सतरंगी सियासत
आ रहे चुनाव...
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेताओं की ओर से तीखी और बेसुरी बयानबाजी हो रही। सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी के बयानों के मायने क्या? मतलब यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ रहा। कोई कम नहीं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के नेताओं की ओर से तीखी और बेसुरी बयानबाजी हो रही। सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी के बयानों के मायने क्या? मतलब यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ रहा। कोई कम नहीं। सलमान खुर्शीद की पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स’ आजकल चर्चा में। उन्होंने आरएसएस एवं हिन्ुत्व के बहाने आतंकी संगठन बोको हराम और आईएसआईएसआई का जिक्र कर डाला। सीधा कहें तो तुलना कर डालीं। सो, चुनावी सियासत में उबाल आना ही है। साल 1984 के सिख विरोधी दिल्ली दंगों के बाद उनके द्वारा लिखी एक पुस्तक के कुछ पन्ने भी आजकल चर्चा में। इसके बाद एक और पार्टी नेता राशिद अल्वी ने जय श्रीराम बोलने वालों को राक्षस बता डाला। मतलब दोनों ही ओर से चुनाव में ध्रुवीकरण की साफ कोशिश! यानी आ गए वहीं के वहीं। उसी की गर्मीं दिल्ली से लेकर सभी ओर बढ़ रही। लेकिन क्या इसका फायदा किसी को मिलेगा? हां, नुकसान किसका होगा, यह बताने की जरुरत नहीं।
कितनी चर्चा बाकी?
राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों का मसला एक बार फिर चर्चा में। सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम पायलट पार्टी आलाकमान से खुलकर गुफ्तगू जो कर चुके। हां, अभी शायद राहुल गांधी से चर्चा बाकी। ऐसे संकेत। इस बारे में प्रियंका गांधी भी जोर आजमाइश कर चुकीं। फिर केसी वेणुगोपाल एवं अजय माकन तो कई बार दिल्ली से लेकर जयपुर तक दौड़ लगा चुके। गहलोत एवं पायलट कांग्रेस आलाकमान का निर्णय मोनेंगे। ऐसा दावा। वैसे, पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह भी सोनिया गांधी से वार्ता होने के बाद बाहर आकर यही बोले थे। बाद में रायता इतना फैला कि संभाले नहीं संभल रहा। हालांकि मरुधरा में फिलहाल ऐसी कोई संभावना नहीं। फिर भी भविष्य में क्या होगा? इसे लेकर कोई आश्वस्त नहीं। हां, हर दिन नए-नए कयास, चर्चाएं, बातें, फार्मूले। मतलब सभी चकरघन्नी हुए जा रहे। अब कौन किसकी फिरकी ले रहा। आशार्थियों की समझ से परे। फिर भी उनकी उम्मीदें कायम। यही राजनीति। पिुर भी एक ही सवाल। और कितनी चर्चा बाकी?
भारत का रूआब..
भारत का दुनियां के फलक पर कूटनीतिक रूआब लगातार बढ़ रहा। अफगानिस्तान के मसले पर हालिया ‘दिल्ली डायलॉग’ इसका पुख्ता संकेत एवं संदेश। दुनियां की बड़ी ताकतें अब भारत की पहल को नजरअंदाज करने की हैसियत में नहीं। रूस के एनएसए की मौजूदगी इसका प्रमाण। जबकि चीन ने भी इसमें हिस्सा लेने से सीधे इनकार नहीं किया। हां, पाक से उम्मीद भी क्या? लेकिन ईरान के एनएसए ने ‘दिल्ली डायलॉग’ में भाग लेकर भारत के सामने पाक को जरुर उसकी हैसियत बता दी। बची खुची कसर तालिबान ने पूरी कर दी। कहा, कोई आपत्ति नहीं, भारत का प्रयास अच्छा। उसे भारत से मदद की आस। फिर पांच मध्य एशियाई देशों की चर्चा में उपस्थिति भारत के प्रभाव की बानगी एवं प्रमाण। फिर इन सभी का पीएम मोदी से शिष्टाचार भेंट करना। अपने आप में नई कहानी बता रहा। वैसे भी अगुवाई अगर अजित डोभाल करें। तो कहीं शक की कोई गुंजाईश नहीं। बात सुरक्षा एवं आतंकवाद की ही नहीं। भारत की कूटनीतिक आभा की भी।
बढ़ रहा सियासी कद!
जब से योगीजी यूपी के सीएम बने। अपने अभिनव कामों से वह राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरते रहे। खासकर उन्होंने कानून व्यवस्था के मामले में जो नजीर पेश की। उसके कई कायल। अब संगठन के भीतर भी उनका कद बढ़ रहा। पार्टी में उन्हें भविष्य का नेता बताया जा रहा। हालांकि उनकी तमाम चर्चाओं पर विराम लगाने की कोशश। कहा, उनकी कोई राष्टÑीय महत्वाकांक्षा नहीं। वह यूपी में ही काम करके ही खुश। लेकिन परिस्थितियां कहां किसी के रोकने से रूकतीं। हालात अपने आप बदलते चले जाते। दिल्ली में हाल में संपन्न बीजेपी की राष्टÑीय कार्यकारिणी में सीएम योगी आदित्यनाथ ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया। कहा जा रहा योगीजी पीएम मोदी की राह पर। करीब दो दशक पहले मोदीजी ने भी ऐसे ही राजनीतिक प्रस्ताव रखा था। सो, इसके मायने निकाले जा रहे। क्योंकि ऐसी बैठकों में यह काम पार्टी के राष्टÑीय नेता करते रहे। लेकिन योगीजी को इस काम के लिए आगे करना। अपने आप में संकेत। यानी योगीजी भाजपा की टॉप लीडरशिप में शुमार।
क्यों हो रहे लाल-पीले?
महामहिम सत्यपाल मलिक आजकल खासे लाल पीले हो रहे? इसी फेर में संवैधानिक पद की मर्यादा भी लांध रहे। लेकिन महत्वाकांक्षा क्या से क्या न करवाए! वह कैसी भी हो सकती है। ऐसा लग रहा, कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना। यूपी चुनाव नजदीक। और किसान आंदोलन के नेता टिकैत भी उसी क्षेत्र के निवासी जहां से मलिक। फिर दोनों ही जाट समुदाय से। मलिक की पृष्ठभूमि समाजवादी। तिस पर कश्मीर के राज्यपाल रह चुके। सो, सरकार और पीएम मोदी को घुड़की देते नहीं मान रहे। लेकिन इन सबमें असल बात क्या? हां, वह कभी लोकसभा सांसद रह चुके। राज्यसभा की भी शोभा बढ़ा चुके। कहीं ऐसा तो नहीं? राजभवन में अब मन नहीं लग रहा हो। यदि परेशान होकर सरकार ही पद से हटा दे तो शहीद कहलाएंगे। इसीलिए सरकार भी बर्दाश्त कर रही! आखिर ऐसी बयानबाजी का क्या मतलब? लेकिन लाल पीले होने से भी तो बात नहीं बनेगी न। किसान आंदोलन अपनी जगह। आखिर संवैधानिक पद और उसकी मर्यादा का क्या?
एक चर्चा यह भी!
बस कयास, सुगबुगाहट, आशंका, अनुमान...! राजस्थान में भाजपा के फिर से सक्रिय होने की चर्चा। असल में, कांग्रेस सरकार में संभावित बदलाव के बाद विधायकों में बगावत की आशंका जताई जा रही। सो, भाजपा फिर से ताक में! यानी ‘ऑपरेशन लोटस पार्ट टू’। पिछले साल भी भाजपा ने कोशिश की थी। ऐसा आरोप कांग्रेस का। जबकि भाजपा ने इससे इनकार किया था। पर अफवाह कब सच हो जाए। कोई कुछ नहीं कह सकता। प्रभारी प्रदेश भी तफरी लेने आए बताए। लेकिन बात कहां तक पहुंचेगी। अभी भविष्य के गर्भ में। आखिर इन सबमें कौन लाभ में? जिनको पद प्रतिष्ठा चाहिए वह या जो इसे रोके हुए। फिर इधर का हाल भी उपचुनाव के बाद ठीक नहीं। हो सकता है उसकी कसर अब पूरी हो जाए। इस बार चूकने का मौका भी दोनों ओर से नहीं रहेगा। आखिर इधर-उधर तैरती चर्चाओं को कौन रोके? धुंआं भी तभी उठता। जब कहीं आग लगती है। लेकिन यह लगी किधर है? इसका भी इंतजार किया जाना चाहिए! -दिल्ली डेस्क
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