सेकंड की चूक नहीं, पंक्चुअलिटी की पटरियों पर दौड़ती जयपुर मेट्रो, 202 फेरे लगाती है 4 ट्रेने

 मेट्रो के पायलट को तय समय से 25 से 30 मिनट पहले तैयारी

सेकंड की चूक नहीं, पंक्चुअलिटी की पटरियों पर दौड़ती जयपुर मेट्रो, 202 फेरे लगाती है 4 ट्रेने

क्या आप जानते हैं कि जयपुर मेट्रो पंक्चुअलिटी के मामले में गुलाबी नगरी के लिए एक नया मयार बन गई है

जयपुर। क्या आप जानते हैं कि जयपुर मेट्रो पंक्चुअलिटी के मामले में गुलाबी नगरी के लिए एक नया मयार बन गई है। वह शायद ही कभी एक मिनट भी चूकती हो; क्योंकि उसकी पंक्चुअलिटी के लिए सेकंड्स के हिसाब से पूरी वर्किंग होती है। दैनिक नवज्योति संवाददाता ने मेट्रो के उन अनदेखे कर्मचारी-अधिकारियों से मुलाकात की, जिनकी समय की पाबंदी की वजह से जयपुर मेट्रो समय से कभी नही चूकती।  मेट्रो के मानसरोवर स्थित डिपो में बने कंट्रोल रूम में जीपीएस व सिग्नलिंग प्रणाली से जुड़ी बड़ी स्क्रीन लगी है, जिसमें हर ट्रेन की लोकेशन दिखाई देती है। बारिश, फॉल्ट व अन्य आपात स्थिति देखकर तुरंत पायलट से संपर्क किया जा सकता है। 

रन अप टाइम सिस्टम:  मेट्रो के पायलट को तय समय से 25 से 30 मिनट पहले तैयारी। जीपीएस सिंक्ड टाइम: हर मेट्रो की घड़ी जीपीएस (मास्टर क्लोक) से जुड़ी होती है, जिससे सभी ट्रेनों का समय सटीक रहता है। सिग्नलिंग प्रणाली से भी ट्रेन की रियल टाइम मॉनिटरिंग होती है, जो कंट्रोल सेंटर में दिखाई देती है। जीरो डिले पॉलिसी: यदि कोई पायलट 5 मिनट भी लेट हो जाए तो बैकअप पायलट तुरंत मौजूद होता है।

यह बनाते है इसे पंक्चुअल
रात 10.49 बजे जब आखिरी ट्रेन डिपो में आती है, तब मेंटीनेंस इंजीनियर्स की टीम उसे पूरी तरह से चेक करना शुरु करती है। ब्रेक सिस्टम, पावर सप्लाई, ट्रैक अलाइनमेंट हर चीज चेक होती है। कई बार टीम ने पूरी रात काम करती है, ताकि सुबह की पहली ट्रेन बिना देरी चले। मेट्रो हर दस मिनट में चलती है। चार मेट्रो ट्रेन प्रतिदिन सुबह 5.20 बजे से रात 10.21 मिनट तक 202 फेरे मानसरोवर से बड़ी चौपड़ और बड़ी चौपड़ से मानसरोवर तक लगाती है।

इसलिए नही होता संचालन बाधित
मेट्रो ट्रेक के एलिवेटेड होने के कारण भारी बारिश में भी मेट्रो संचालन निर्बाध रहता है। निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए सुपरवीजन कंट्रोल एंड डाटा एक्वीजेशन (स्काडा) सिस्टम का उपयोग होता है। इसके साथ ही वैकल्पिक व्यवस्था भी की गई है। निर्बाध विद्युत आपूर्ति के लिए दो रिसीविंग सब स्टेशन (आरएसएस) स्थापित किए गए है, तथा समस्त विद्युत लाइनों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का प्रबंधन किया गया है, ताकि फॉल्ट के समय अन्य लाइन से तुरंत विद्युत आपूर्ति  सुनिश्चित की जा सकें। स्काडा सिस्टम से कंट्रोल सेंटर से लगातार निगरानी की जाती है। इसकी रात 11 से सुबह 5 बजे टॉवर वैगन से जांच की जाती है। 

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जयपुर मेट्रो अनुशासन और समय प्रबंधन की मिसाल है। इसके पायलट्स, कंट्रोल रूम आॅपरेटर्स और मेंटेनेंस इंजीनियर्स की कड़ी मेहनत इसे पंक्चुअल बनाती है।
वैभव गालरिया, सीएमडी जयपुर मेट्रो

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वैभव गालरिया, सीएमडी जयपुर मेट्रो

मानसरोवर व बड़ी चौपड़ से सुबह की पहली ट्रेन सुबह 5.20 बजे पर चलती है, लेकिन हमे सुबह 4.50 बजे तक ट्रेन के पास पहुंचना होता है। सिमुलेटर पर टेस्टिंग करनी होती है, इंजन की जांच होती है और ट्रेन को ट्रैक पर लाने से पहले हर चीज परफेक्ट होनी चाहिए। 
मुकेश कुमार यादव, पायलट (अनुभव 7 वर्ष)

मेट्रो ट्रैक पर पायलट ही नहीं, बल्कि कंट्रोल रूम में बैठे आॅपरेटर्स भी सेकंड्स की पाबंदी रखते हैं। हमारी शिफ्ट 8 घंटे की होती है, लेकिन ध्यान एक सेकंड के लिए भी हटे तो बड़ी गड़बड़ हो सकती है। हर ट्रेन का मूवमेंट हमारे मॉनिटर पर होता है। जरा सा भी डिले हो, तो तुरंत मेट्रो पायलट से संपर्क किया जाता है। 
-रामसिंह जाट, चीफ कंट्रोलर

ट्रैफिक डेटा
कुल कितनी मेट्रो पूरे दिन में चलती हैं : चार ट्रेने 202 फेरे लगाती है। (मानसरोवर से बड़ी चौपड़ व बड़ी चौपड़ से मानसरोवर तक)

इसके संचालन वाले कुल पायलट कितने हैं 
  30 पायलट (4 महिला-26 पुरुष)

इसमें हर रोज कितने यात्री सफर करते हैं : 53 से 55 हजार 
प्रतिदिन आय   10 लाख 25 हजार रुपए

किस टाइम सबसे अधिक यात्री रहते हैं 
सुबह 9 से सुबह 11 बजे तक व शाम 7 से शाम 7 बजे तक, स्टेशन नियंत्रक : 82
 

चार ट्रेनें प्रतिदिन लगाती हैं 202 फेरे, पायलट, कंट्रोलर, इंजीनियर्स की विशेष भूमिका
पंक्चुअलिटी सुनिश्चित करने के खास नियम

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