जाने राजकाज में क्या है खास

मझदार में छोड़ी उम्मीद

जाने राजकाज में क्या है खास

जब से वर्कर्स ने अपना मुंह खोला है, तब से इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के दफ्तर में काफी खुसरफुसर है।

मझदार में छोड़ी उम्मीद
हाथ वाली पार्टी के वर्कर्स ने जमीनी हकीकत को लेकर अपना मुंह क्या खोला, बेचारे राज के कई रत्नों के चेहरों की हवाइयां उड़ी गई। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया और चेहरों पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। कुछ रत्नों ने तो मझदार में आगे की उम्मीद तक को छोड़ दिया। समझदार रत्नों को भी समझ में आ गया कि जुबान तो खुद की फिसलती है, वर्कर्स की नहीं। जब से वर्कर्स ने अपना मुंह खोला है, तब से इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के दफ्तर में काफी खुसरफुसर है। कुछ छुटभैय्या नेताओं ने तो राज के सामने नंबर बढ़ाने के लिए वर्कर्स पर दोष मढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन उनकी पार नहीं पड़ी। अब इसमें बेचारे वर्कर्स का कोई दोष नहीं है, उन्होंने तो जमीन से जुड़े नेताओं को जमीनी हकीकत से रूबरू कराया है।

सोते रहो, आगे हम देख लेंगे
पीसीसी में लास्ट वीक से एक चर्चा जोरों पर है। चर्चा भी छोटी-मोटी नहीं बल्कि वर्कर्स के बेरूखी को लेकर है, जिसने कइयों की नींद उड़ा रखी है। पिछले दिनों सूबे के सैकड़ों वर्कर्स के पिंकसिटी की सड़कें नापने के बाद सिविल लाइंस में बड़े लोगों की हाजिरी भरने की इच्छा हुई। सो आनन-फानन में टोली बना कर भरी दुपहरी जा पहुंचे सीएल। सबसे पहले मेवाड़ वाले एक साहब के रूम का दरवाजा खटखटाया, फिर मारवाड़ वाले और लास्ट में जयपुर वाले की देळी ढ़ोकी, पर तीनों के दरबानों ने यह कह कर टरका दिया कि साहब अभी सो रहे हैं। वर्कर्स का धीरज टूट गया, तो उनके मुंह से निकल पड़ा कि इस बार परमानेंट ही निपटा देंगे।


ऐवरी थिंग वैल
जब से जोधपुर वाले भाई साहब ने ऐवरी थिंग वैल का मैसेज दिया है, तब से इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर आने वाले भाई लोगों की बाछें खिली हुई है। उनके चेहरों से चिंता की लकीरें काफुर हो गई। अब हर कोई खुद को टेंशन फ्री मान रहे हैं और एक-दूसरे को अग्रिम बधाई देने में भी कोई कंजूसी नहीं बरत रहे। चर्चा है कि राज की योजनाओं को लेकर हाथ वालों के ठिकाने पर एक बारगी तो मायूसी छा गई थी, लेकिन भाई साहब ने फीडबैक के बाद जब ऐवरी थिंग वैल का संदेशा दिया तो कई भाई लोगों के पैर जमीन पर ही नहीं टिक रहे। 


बचपन बनाम पचपन
नमोजी का भी कोई सानी नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए कब किसकी तारीफ कर दें, कोई पता नहीं। जो समझदार है, वो तो उनकी चाल को समझ जाते हैं और जो नहीं समझे, वो तो अनाड़ी ही हैं। अब देखो ना नमोजी को एक मारवाड़ी ने सलाह दे दी कि दुश्मन को मात देनी है तो हमेशा उसके कमजोर घोड़े की तारीफ करो ताकि वह उसी पर बैठे। सलाह और वो भी मारवाड़ी की। नमोजी के गले नहीं उतरे, यह तो कतई संभव नहीं है। सो एक मकसद के साथ नमोजी ने अपने कांग्रेस के राजकुमार को जिन्दा रखने के लिए उसकी तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अब बेचारे कांग्रेसियों के पास राहुल के बचपने की जीत मानने के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं है।

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एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि भरोसे को लेकर है। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने के साथ ही सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों का दफ्तर भी इससे अछूता नहीं है। दोनों ठिकानों पर आने वाला हर कोई भरोसे को लेकर चर्चा किए बिना नहीं रहता। जुमला है कि अब ना मैं हूं, तेरे भरोसे, और ना ही उसके भरोसे, अब मैं चला हूं, सिर्फ मेरे भरोसे। दोनों तरफ के भाई लोगों में समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

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