डॉ नैमिष एन मेहता ने बताया कि यह सर्जरी 42 वर्षीय पुरुष मरीज की थी, जो तेज पेट दर्द और दोनों पैरों में सूजन की समस्या लेकर अस्पताल आया था। जांच में पता चला कि लिवर के पीछे एक बड़े ट्यूमर ने निचले शरीर की मुख्य नस (इंफीरियर वेना कावा – IVC) को पूरी तरह से घेर लिया था। यह नस शरीर के निचले हिस्से से रक्त को हृदय तक ले जाती है। ट्यूमर के कारण रक्त प्रवाह नहीं हो पा रहा था, जिससे दोनों पैरों में सूजन आ गई थी और दर्द भी था। इतना ही नहीं, ट्यूमर लिवर की मुख्य रक्त संचार करने वाली नसों को भी दबा रहा था। इस वजह से लिवर फंक्शन भी बाधित हो रहा था।
डॉ मेहता ने बताया कि यह स्थिति जानलेवा हो सकती थी। जान बचाने के लिए ट्यूमर को हटाना ही एकमात्र उपाय था, लेकिन इसके लिए ऑपरेशन के दौरान मुख्य रक्त वाहिनी को बंद करना जरूरी था और रक्त संचार बंद करने पर लिवर के खराब होने की संभावना भी थी। ऑपरेशन में वरिष्ठ हार्ट सर्जन डॉ. मुर्तजा अहमद चिश्ती की मदद से सीने तथा पैरीकार्डियम को खोला गया। डॉ मेहता ने बताया कि इस बेहद जटिल प्रक्रिया के दौरान सबसे बड़ी समस्या लिवर को आईवीसी कावा धमनी से अलग करना था। ऑपरेशन के दौरान सर्जरी टीम थोड़ी देर खून को रोक कर सर्जरी करते और फिर से रक्त संचार करने सुचारू करते। इसके बाद सर्जरी से लिवर को मुख्य रक्त वाहिनी से अलग किया गया। ट्यूमर को निकाल कर कृत्रिम नस 'वेना ग्राफ्ट' द्वारा मुख्य नस को फिर से बनाया गया और पुनः लिवर को प्रत्यारोपित कर दिया गया।
यह प्रक्रिया लिवर ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन कहलाती है, जिसे विश्व के गिने-चुने अत्याधुनिक चिकित्सा केंद्रों में ही किया जाता है। लगभग 12 घंटे तक चली मैराथन सर्जरी डॉ. नैमिष मेहता के नेतृत्व में पूरी टीम शामिल रही।
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