कोटा के ऐतिहासिक पशु मेले का खत्म हो रहा अस्तित्व, पहले जगह बदलने से फिर लम्पी ने लगाई रोक
स्तित्व खत्म होने से उसका लगना मुश्किल है
दशहरा मेले में इस बार भी पशु मेला लगना मुश्किल
कोटा। नगर निगम कोटा दक्षिण व उत्तर की ओर से इस बार 132 वां राष्ट्रीय दशहरा मेला तो 22 सितम्बर से आयोजित किया जाएगा। लेकिन इसके साथ ही लगने वाला आकर्षण का केन्द्र पशु मेले का अस्तित्व खत्म होने से उसका लगना मुश्किल है। नगर निगम की ओर से हर साल दशहरे पर आयोजित होने वाले मेले के दौरान सबसे अधिक आकर्षण का केन्द्र रहता था पशु मेला। इस मेले में शहर ही नहीं दूरदराज से पशु बिकने के लिए आते थे। पशु पालक न केवल पशुओं को बेचने वरन् उन्हें खरीदने वाले भी काफी लोग आते थे। पशु पालकों व किसानों का मेले में आने पर आकर्षण बने। इसके लिए पशु मेला स्थल पर ही निगम की ओर से किसान रंगमंच का आयोजन किया जाता था। जहां किसानों से संबंधित ही सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। जानकारों के अनुसार दशहरा मेले के विजयश्री रंगमंच पर आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रमों की तरह ही किसान रंगमंच पर भी काफी भीड़ रहती थी। देर रात तक लोग उन कार्यक्रमों का आनंद लेते थे। लेकिन अब न तो पशु मेला लग रहा है और न ही किसानों के लिए कार्यक्रम हो रहे है। किसान रंगमंच बनता है और उस पर कार्यक्रम भी होते हैं लेकिन वह किसानों के लिए न होकर स्थानीय व आर्केस्ट्रा पार्टी के कार्यक्रम होने लगे हैं।
निगम को होती थी आय
जानकारों के अनुसार पशु मेले का आयोजन नगर निगम की ओर से किया जाता था। इसके लिए अलग से व्यवस्था व अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्ति होती थी। मेले में आने वाले पशु पालकों की पर्ची कटती थी। जिससे निगम को आय भी होती थी। हालांकि यह आय बहुत कम होती थी। वहीं पशुओं के लिए चारा व भूसे का भी इंतजाम होता था। साथ ही बाहर से आने वाले लोगों के लिए दाल बाटी व देशी खाना बनता था। मेले में अलग ही आकर्षण रहता था।
बंधा धर्मपुरा व देव नारायण में किया था शिफ्ट
नगर निगम की ओर से पहले जहां दशहरा मैदान के भाग पुलिस कंट्रोल रूम के पास ही पशु मेला लगता था। उस मैदान को अभी भी पशु मेला स्थल के नाम से ही जानते हैं। निगम की ओर से इस पशु मेले को पहले तो सीएडी रोड पर ही अतिक्रमण से मुक्त करवाई गई बकरा मंडी की जगह पर संचालित किया गया। लेकिन वहां पशु पालकों की संख्या काफी कम रही। इसके बाद इसे बंधा धर्मपुरा और फिर देव नारायण आवासीय योजना में शिफ्ट किया गया। लेकिन यह मेला वहां भी अपनी पहचान नहीं बना सका। उसके बाद एक बार पशुओं में आए लम्पी रोग को देखते हुए रा’य सरकार पशु पालक विभाग की ओर से पशु मेला लगाने पर रोक लगाई थी। उसके बाद दूसरे साल भी इसी रोग के कारण मेला नहीं लग सका। वहीं अब हालत यह है कि पशु मेला अपना अस्तित्व ही होता जा रहा है। जिससे इस बार भी पशु मेले लगना मुश्किल ही है।
पशुओं से संबंधित सामानों की बिक्री भी हुई कम
पशु मेला नहीं लगने व किसानों के मेले में कम आने से अब पशुओं से संबंधित सामानों की बिक्री भी कम हो गई है। पशु पालक देवलाल गुर्जर का कहना है कि दशहरा मेले का आकर्षण होता था पशु मेला। लेकिन उसे धीरे-धीरे जबरन समाप्त किया गया है। हालत यह है कि अब पशुओं से संबंधित सामान बेचने वाले कुछ पुराने लोग मेले में आते हैं लेकिन उनकी बिक्री तक कम होने से उनका खर्चा ही नहीं निकल पाता। पहले जेबड़ा, घंटी, दराती व अन्य सजावटी सामान भी खूब बिकते थे। बंधा धर्मपुरा निवासी पशु पालक रामलाल गुर्जर का कहना है कि दशहरा मेले के साथ पशु मेला तो लगना चाहिए। वह भी दशहरा मेले के आस-पास ही। जिससे लोग मेला घूमने आएं तो पशु मेला भी देख ले। लेकिन देव नारायण या बंधा धर्मपुरा में पशु मेला लगाने का कोई मतलब नहीं है। यहां तो दशहरा मेले के अलावा कभी भी लगाया जा सकता है।
इनका कहना है
पशु मेले का आकर्षण धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। लम्पी रोग ने भी इस मेले में पशुओं को आने से रोका तो अब पशु पालकों की रूचि भी कम दिखने लगी है। ऐसे में दशहरा मेले में वही कार्यक्रम व आयोजन किए जा रहे हैं जिनका आकर्षण अधिक है। पशु मेले के आयोजन पर अभी तक कोई निर्णय तो नहीं हुआ है। फिर भी मेला समिति की अगली बैठक में पशु मेले पर चर्चा की जाएगी। समिति जैसा निर्णय करेगी उसके हिसाब से काम किया जाएगा।
- विवेक राजवंशी, अध्यक्ष मेला उत्सव व आयोजन समिति

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