World Spine Day: राजस्थान में रोड एक्सीडेंट से 43% लोगों को होती है स्पाइन इंजरी, पैरालिसिस होने की रहती है संभावना

आजदेश में पैरालिसिस के कुल केसों में 27 प्रतिशत कारण रीढ़ की चोट

World Spine Day: राजस्थान में रोड एक्सीडेंट से 43% लोगों को होती है स्पाइन इंजरी, पैरालिसिस होने की रहती है संभावना

सीनियर न्यूरो एंड स्पाइन सर्जन डॉ. सुशील तापड़िया ने बताया कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी की भयावहता इस बात से लगाई जा सकती है कि लोगों में होने वाले पैरालिसिस के मामलों में दूसरा सबसे बड़ा कारण स्पाइनल कॉर्ड इंजरी है।

जयपुर। सड़क दुर्घटनाओं के मामले देश ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी तेजी से बढ़ रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकार सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं लेकिन बावजूद इसके ये मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में राजस्थान में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में सिर से ज्यादा चोटें हमारी रीढ़ की हड्डी में लग रही है। एक आंकड़े के अनुसार प्रदेश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में चोटिल होने वाले 43 प्रतिशत लोगों में रीढ़ की चोटें होती हैं। अगर ये चोट गंभीर हुई तो व्यक्ति को कमर से नीचे पैरालिसिस या मल मूत्र का नियंत्रण खोने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

पैरालिसिस का दूसरा सबसे बड़ा कारण स्पाइनल इंजरी
सीनियर न्यूरो एंड स्पाइन सर्जन डॉ. सुशील तापड़िया ने बताया कि स्पाइनल कॉर्ड इंजरी की भयावहता इस बात से लगाई जा सकती है कि लोगों में होने वाले पैरालिसिस के मामलों में दूसरा सबसे बड़ा कारण स्पाइनल कॉर्ड इंजरी है। देश में पैरालिसिस के कुल केसों में 27 प्रतिशत कारण रीढ़ की चोट है। इनमें ज्यादातर केस कमर के नीचे के लकवे के होते हैं।

अगर वजन ज्यादा है तो पांच गुना बढ़ जाएगा स्कोलियोसिस का खतरा: गुप्ता
सीनियर न्यूरो एंड स्पाइन सर्जन हिमांशु गुप्ता ने बताया कि देश में 50 लाख लोगों को स्कोलियोसिस यानी रीढ़ के टेढ़े होने की समस्या है। पांच प्रतिशत बच्चों में रीढ़ के टेढ़े होने की समस्या पाई जा रही है। अगर व्यक्ति का वजन अधिक है तो स्कोलियोसिस होने का खतरा पांच गुना बढ़ जाता है। स्पाइन से जुड़ी समस्याओं के लिए अब सर्जरी काफी आसान हो गई हैं। स्पाइन की महीन नसों पर दबाव न पड़े इसका विशेष ध्यान रखा जाता है लेकिन फिर भी जटिलताओं का खतरा रहता है। अब इंट्राऑपरेटिव न्यूरो मॉनिटरिंग तकनीक से इस जटिलता को बेहद कम किया जा सकता है। इस तकनीक से सर्जरी के दौरान ही सर्जन को लाइव डेटा मिलते रहता है कि वे स्पाइन के अनावश्यक हिस्से को नहीं छेड़ रहे।

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