उदयपुर संभाग की 28 सीटों की स्थिति: भाजपा-कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों पर मैदान में उतारे प्रत्याशी
जिसने मेवाड़ जीता, उसी के हाथ आती है प्रदेश की सत्ता
उदयपुर संभाग की 15 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी वोटर्स अपना प्रभाव रखते हैं। पार्टियों ने भी जातियों के समीकरण ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी उतारे हैं।
ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। उदयपुर संभाग के 6 जिलों की 28 सीटों में से 22 पर भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है। दो सीटों पर भाजपा के बागियों ने मुकाबला रोचक बना दिया है। उदयपुर संभाग की 15 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी वोटर्स अपना प्रभाव रखते हैं। पार्टियों ने भी जातियों के समीकरण ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी उतारे हैं। कहते हैं जिसने मेवाड़ जीत लिया प्रदेश की सत्ता उसी के हाथ आती है। उदयपुर जिले की आठ में से पांच सीटें रिजर्व और तीन जनरल हैं। जनरल सीट मावली में कांग्रेस ने डांगी तो भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे को उतारा है, यहां दोनों वर्ग के मतदाता ज्यादा हैं और जीत-हार इन्ही के वोट से तय होती है। वल्लभनगर में ओबीसी वोटर ज्यादा हैं तो भाजपा ने ओबीसी वर्ग को साधने के लिए डांगी तो वहीं कांग्रेस ने दूसरे बड़े मतदाता वर्ग राजपूत समाज से प्रीति शक्तावत पर दांव खेला है। उदयपुर शहर सीट पर जैन व ब्राह्मण मतदाता ज्यादा हैं, यहां भाजपा से गुलाबचंद कटारिया जीतते आए हैं। भाजपा ने इस बार भी जैन चेहरे को उतारा, कांग्रेस ने पहले की तरह इस बार भी ब्राह्मण चेहरे को उतारा है। राजसमंद जिले की चारों सीटें भी सामान्य श्रेणी की है। नाथद्वारा में कांग्रेस ने ब्राह्मण तो बीजेपी ने महाराणा प्रताप के वंशज को टिकट दिया है। चित्तौड़गढ़ जिले की कपासन सीट एससी के लिए आरक्षित है और बाकी सभी सीटें जनरल के लिए है। यहां भाजपा ने राजपूत, जैन व सिंधी समाज को तो कांग्रेस ने जाट को उतारा है। राजनीतिक गलियारों में तीन सीटों की सबसे ज्यादा चर्चा है, जिसमें राजसमंद की नाथद्वारा, जहां भाजपा से विश्वराज सिंह मेवाड़ और कांग्रेस से विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी मैदान में हैं। दूसरी चित्तौड़गढ़ जहां भाजपा के चंद्रभान आक्या के बागी तेवर के बाद पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी की प्रतिष्ठा दांव पर है। तीसरी सीट है, उदयपुर शहर। यहां कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ मैदान में हैं।
उदयपुर : कटारिया के बाद मेवाड़ की सियासत में बदलाव
जिले की 8 में से 4 सीटों पर दोनों पार्टियों में सीधी टक्कर है। लंबे अरसे तक मेवाड़ की राजनीति में अहम रोल रखने वाले गुलाबचंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनने के बाद मेवाड़ की सियासत में बदलाव आया है। कांग्रेस में राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ (उदयपुर सीट) और सीडब्ल्यूसी मेंबर रहे रघुवीर सिंह मीणा (सलूंबर) की साख दांव पर है। पिछला चुनाव हारे रघुवीर मीणा के लिए इस बार राहत की बात ये है कि 2018 में राह रोकने वाली रेशमा मीणा इस बार साथ हैं। डूंगरपुर से सटी खेरवाड़ा सीट पर बीएपी (भारत आदिवासी पार्टी) ने समीकरण बदल दिए हैंं।
चित्तौड़गढ़ जिला : भाजपा के बागी ने बिगाड़े समीकरण
चित्तौड़गढ़ सीट इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है। भाजपा ने मौजूदा विधायक चन्द्रभान आक्या का टिकट काट पूर्व मंत्री नरपत सिंह राजवी को उतारा है। आक्या ने निर्दलीय उतरकर मुकाबला रोचक बना दिया। इस सीट पर सभी की नजरे है। निम्बाहेड़ा सीट पर कांग्रेस के मंत्री उदयलाल आंजना गहलोत सरकार की मुफ्त योजना, भाजपा के पूर्व मंत्री श्रीचंद कृपलानी केन्द्र की योजनाओं के सहारे हैं। बेगूं में तमाम विरोध के बीच राजेन्द्र विधूड़ी फिर टिकट लाने में कामयाब हुए।
प्रतापगढ़ जिला : बीजेपी-कांग्रेस के लिए बीएपी बड़ा खतरा
आदिवासी बहुल प्रतापगढ़ जिले में इस बार बीटीपी से अलग होकर बनी बीएपी ने चुनावी रोमांच बढ़ा दिया। धरियावद सीट पर भाजपा ने उप चुनाव में हुई हार से सबक लिया। सिम्पैथी कार्ड खेलने के लिए दिवंगत पूर्व विधायक गौतम मीणा के बेटे कन्हैयालाल को टिकट दिया। दोनों ही सीटों पर बीएपी की मजबूत पकड़ ने बीजेपी-कांग्रेस की नींद उड़ा रखी है।
डूंगरपुर जिला : बीएपी-बीटीपी के गढ़ में कांग्रेस-भाजपा के लिए संघर्ष
चार सीटों वाला यह जिला आदिवासी बहुल है। भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) और भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) का इतना दखल है कि कांग्रेस और भाजपा को संघर्ष करना पड़ रहा है। डूंगरपुर सीट पर कांग्रेस के गणेश घोघरा, चौरासी में पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा की प्रतिष्ठा दांव पर है। घोघरा के अपने कुछ नेता नाराज होकर निर्दलीय उतर गए हैं, जिससे परेशानी बढ़ गई है।
बांसवाड़ा जिला : बीएपी के दखल से समीकरण बदले
जिले की सबसे हॉट सीट बागीदौरा है, जहां मंत्री महेन्द्र जीत सिंह मालवीया मैदान में हैं। भाजपा ने कृष्णा कटारा को उतारकर मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश जरूर की, लेकिन मालवीया भारी पड़ रहे हैं। सियासी संकट में मुख्यमंत्री का साथ देने वाली निर्दलीय विधायक रमिला खड़िया इस बार कांग्रेस का टिकट लेकर मैदान में हैं। बांसवाड़ा में निर्दलीय और गढ़ी पर बीएपी ने ताकत झोंक रखी है।
राजसमंद जिला : महाराणा प्रताप के वंशज से समीकरण बदले
जिले में सबसे रोचक मुकाबला नाथद्वारा सीट पर है। सीपी जोशी के सामने भाजपा ने महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह को उतारकर सियासी गणित बिगाड़ दिया है। यहां अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इस सीट पर एसटी वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। राजसमंद सीट पर बीजेपी की दिवंगत मंत्री किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति फिर मैदान में हैं, लेकिन उनको बाहरी बताकर भाजपा के स्थानीय नेताओं ने भी पर्चा भर उनकी राह मुश्किल कर दी।

Comment List