हाड़ौती बने सोया हब तो किसानों की बदले तकदीर, सोयाबीन प्रोसेसिंग यूनिट व मार्केट की दरकार

सोयाबीन का बम्पर उत्पादन फिर भी धरतीपुत्रों के हाथ खाली

हाड़ौती बने सोया हब तो किसानों की बदले तकदीर, सोयाबीन प्रोसेसिंग यूनिट व मार्केट की दरकार

सोयाबीन से बने उत्पादों जैसे सोया दूध, टोफू, सोया आटा और पशु आहार की स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग और बिक्री की व्यवस्था हो जाए तो यहां के किसानों की तकदीर बदल सकती है।

कोटा। हाड़ौती क्षेत्र सोयाबीन उत्पादन के लिए पूरे देश में पहचान बना चुका है। हर साल यहां लाखों टन सोयाबीन का उत्पादन होता है, लेकिन किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इस बार भी बंपर उत्पादन के बावजूद किसान औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं। कृषि विशेषज्ञों और उद्यमियों का मानना है कि किसानों को इस स्थिति से उबारने के लिए अब हाड़ौती में सोयाबीन आधारित इंडस्ट्री स्थापित करना और स्थानीय स्तर पर मजबूत मार्केटिंग की व्यवस्था करना बेहद जरूरी हो गया है। यदि सोयाबीन से बने उत्पादों जैसे सोया दूध, टोफू, सोया आटा और पशु आहार की स्थानीय स्तर पर प्रोसेसिंग और बिक्री की व्यवस्था हो जाए तो यहां के किसानों की तकदीर बदल सकती है। अब हाड़ौती को सोया हब बनाने की जरूरत है।

खेती से सीधे जुड़ेगा आय का साधन: कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सोया प्रसंस्करण को खेती के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है। किसान स्वयं या सहकारी समितियों के माध्यम से छोटे स्तर पर सोया दूध, टोफू और अन्य उत्पाद तैयार कर सकते हैं। इससे उन्हें कच्चे माल के बजाय तैयार उत्पाद बेचने का अवसर मिलेगा, जिससे लाभ कई गुना बढ़ सकता है। हाड़ौती में सोया आधारित लघु उद्योगों की स्थापना से न केवल किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा, बल्कि क्षेत्रीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार, एक मध्यम आकार की टोफू यूनिट प्रतिदिन 500 लीटर सोया दूध प्रोसेस कर सकती है, जिससे 50-60 किलो टोफू तैयार होता है। बाजार में इसकी कीमत 200-300 रुपए प्रति किलो तक होती है।

बाजार और ब्रांडिंग की जरूरत
प्रगतिशील किसान लक्ष्मीचंद नागर व प्रमुख व्यापारी भूपेन्द्र कुमार का कहना है कि सोया उत्पादों की बिक्री के लिए स्थानीय और आॅनलाइन बाजार की व्यवस्था आवश्यक है। किसान उत्पादक कंपनियां और सहकारी समितियां मिलकर ब्रांडिंग और पैकेजिंग कर सकती हैं। इससे उत्पादों को बेहतर पहचान मिलेगी और उपभोक्ताओं तक सीधे पहुंच बन सकेगी। हाड़ौती में सोयाबीन प्रोसेसिंग यूनिट्स की अपार संभावना है। छोटी यूनिट्स 2-5 करोड़ रुपए की लागत से लग सकती हैं। इसके लिए सरकार को निवेशकों को रियायती जमीन, सस्ती बिजली और बैंक लोन की सुविधा देनी होगी। उन्होंने कहा कि यूनिट्स लगाने से मंडियों पर दबाव कम होगा और किसानों को सीधे फैक्ट्री रेट मिलेगा।

बम्पर उत्पादन फिर भी किसानों को घाटा
हाड़ौती में सोयाबीन का उत्पादन हर साल रिकॉर्ड स्तर पर होता है, लेकिन किसानों को उनकी मेहनत का लाभ नहीं मिल पाता। विशेषज्ञों, व्यापारियों और किसानों की राय एक ही दिशा में इशारा कर रही है कि यदि स्थानीय स्तर पर इंडस्ट्री और मार्केट उपलब्ध कराए जाएं तो हाड़ौती देश का सबसे बड़ा सोयाबीन प्रोसेसिंग हब बन सकता है और किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। यहां हर साल यहां लाखों हैक्टेयर में सोयाबीन बोई जाती है और उत्पादन भी लाखों टन तक पहुंच जाता है। इसके बावजूद किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिलता। इस बार भी समर्थन मूल्य करीब 4,600 रुपए प्रति क्विंटल है, लेकिन मंडियों में सोयाबीन 3,800 से 4,000 रुपए में बिक रही है। किसानों का कहना है कि बंपर उत्पादन के बावजूद कम दाम से उनकी आर्थिक हालत बिगड़ रही है।

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सोयाबीन से बनने वाले उत्पाद
- सोयाबीन तेल: खाद्य उपयोग का सबसे बड़ा बाजार।
- सोया नगेट्स (चंक्स) : शाकाहारी प्रोटीन का सस्ता और लोकप्रिय स्रोत।
- सोया दूध व टोफू : स्वास्थ्य व डायट फूड इंडस्ट्री में बढ़ती मांग।
- सोया आटा व बेकरी उत्पाद : बिस्किट, ब्रेड व स्नैक्स इंडस्ट्री।
- पशु आहार (डी-आॅयल्ड केक) : पोल्ट्री और डेयरी उद्योग के लिए अहम।
- न्यूट्रास्यूटिकल्स व प्रोटीन पाउडर : जिम, फिटनेस व फार्मा बाजार में उपयोगी

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सोयाबीन उगाने में लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन मंडियों में दाम लागत से भी कम मिलते हैं। हमें मजबूरी में फसल बेचनी पड़ती है। अगर हाड़ौती  में सोयाबीन की इंडस्ट्री लगेगी तो हमें सीधे खरीदार मिलेंगे और फायदा होगा।
-रामलाल मीणा, किसान

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हाड़ौती क्षेत्र में सोयाबीन से बने उत्पाद जैसे तेल, सोया चंक्स, पशु आहार और प्रोटीन पाउडर के उत्पादन की बड़ी संभावना है। अगर यहां प्रोसेसिंग यूनिट्स लग जाएं तो न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि युवाओं को भी रोजगार मिलेगा।
- डॉ. ए.के. शर्मा, कृषि विशेषज्ञ 

 अभी सोयाबीन को बाहर की फैक्ट्रियों में भेजना पड़ता है। यहां स्थानीय प्रोसेसिंग नहीं होने से किसानों को सही दाम नहीं मिल पाते है। यदि इंडस्ट्री हाड़ौती में ही लग जाए तो परिवहन खर्च बचेगा और किसानों को लाभ मिलेगा
- दिनेश अग्रवाल, मंडी व्यापारी  

सरकार यदि इंडस्ट्री पॉलिसी के तहत टैक्स में छूट और सब्सिडी दे तो यहां सोया आधारित बड़ी-बड़ी यूनिट्स खड़ी हो सकती हैं। इससे कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां सभी जिलों को फायदा होगा। 
- पंकज गुप्ता, उद्यमी 

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