देश के साथ ही प्रदेश में बढ़ रहा 'दर्शन' शिक्षा का दायरा

राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र में वेद और उपनिषद का पढ़ाया जा रहा पाठ

देश के साथ ही प्रदेश में बढ़ रहा 'दर्शन' शिक्षा का दायरा

फिलॉसफी सिर्फ अध्यात्म नहीं, बल्कि किसी भी विषय में दी जाने वाली सर्वोच्च उपाधि को डॉक्टरेट इन फिलॉसफी ही कहा गया

जयपुर। आज के समय में हर तरफ दर्शनशास्त्र की बात की जा रही है और देश के साथ ही प्रदेश में दर्शन का दायरा बढ़ता जा रहा है। लेकिन ये करीब 3500 साल पुराना शास्त्र है, जिसको कुछ लोग अध्यात्म का पूरक मानते हैं। लेकिन दर्शनशास्त्र में कई भाव निहित होते है। राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र में वेद और उपनिषदों की शिक्षा दी रही है। जिसमें बताया गया है, कि दर्शनशास्त्र सिर्फ अध्यात्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का व्यवहार है और किसी विषय के गहन चिंतन को फिलॉसफी कहा गया है। फिलॉसफी सिर्फ अध्यात्म नहीं, बल्कि किसी भी विषय में दी जाने वाली सर्वोच्च उपाधि को डॉक्टरेट इन फिलॉसफी भी कहा गया है। यानी किसी विषय के गहन चिंतन को फिलॉसफी कहा गया है। 

दर्शन के मूल तत्व को आत्मा माना

राजस्थान विश्वविद्यालय में करपात्री महाराज की दो किताबों को सिलेबस में शामिल किया गया है। जिससे विद्यार्थियों को और अधिक दर्शनशास्त्र की शिक्षा मिलेगी। जब हम दर्शनशास्त्र की बात करते हैं तो हमारी धुरी केवल धर्म, अध्यात्म और दर्शन तक सिमट कर रह जाती है तो क्या फिलॉसफी सिर्फ अध्यात्म तक सिमटा हुआ है। 

राजस्थान विश्वविद्यालय 

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खुद की चेतना को ही ब्रह्म माना गया: यूनेस्को ने 2002 में वर्ल्ड फिलॉसफी डे की शुरुआत की थी, जिसका मूल अर्थ किसी भी विषय को गहनता से जानने से है, उसमें जैसे अध्यात्म भी एक विषय है, यानी की फिलॉसफी आॅफ स्पिरिट, फिलॉसोफी के सोल की जब बात करेंगे तो अध्यात्म की बात की जाएगी।

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हजारों छात्रों की पढ़ाई

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प्रदेश के सबसे बड़े राजस्थान यूनिवर्सिटी में दर्शनशासत्र विभाग सन् 1950 से अभी तक नियमित रूप से चल रहा है। इसमें अभी स्नातकोत्तर (पीजी) कोर्स के प्रथम इयर में 60 सीटे है। जिनमें अभी प्रथम व द्वितीय ईयर में 120 छात्र पढ़ रहे हैं, तो 16 रिसर्च स्कॉलर शोध कर रहे हैं। जबकि अभी तक सैकड़ों की संख्या में छात्र शोध कर चुके हंै।

भारतीय परंपरा ने महत्वपूर्ण माना

 भारतीय परंपरा ने दर्शनशास्त्र विषय को सबसे महत्वपूर्ण माना है। ऐसे में यहां दर्शन का अर्थ अध्यात्म ज्यादा हो गया है। हालांकि, दर्शनशास्त्र के प्रमुख 9 स्कूल माने गए हैं, उनमें पांच स्कूल तो ईश्वर को ही नकार रहे हैं। ये सभी स्कूल निरीश्वरवादी हैं, लेकिन आत्मा को माना गया है। भारत का सबसे बड़ा दर्शनशास्त्र अद्वैत वेदांत भी जब अल्टीमेट ट्रुथ की बात करते हैं, तो वहां भी ईश्वर की बात गौण हो जाती है और उसमें व्यक्ति के स्वभाव या फिर खुद की चेतना को ही ब्रह्म माना गया है। 


आत्मा का अर्थ पारलौकिक नहीं

आत्मा का अर्थ पारलौकिक नहीं, बल्कि जीवन को नैतिक रूप से जीना  है। इस पर विचार करना ही अध्यात्म है। भारतीय दर्शन में दर्शन को जीवन जीने के एक व्यवहार के रूप में देखा गया है। कॉलेज-यूनिवर्सिटी लेवल पर भी वेद उपनिषद दर्शनशास्त्र का हिस्सा है ंऔर अब तो करपात्री महाराज की दो पुस्तकों को भी इसमें जोड़ा गया है, उनका ये मानना है कि हर परंपरा की विशेष बात होती है और भारतीय परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता ही अध्यात्म है। सभी विद्यार्थी ये जानें कि भारतीय परंपरा वास्तव में क्या है। 

फिलॉसफी जीवन जीने का व्यवहार है। इसे आध्यात्म नहीं बल्कि किसी भी विषय की आत्मा कहा जा सकता है। केवल फिलॉसफी की ही अगर बात करें तो विश्व पटल पर इसे सिर्फ अध्यात्म के रूप में नहीं देखा जाता, इसे ज्ञान के प्रति प्रेम के तौर पर देखा जाता है और यहीं परिभाषा दुनिया भर में मान्य है। जहां तक आध्यात्म का प्रश्न है तो भारतीय परंपरा में दर्शन के मूल तत्व को आत्मा को माना गया है। 
-प्रो. अरविन्द विक्रम सिंह, 
हैड, दर्शान शास्त्र और डीन, कला संकाय, आरयू

आज के दौर को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय ने छात्रों को धर्मार्थता के बारे में सीखने और पढ़ाने का कम कर रहा है। जिससे छात्र धर्म के बारे में पढ़ सकेंगे। 
-प्रो. अल्पना कटेजा, 
कुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।

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