राजकाज

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जानें राज-काज में क्या है खास

चर्चा में सलाह कोलकाता वालों की
    सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर इन दिनों कोलकाता की सरकारी इमारत की चर्चा जोरों पर है। पिछले दिनों चर्चा में रही इमारत में मरह प्रदेश के झुंझुनूं की धरा से ताल्लुकात रखने वाले सात दशक देख चुके भाईसाहब का राज है। उसमें उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। मकर राशि वाले भाईसाहब भी दिल्ली वालों के इशारों पर ही अपना हुकुम चलाते हैं। चर्चा है कि भगवा वाले ठिकाने पर बैठने वाले भाईसाहब भी कोलकाता वाले साहब की सलाह पर ही काम करते हैं। कुंभ राशि वाले भाईसाहब भी पुराने संबंधों को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।


असर बोतल का
    सूबे में इन दिनों कई नेताओं की बोतल ने  नींद उड़ा रखी है। मूड बनाने के लिए जब भी बोतल का ढक्कन खोलते हैं, तो उसका जिन्न निकल कर सामने नाचने लग जाता है। जिन्न भी ऐसी वैसी बोतल से नहीं बल्कि हनुमान ब्राण्ड से निकला हुआ है। बोतल का यह जिन्न 2018 में भी तीन सीटों पर अपना असर दिखा चुका है। उसके एक साल बाद खींवसर में हुए उप चुनावों में भी बोतल अपना असर दिखाए बिना नहीं रही। वल्लभनगर में तो बोतल ने अपने पहले तोड़ के असर से कइयों को चारों खाने चित कर दिया। ज्यादा उछलकूद करने वाले भाई लोग तो चौथी सीढ़ी तक भी हांफ-हांफ कर पहुंच पाए थे। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि सन् 2023 में बोतल के असर की सोच दोनों दलों के नेताओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। चूंकि बोतल जितनी पुरानी होती है, उतना ही ज्यादा असर दिखाती है।


नजरें दिल्ली की तरफ

    सूबे की ब्यूरोक्रेसी की नजर इन दिनों दिल्ली की तरफ टिकी हुई है। टिके भी क्यों नहीं, 40 दिन बाद ब्यूरोक्रेसी की सबसे बड़ी कुर्सी को नया अफसर जो मिलने वाला है। कुर्सी भी दिल्ली में बैठी दो मैडमों की ओर ताक रही है। इस दौड़ में शामिल एक मैडम का स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में मंडे को पगफेरा भी कुर्सी के सामने होने वाला है। सचिवालय में खुसरफुसर है कि कुर्सी की तरफ दो मैडमों की नजरें हैं और दोनों पड़ोसी सूबे यूपी की धरती से ताल्लुकात रखती है, फर्क सिर्फ इतना सा है कि वरिष्ठता में दोनों के बीच दो साल का गैप है।


दबाव की राजनीति

    भगवा वालों में इन दिनों दबाव की राजनीति के चलते शह और मात का खेल जोरों पर है। भारती भवन से जुड़े भाई लोग अपने हिसाब से चल रहे हैं, लेकिन आमेर वाले भाई साहब का चक्कर कुछ कम ही समझ में आ रहा है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बरसों से आ रहे भाईसाहब समझा रहे हैं कि यह दबाव की राजनीति है। राजनीति में दो ही बातें काम की हैं, समझौता करो या फिर दबाव बनाओ। भाईसाहब ने भी जो सीखा है, वो ही कर रहे हैं।


मुशायरा-ए-मुसाफिर
    हाथ वाली पार्टी की तरफ से पिछले दिनों आयोजित हरकारों का सम्मेलन काफी चर्चा में है। चूंकि यह सम्मेलन कम, बल्कि मुशायरा ज्यादा बन गया। सम्मेलन में मौजूद प्रदेश के पदाधिकारी उस समय लोटपोट हो गए जब पार्टी के एक नेताजी ने भाषण की बजाय शेरोशायरी सुना दी। मंच पर बैठे जादूगर और गोविन्दजी भी बगले झांकते रह गए। कार्यकर्ताओं के भी समझ में आ गया कि मुशायरे बिना मुसाफिर का सफर आसानी से नहीं कटता।


असर धमकी का

    हाथ वाली पार्टी के जोधपुर वाले सीधे-सादे जादूगर की धमकी का असर साफ नजर आने लगा है। उनके तेवरों से कई गद्दारों के पसीने आ गए। चूंकि पिछले दिनों कइयों को घर का रास्ता जो दिखा दिया। गद्दारों को भी समझ में भी आ गया कि 135 साल से उतार चढ़ाव झेल रही पार्टी में धमकियों का असर नहीं होता। 32 साल पहले श्रीराम का हश्र सबके सामने है। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

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