तू ही तो जन्नत मेरी... तू ही मेरा जहां!

मदर्स डे पर दैनिक नवज्योति की एमआईएमटी में प्रतियोगिता आयोजित

तू ही तो जन्नत मेरी... तू ही मेरा जहां!

मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक ‘मदर्स डे’ काफी नहीं है बल्कि एक सदी भी कम है।

कोटा। ममता का सागर, त्याग की प्रतिमूर्ति, जीवनदायिनी, हमारा सबसे बड़ा संबल, हमारी पहली गुरु, मार्गदर्शक..। यह सभी शब्द मिलाकर भी मां के किरदार को मुकम्मल नहीं कर सकते। उसकी ममता के लिए कोई पैमाना नहीं बना, उसकी भावनाओं का कोई चित्र नहीं है, उसके समर्पण का कोई दृश्य नहीं है। मां ङ्घ जब यह शब्द हमारे कानों में गूंजता है, तो उसमें प्रेम, त्याग, बलिदान और अनंत स्नेह की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। क्यों दिन भर थकने के बाद भी मां के चेहरे पर थकान नहीं दिखती। क्यों घर-परिवार की परेशानियों के बीच भी मां के माथे पर शिकन नहीं दिखती। क्यों मां किसी के सामने आंसू नहीं बहाती। क्यों मां हमारे आंसुओं को पोंछने के लिए हमेशा तैयार रहती है। क्यों रसोईं में हमारी पसंद की चीजें ही बनती हैं। क्या मां की अपनी कोई पसंद नहीं है। मां के प्रेम और त्याग की भावनाएं हमारे दिल में तो होती हैं, लेकिन उन्हें शब्दों में पिरोना हमेशा कठिन होता है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक ‘मदर्स डे’ काफी नहीं है बल्कि एक सदी भी कम है।

कागज पर उभरी मां के प्रति बच्चों की कृतज्ञता
मदर्स डे के अवसर पर दैनिक नवज्योति मोदी ‘इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी’ (एमआईएमटी) के विद्यार्थियों के बीच पहुंचा। उनके साथ इस विषय पर उनकी राय को जानने कि वो अपनी मां के बारे में क्या सोचते और महसूस करते हैं? उनकी जिंदगी में उनकी मां कितनी अहम हैं? विद्यार्थियों को अपनी भावनाओं को उजागर करने के लिए खुला प्लेटफॉर्म दिया गया, जहां वह अपनी भावनाओं को कविता व लेख के माध्यम से व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र थे। इसमें बीबीए, एमबीए, बीसीए, एमसीए, बीएससी, एमएससी, बीए, एमए के विद्यार्थियों ने भाग लिया। सभी विद्यार्थियों के लिए उनकी मां दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मां होने के साथ किसी अनमोल रत्न की भांति है। हर मौके पर मुश्किल में वे उनका साथ देती हैं, सही-गलत की सीख अच्छे समझाती हैं। हर विद्यार्थी की अपनी अलग और खबसूरत अभिव्यक्ति रही, सभी को शामिल करना बहुत मुश्किल था। एक छात्रा ने इस तरह अपनी भावनाएं बयां की ‘कभी सुकून से सोई नहीं चिंता में वो हमारी, हमें खिलाने के लिए अक्सर खुद भूखी भी रह जाती है...मां!’ एक छात्र की मां के लिए भावनाएं-हम उन कष्टों और बलिदानों का भुगतान नहीं कर सकते हैं जो माताओं ने अपने बच्चों के लिए चुकाए हैं। मां के साथ बिताए हर पल और उनके द्वारा किए गए बलिदान के लिए आभारी होना चाहिए। 

प्रतियोगिता का परिणाम
प्रतियोगिता में पांच विद्यार्थी विजेता रहे। इस इवेन्ट को संपन्न करवाने में मोदी एज्युकेशनल ग्रुप कोटा के चेयरमेन सुशील मोदी, मोदी इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. एनके जोशी और सभी फैकल्टी सदस्यों का सराहनीय योगदान रहा।

प्रथम पुरस्कार 
तेरे कदमों के नीचे ही मेरी जन्नत है
पांच साल की उम्र थी मेरी, तू रोज काम पे जाती थी, हर दर्द छुपा के चेहरे पे मुस्कान ले आती थी।
तू मां भी बनी, तू बाप का फर्ज़  भी निभा गई।
हर मोड़ पे मुझको संभाल और खुद को भूल गई।
तू मेरी तकदीर लिखने वाली हकीकत है, 
तेरे कदमों के नीचे ही मेरी जन्नत है।
- गौरी नाझरे, बीबीए, तृतीय सेमेस्टर

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द्वितीय पुरस्कार
कितने उतार-चढ़ाव देखे फिर भी चेहरे पर है प्यारी सी मुस्कान
मेरी मां मेरे लिए बहुत कीमती और सबसे प्यारी हैं। वह मेरे लिए भी बहुत कुछ करती हैं। वह घर का काम करती हैं और  कपड़े सिलती हैं और रात तक काम करती हैं । ताकि मैं केवल पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकूं। मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि उन्होंने कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं।  वह मेरे सामने कभी नहीं रोईं, क्योंकि मैं हतोत्साहित नहीं हो जाऊं । उनके चेहरे पर हमेशा एक प्यारी सी मुस्कान रहती थी और वह मेरे लिए सारा प्यार संजो कर रखती थीं।
- अजलान खान, बीसीए, चतुर्थ सेमेस्टर

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तृतीय पुरस्कार
हर जन्म में यहीं मां मिले
मेरी मां सिर्फ एक शब्द नहीं है, ये शब्द पूरा ब्रह्मांड है। वह शिक्षित नहीं हैं, लेकिन हमेशा आसमान की ऊंचाइयों को छूने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वह मेरी प्रेरणा हैं, मेरी शिक्षिका हैं, मेरी मार्गदर्शिका हैं, वह मेरी सबकुछ हैं। अपने जीवन से संघर्ष करने के बाद भी उन्होंने कभी अपना दुख हमें नहीं दिखाया, उन्होंने कभी भी अपना दुख किसी के साथ साझा नहीं किया। उनका जीवन बहुत जटिल था, उनके सामने कई बाधाएं आईं, फिर भी, वह हमेशा हमारे साथ मुस्कुराती हैं। हर जन्म में मैं उन्हें अपनी मां के रूप में चाहती हूं। 
- युक्ता सामरिया, बीए, प्रथम सेमेस्टर

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सांत्वना पुरस्कार
मां की कमी कोई पूरी नहीं कर पाया
मेरा खुद से ज्यादा उससे नाता है, ये जहां कहां कभी उसकी कमी पूरी कर पाया है, उसने इस दुनिया में आने से पहले ही मुझे अपनाया है। अपनी मां के कहां कभी कोई एहसान चुका पाया है क्योंकि उसको उसके जितना चाहने  की मेरी औकात नहीं। शायद खुदा ने बेटों को बख्शी ये सौगात  नहीं। 
- आर्यन श्रीवास्तव, एमसीए, द्वितीय सेमेस्टर

मां के रूप में भगवान मेरे साथ
मैं अपनी मां से कहना चाहती हूं कि तू नहीं तो कुछ नहीं... मैंने कभी भगवान को नहीं देखा लेकिन मेरा मानना है कि भगवान मां के रूप में मेरे साथ हैं। मेरी मां अशिक्षित हैं लेकिन वह एक मनोवैज्ञानिक की तरह मेरी समस्याओं को समझती हैं, डॉक्टर की तरह मेरी देखभाल करती हैं, । हिंदी ठीक से न बोल पाने के बावजूद वह हमेशा मेरे स्कूल की अभिभावक शिक्षक बैठक में भाग लेती हैं। मां धरती की तरह है जो बिना कुछ मांगे बदले में हमें हजारों चीजें देती हैं।
- मनीषा कुमारी, एमएससी, तृतीय सेमेस्टर

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