ई-मित्र प्लस मशीनें बनीं शो-पीस, देख-रेख के अभाव में ठप पड़ी हाइटेक सुविधा

लोगों को अब फिर से दफ्तरों के काटने पड़ रहे चक्कर

ई-मित्र प्लस मशीनें बनीं शो-पीस, देख-रेख के अभाव में ठप पड़ी हाइटेक सुविधा

संचालन न होने के कारण अधिकांश मशीनें धूल फांक रही हैं।

कोटा। शहर के सरकारी कार्यालयों में लगी ई-मित्र प्लस मशीनें अब शो-पीस बनकर रह गई है। देखरेख के अभाव में अब मशीनें जाम व खराब हो रही है। प्रशासन की अनदेखी के चलते आमजन परेशान हो रहे है। आए दिन सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के बावजूद भी काम नहीं हो पा रहे है। बता दें कि आमजन को आधुनिक तकनीक के माध्यम से एक ही स्थान पर करीब 400 प्रकार की सरकारी और निजी सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई ई-मित्र प्लस मशीनें अब शो-पीस बन चुकी हैं। बड़े दावों और उम्मीदों के साथ इन मशीनों की शुरूआत हुई थी ताकि लोगों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़े और सुविधा एक क्लिक पर मिल सके। लेकिन हकीकत यह है कि इनकी ठीक से देखरेख और संचालन न होने के कारण आज अधिकांश मशीनें धूल फांक रही हैं। शुरूआत के कुछ महीनों तक इनसे सेवाएं दी गईं, पर उसके बाद लापरवाही और तकनीकी खामियों के चलते ये ठप हो गईं। न तो नियमित अपडेट मिले और न ही जिम्मेदार विभाग ने इनकी निगरानी की। नतीजतन, आमजन की सुविधा के लिए शुरू की गई यह पहल आज केवल सरकारी दफ्तरों में एक शो-पीस की तरह खड़ी है, जो सिस्टम की उदासीनता और तकनीकी योजनाओं की असफलता को दशार्ती है।

लोगों को लगाने पड़ रहे हैं दफ्तरों के चक्कर
सरकारी दफ्तरों में जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ सालों पहले ई-मित्र प्लस मशीनें लगाई गई थीं। उद्देश्य यह था कि आम आदमी को सरकारी सेवाओं के लिए बार-बार कार्यालयों के चक्कर न लगाने पड़ें और अधिकतर काम एक ही मशीन के माध्यम से आसानी से निपट सकें। यह सुविधा शुरू होते ही लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें लंबी कतारों और कर्मचारियों की मिन्नतों से छुटकारा मिलेगा। लेकिन अफसोस, शुरूआत के कुछ महीनों तक सुचारु रूप से चलने वाली यह सुविधा अब पूरी तरह से ठप हो गई है।

ये सुविधा है ई-मित्र प्लस में
ई-मित्र प्लम मशीन दिखने में एटीएम की तरह दिखाई देती इसमें एलईडी के साथ मॉनिटर डिवाइस, वेब कैमरा, डेरा असेप्टर, कार्ड रीडर, मिटलिक की बोर्ड, रसीद के लिए नार्मल प्रिंटर लेजर प्रिंटर आदि मोजूद है। 

नियमित मेंटेनेंस का अभाव
सरकारी कार्यालयों के गलियारों में इन मशीनों की स्थिति अब बेहद दयनीय है। कई जगहों पर मशीनें धूल फांक रही हैं, तो कहीं इनके स्क्रीन खराब हो चुके हैं। देखरेख और नियमित मेंटेनेंस के अभाव में ये आधुनिक मशीनें अब शोपीस बनकर रह गई हैं। जिन उद्देश्यों के लिए इन्हें लगाया गया था, वे अब पूरी तरह अधूरे रह गए हैं। इन मशीनों पर करोड़ो खर्च करने के बजाय सरकार को शहर में लगे ठेका कर्मियों के मानदेय के बारे में सोचना चाहिए।
-दिलिप सिंगोर

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इनका कहना है
नवज्योति टीम ने जब समस्या पर सम्बंधित अधिकारी से बात की तो उन्हें शहर में कितनी मशीनों लगी हुई है इसकी  सही संख्या तक नहीं बता सके। उन्होंने केवल इतना कहा कि शहर में कई स्थानों पर मशीनें लगी हैं, यदि समस्या आ रही है तो जांच कर समाधान किया जाएगा।
-महेन्दÑ पाल सिंह, एडिशनल डायरेक्टर डिओआईटी 

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नहीं मिल रहा सेवाओं का लाभ
ई-मित्र प्लस मशीनों का मुख्य उद्देश्य लोगों को सरकारी सेवाएं जैसे—बिल जमा करना, प्रमाण पत्र लेना, सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त करना और विभिन्न प्रकार की आवेदन सेवाएं उपलब्ध कराना था। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कुछ सुविधाएं भी इससे जोड़ी गई थीं, ताकि आम नागरिक को किसी भी सेवा के लिए अलग-अलग दफ्तर न भटकना पड़े। लेकिन आज हालत यह है कि नागरिकों को फिर से उन्हीं दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं, जिनसे छुटकारा दिलाने के लिए यह योजना लाई गई थी।
-राहुल शर्मा

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योजना धराशायी
मशीनें शुरू होते समय काफी उपयोगी साबित हो रही थीं। कई लोग छोटे-छोटे काम कुछ ही मिनटों में निपटा लेते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, तकनीकी खराबी आई और उसकी मरम्मत नहीं हुई। न ही कर्मचारियों को इसके सही संचालन की जिम्मेदारी दी गई। परिणामस्वरूप यह योजना धराशायी हो गई।
-एड. बीटा स्वामी

जनता के विश्वास से खिलवाड़
 इन मशीनों की नियमित सर्विसिंग और तकनीकी सुधार किया जाता, तो आज भी यह जनता के लिए बड़ी राहत बन सकती थीं। परंतु सरकारी लापरवाही और जिम्मेदार विभागों की अनदेखी ने इस सुविधा को पूरी तरह से बेकार कर दिया। आज के डिजिटल युग में जब सरकार "डिजिटल इंडिया" और "ई-गवर्नेंस" की बात करती है, तब ऐसी तकनीकी सुविधाओं का बंद हो जाना सवाल खड़े करता है। यह सिर्फ सरकारी धन की बबार्दी नहीं बल्कि जनता के विश्वास से भी खिलवाड़ है। सरकार को चाहिए कि इन मशीनों की फिर से मरम्मत कराकर इन्हें चालू किया जाए और संबंधित विभागों को जिम्मेदारी सौंपी जाए। 
-शादाब खान

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