चंबल की गहराई से खींचते हैं पानी, 2 किमी दूर होता फिल्टर, तब घरों में पहुंचता है अमृत

पढ़िए, नदी से अशुद्ध पानी उठाने से लेकर शुद्ध करने तक की दिलचस्प कहानी...

चंबल की गहराई से खींचते हैं पानी, 2 किमी दूर होता फिल्टर, तब घरों में पहुंचता है अमृत

पानी को शुद्ध बनाने में बड़ी मेहनत लगती है, पानी का मोल समझें।

कोटा। चंबल से घर तक पानी का सफर आसान नहीं है। इसके पीछे जलदाय विभाग का पूरा मैकेनिज्म काम करता है। चंबल के पानी को पीने योग्य बनाने फिर घरों तक पहुंचाने के लिए चार प्रक्रियाएं अपनानी पड़ती है। जिसमें नदी से पानी उठाना, फिल्टर प्लांट तक पहुंचाना, प्लांट पर पानी को शुद्ध करना, गुणवत्ता परखना, मिनरल्स, आयरन, कैल्शियम सहित अन्य खनीज पदार्थ की जांच कर सप्लाई करना शामिल है। विशालकाय मशीनों के बीच 24 घंटे कर्मचारियों की हाड़तोड़ मेहनत, अथक परिश्रम और अधिकारियों का सुपरविजन, पानी की राह आसान बनाता है। दैनिक नवज्योति में पढ़िए, चंबल से घर तक पानी का सफर....

चंबल से फिल्टर प्लांट तक यूं पहुंचता पानी
चंबल नदी से पानी उठाने से लेकर दो किमी दूर फिल्टर प्लांट तक पहुंचाने के लिए तीन विशालकाय पम्प हाउस बने हैं, हर पम्प हाउस की नदी से पानी उठाने की क्षमता अलग-अलग होती है, जो इस प्रकार है। 

आरयूआईडीपी पम्प हाउस : इस पम्पहाउस में 715 होर्स पावर के 4 पम्प चंबल से पानी खींचने के लिए लगे होते हैं। इनमें से 3 पम्प वर्किंग में और 1 स्टैंड बाय में रखा जाता है, जिसे जरूरत होने पर चला लिया जाता है। इस पम्प हाउस से 130 एमएलडी यानी 1300 लाख लीटर रॉ वाटर नदी से उठाया जाता है। 
- वर्ल्डबैंक पम्प हाउस : इसमें 375 होर्स पावर के 4 पम्प लगे होते हैं। जिनमें 3 पम्प वर्किंग में और 1 एक्सट्रा में रहता है। जिसे जरूरत के मुताबिक यूज किया जाता है। इस पम्प हाउस से 100 एमएलडी यानी 1 हजार लाख लीटर पानी चंबल से उठाया जाता है। 
- ओल्ड पम्प हाउस : इस पम्पहाउस में नदी से पानी खींचने के लिए 300 होर्स पावर के 4 पम्प लगे होते हैं। इससे 40 एमएलडी यानी 400 लाख लीटर पानी लिया जाता है। यह तीनों पम्प हाउस 24 घंटे लगातार चलते हैं। 

पहली प्रक्रिया : नदी से 30 करोड़ लीटर रॉ वाटर उठाना
अकेलगढ़ पम्प हाउस के एईएन विमल नागर ने  बताया कि चंबल की कराइयों में नदी से पानी उठाने के लिए तीन पम्प हाउस बने हुए हैं। जिनमें आरयूआईडीपी, वर्ल्डबैंक और ओल्ड पम्प हाउस शामिल हैं। इन पम्पहाउस में विशालकाय मशीनों से तीन बड़ी-बड़ी पाइप लाइनें जुड़ी हैं। जिनके माध्यम से 28 से 30 एमएलडी पानी उठाया जाता है। इसके बाद पम्पहाउस से करीब 2 किमी दूर फिल्टर प्लांट में शुद्धिकरण के लिए भेज दिया जाता है। 

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दूसरी प्रक्रिया : क्लोरिनेशन पानी से गंदगी दूर करना
आरयूआईडीपी, वर्ल्डबैंक और ओल्ड पम्प हाउस को मिलाकर कुल 2100 लाख लीटर अशुद्ध पानी को फिल्टर करने के लिए रिसिविंग चेम्बर में पहुंचाया जाता है, जिसमें क्लोरिन मिलाकर पानी में जमा गंदगी को दूर किया जाता है। हालांकि, बरसात के दिनों में टरबिर्टी बढ़ने से पानी में एलम, ब्लिचिंग, चूना और क्लोरिन मिलाकर शुद्ध किया जाता है। इससे पानी में जमा गंदगी नीचे बैठ जाती है और साफ पानी विभिन्न पाइपलाइनों के जरिए इनलेंट से जुड़े 6 क्लेरिफायर में पहुंचता है। जहां पानी को फिर से शुद्ध करने के लिए प्री-क्लोरिनेशन की जाती है। प्रत्येक क्लेरिफायर चेम्बर 350 लाख लीटर क्षमता का होता है। चेम्बर में आए पानी में एलम और ब्लिचिंग मिलाकर डोजिंग की जाती है। जिससे पानी में मौजूद अशुद्धियां जैसे, काई, मिटटी, बारिक कंकड, रेत आदि नीचे बैठ जाते हैं और शुद्ध पानी पाइप लाइनों के जरिए आगे मैन चेनल में पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया में करीब 45 से 50 मिनट लगते हैं।

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तीसरी प्रक्रिया : पोस्ट क्लोरिनेशन यानी फिल्टर प्रक्रिया 
दूसरी प्रक्रिया में पानी शुद्ध होने के बाद तीसरी प्रक्रिया में फिर से पानी को फिल्टर किया जाता है। इसके लिए पोस्ट क्लोरिनेशन अपनाई जाती है। इनलेट के क्लेरिफायर से पानी अंडरग्राउंड पाइपलाइनों के जरिए सीधे मुख्य चैनल में लाया जाता है। इस चैनल को 64-64 एलडी के तीन फिल्टर यूनिट में बांटा गया है और यह तीनों यूनिटें 12 बेड से जुड़ी होती है। प्रत्येक बेड में तीन फिल्टर लेयर होती है। जिसमें पहली लेयर में कंकड, दूसरी में मोटी रेत, काई और तीसरी लेयर में बारीक रेत व अन्य पार्टिकल्स को पानी से अलग किया जाता है। प्रत्येक बेड से एक और चेम्बर जुड़ा होता है। जिसमें आखिरी बार पानी में क्लोरिन मिलाकर पानी को फिर से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद पानी का सैंपल लिया जाता है, जिसमें क्लोरिनेशन की जांच की जाती है, यदि इसमें क्लोरिन की मात्रा कम पाई जाती है तो फिर से पोस्ट क्लोरिनेशन करके पूर्ति की जाती है। 

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चौथी प्रक्रिया : टेस्टिंग के बाद ही पानी सप्लाई 
तीसरी प्रक्रिया में पानी पूरी तरह से पीने योग्य हो जाता है। लेकिन, शहर में सप्लाई से पहले पानी की गुणवत्ता परखी जाती है। इसके लिए पानी के सैंपल लैब भिजवाए जाते हैं। जहां, सीनियर कैमिस्ट पानी में टीडीएस, प्लोराइड, टरबिटी, हार्डनेस, पीएच वैल्यू, मिनरल्स सहित अन्य पैरामीटर की बारीकी से जांच करते हैं। पानी की क्वालिटी निर्धारित मापदंड पर खरी उतरने के बाद 106 लाख लीटर व 65 लाख लीटर क्षमता के सीडब्ल्यूआर (स्वच्छ जलाशय) में पानी छोड़ा जाता है। यहां केंद्रीयकृत पम्प बना हुआ है, जिसमें सभी जॉन वाइज अलग-अलग पम्प लगे होते हैं, जिसके माध्यम से घरों तक पानी की सप्लाई की जाती है।   

रोज खर्च होते 11 लाख रूपए
अकेलगढ़ से प्रतिदिन 280 से 300 एमएलडी यानी 28 से 30 करोड़ लीटर पानी सप्लाई किया जाता है। जिसे शुद्ध करने से लेकर सप्लाई करने तक में प्रतिदिन सरकार 11 लाख रुपए खर्च करती है। इसमें सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, ठेकाकर्मी, कैमिकल्स, मशीनों का मेंटिनेंस सहित आॅपरेशन एंड मेंटिनेंस का खर्चा शामिल होता है।
- विमल नागर, एईएन, अकेलगढ़ पम्प हाउस

पानी को अमृत समझें
जलदाय विभाग का मूल उद्देश्य हर व्यक्ति को शुद्ध पानी उपलब्ध कराना है। जिसके लिए हर कर्मचारी-अधिकारी कृत संकल्पित है। पानी को शुद्ध बनाने में बड़ी मेहनत लगती है। शहरवासी पानी का मोल समझना चाहिए ताकि आने वाली अपनी पीढ़ियों के लिए अमृतरूपी पानी बचाएं।
- प्रकाशवीर नथानी, एक्सईएन जलदाय विभाग कोटा 

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