उधारी के 4 कमरों में चल रहे हाड़ौती के संस्कृत कॉलेज
कहीं फर्श पर तो कहीं पेड़ के नीचे लगती कक्षाएं
बदहाल स्कूल भवनों में चल रहे महाविद्यालय।
कोटा। हाड़ौती के राजकीय संस्कृत महाविद्यालय बदहाली के शिकार हैं। सरकारी स्कूलों के क्षतिग्रस्त भवनों में कहीं 3 तो कहीं 4 कमरों में कॉलेज संचालित हो रहे हैं। जबकि, इन महाविद्यालयों में 200 से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। बैठने के लिए जगह नहीं होने से पेड़ों के नीचे कक्षाएं लगानी पड़ रही हैं। इतना ही नहीं, विद्यार्थियों की संख्या के अनुपात में फर्नीचर नहीं होने से स्टूडेंट्स को फर्श पर बिठाना पड़ रहा है। हालात यह हैं, कॉलेजों में रेगुलर शिक्षकों के 5 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 4 पद खाली पड़े हैं। जिसकी वजह से संस्कृत व्याकरण, संस्कृत वांगमय, अंग्रेजी साहित्य जैसे महत्वपूर्ण विषयों कक्षाएं तक नहीं लग पा रहीं। ऐसे हालातों में क्वालिटी एजुकेशन मिलना तो दूर पास होना ही चुनौती बन गई।
स्कूलों में चल रहे कॉलेज
संभाग के बारां, बूंदी व झालावाड़ जिले में संस्कृत महाविद्यालय सरकारी स्कूलों के 3 से 4 कमरों में चल रहे हैं। झालावाड़ के रटलाई व बूंदी संस्कृत कॉलेज और स्कूल एक साथ एक ही समय पर संचालित होते हैं। कैम्पस में शोर-शराबे अधिक होने से उच्च शिक्षा प्रभावित होती है।
एक भवन में दो स्कूल, दो आंगनबाड़ी व एक कॉलेज
झालावाड़ जिले में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय रटलाई जिस भवन में संचालित हो रहा है, उसमें पहले से ही दो सरकारी स्कूल, दो आंगनबाड़ी एक ही समय पर चल रही है। यहां राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय, महात्मा गांधी सीनियर सैकंडरी इंग्लिश मीडियम स्कूल, दो आंगनबाड़ी के साथ राजकीय शास्त्रीय संस्कृत महाविद्यालय चल रहे हैं। कैम्पस में शोर-शराबे के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
संस्कृत व्याकरण, वांगमय व अंग्रजी की कक्षाएं नहीं
कोटा संभाग में पांच राजकीय संस्कृत महाविद्यालय हैं। इनमें कोटा में दो व बारां, बूंदी, झालावाड़ में एक-एक हैं। अधिकतर कॉलेजों में संस्कृत व्याकरण, संस्कृत वांगमय, अंगे्रजी साहित्य की कक्षाएं नहीं लगती। इनके शिक्षक विद्या संबल पर भी नहीं मिलते।
क्या कहते हैं विद्यार्थी
जगह की तंगी, पेड़ के नीचे लगती कक्षाएं
स्कूल के 4 कमरों में कॉलेज चलता है। इनमें एक कमरा तो प्राचार्य कक्ष है और 3 कमरों में कक्षाएं लगती हैं। जबकि, विद्यार्थियों की संख्या 220 है। वहीं, जिनमें स्टूडेंट्स बैठ भी नहीं पाते। मजबूरी में पेड़ के नीचे खुले में क्लासें लगानी पड़ती हैं। ज्योतिषी व कम्प्यूटर सीखने के लिए लैब तक नहीं है।
- सतीश कुमार, छात्र रटलाई संस्कृत महाविद्यालय
पीने को पानी नहीं, कैम्पर भरकर लाना पड़ता
वाहवाही लूटने के लिए सरकार ने कॉलेज तो खोल दिए लेकिन सुविधाएं जरा भी नहीं दी। कॉलेज में पीने का पानी तक नहीं है। करीब 100 मीटर दूर स्कूल के नल से पानी का कैम्पर भरकर लाना पड़ता है। वहीं, स्कूल-कॉलेज विद्यार्थी व शिक्षकों के लिए एक ही टॉयलेट है, जो गंदगी से अटे हैं। सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।
- श्याम कुमार, छात्र बूंदी महाविद्यालय
25 साल से पीजी संकाय नहीं
कस्बे में 1999 में संस्कृत कॉलेज शुरू हुआ था। आज 25 साल बाद भी पीजी संकाय शुरू नहीं हुआ। छात्र-छात्राओं को संस्कृत व्याकरण व वांगमय विषयों में पीजी के लिए कोटा जाना पड़ता है। कस्बे से कोटा की दूरी अधिक होने से छात्राएं पीजी नहीं कर पाती। बारिश में कक्षा-कक्ष टपकती हैं।
- जोधराज मेराठा, छात्र चेचट कॉलेज
एक दशक पुरानी जर्जर बिल्डिंग में कॉलेज
यह कॉलेज एक दशक पुरानी जर्जर बिल्डिंग में 5 कमरों में चल रहा है। इस भवन का आगे का हिस्सा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है। पीछे के पुराने कमरों का मेंटिनेंस करवाकर 4 कमरों में कक्षाएं लगाई जा रही हैं। परीक्षा सेंटर नहीं होने से छात्रों को कोटा आना-जाना पड़ता है,जो आर्थिक रूप से महंगा पड़ता है। अव्यवस्थाओं के कारण नामांकन 38 से आगे ही नहीं बढ़ा।
- पांचूलाल, छात्र बारां संस्कृत कॉलेज
क्या कहते हैं प्राचार्य
कॉलेज काफी पुरानी बिल्डिंग में संचालित हो रहा है। फर्नीचर की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से परीक्षा सेंटर नहीं मिल पा रहा। छात्रों को परीक्षा देने कोटा जाना पड़ता है। सुविधा घर सहित अनेक समस्याएं हैं। बरहाल, सरकार ने गजनपुरा में 13 हजार वर्गमीटर जमीन कॉलेज निर्माण के लिए आवंटित की है।
- डॉ. हंसराज गुप्ता, प्राचार्य राजकीय संस्कृत कॉलेज बारां
कोई भी नया कॉलेज खुलता है तो उसे स्टेबलीश होने में थोड़ा समय तो लगता है। स्कूल के 4 कमरों में कॉलेज चल रहा है। परेशानियां तो हैं, हालांकि सरकार ने कॉलेज के लिए भूमि आवंटित कर दी है, बजट की प्रक्रिया चल रही है।
- डॉ. अवधेश कुमार, प्राचार्य राजकीय संस्कृत महाविद्यालय रटलाई
कॉलेज में सुविधाघर की बड़ी समस्या है। स्टाफ व विद्यार्थियों के लिए अलग से टॉयलेट नहीं है। स्कूल व कॉलेज के लिए एक ही कॉमन सुविधाघर हैं, जो गंदे रहते हैं। महिला शिक्षकों के लिए तो अलग से होना चाहिए। पानी व फर्नीचर सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों को लिखा जा चुका है। टेबल-कुर्सियां पर्याप्त नहीं होने से विद्यार्थियों को दरियों पर बिठाना पड़ता है।
- डॉ. रशमी अग्रवाल, प्राचार्य बूंदी संस्कृत महाविद्यालय
कॉलेज में हिन्दी व अंगे्रजी साहित्य के साथ राजनेतिक विज्ञान, समाज शास्त्र जैसे विषय भी खुलने चाहिए। ताकि, विद्यार्थियों का नामांकन बढ़ सके। कॉलेज विकास कार्यों के लिए शिक्षा मंत्री ने 2 करोड़ रुपए की अनुशंसा की है। इस बजट से कक्षा-कक्ष का मेंटिनेंस, बरामदा निर्माण, छत मरम्मत सहित अन्य कार्य किए जाएंगे।
- डॉ. इंद्र नारायण झा, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय चेचट
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