पुरुषों से कंधा कैसे मिलाए: अशिक्षा महिला सशक्तिकरण और बाल विवाह आत्मनिर्भरता की हत्या कर रहा
बेटियों की अधूरी ‘उड़ान’ : 36.5 फीसदी कभी स्कूल नहीं गईं, 25.4 फीसदी का बाल विवाह हो रहा : नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में खुलासा
जयपुर। राजस्थान में 21 वीं सदी में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चलने का बेटियों का लक्ष्य अभी सपना भर है। अशिक्षा उनकी महिला सशक्तिरण और बाल विवाह उनकी आत्मनिर्भरता का गला घोंठ रहा है। देश में हाल ही में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट तो यहीं कहती है। प्रदेश में आज भी 36.5 फीसदी बेटियां की उड़ान पंख लगने से पहले ही अशिक्षा की शिकार हो रही है। छह साल की उम्र के बाद इन बेटियों को कभी स्कूल नसीब नहीं हुआ है। शहरी इलाको में राजस्थान में शहरी इलाकों में भी 23.1 फीसदी और गांवों में 40.6 फीसदी बच्चियां ऐसी हैं जो छह साल की उम्र के बाद कभी स्कूल नहीं गईं। गांव तो छोड़े शहरों में भी हालात खास अच्छे नहीं हैं। शहरों में भी ऐसी बेटियों की संख्या 23.1 फीसदी है। गांवों में यह संख्या 39.6 फीसदी हैं। वहीं सरकार के लाख प्रयासों, सख्त कानूनों के बावजूद 25.4 फीसदी का बाल विवाह हो रहा है। गांवों में आज भी 28.1 फीसदी और शहरों में 15.1 फीसदी बेटियां बाल विवाह की शिकार हो रही हैं। हालांकि गत पांच साल में इसमें 10 फीसदी की गिरावट आई है। लेकिन महिला सशक्तिकरण में अभी भी यह कुप्रथा एक चुनौती से कम नहीं है।
महिला शक्ति के लिए यह भी चिंता का विषय
1. आधी से ज्यादा महिलाएं खून की कमी से ग्रसित
पाश्चात्य खान-पान, पोषक भोजन और बिगड़ी दिनचर्या ने खून की कमी से ग्रसित महिलाओं-पुरूषों की संख्या में बढ़ोतरी की है। महिलाओं में तो यह अनुपात खासा चिंताजनक है। आधी से ज्यादा यानी 54.4 फीसदी महिलाएं खून की कमी से पीड़ित है यानी एनीमिक है। पांच साल में इसमें 11.6 फीसदी बढ़ोतरी ही हुई है। पुरुषों में 6 फीसदी ज्यादा हुआ है। प्रदेश में 23.2 फीसदी पुरुष ऐसे हैं जो एनीमिया की गिरफ्त में है।
2. खुद की संपत्ति अर्जन में भी खास जागरूक नहीं हो रहीं
प्रदेश में पांच साल पहले 24.1 फीसदी महिलाएं थीं जिनके नाम पारिवारिक या अर्जित संपत्तियों का मालिकाना हक था। इसमें पांच साल में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। केवल 2.5 फीसदी ज्यादा यानी 26.6 फीसदी के नाम ही अभी संपत्तियों का मालिकाना हक है। चिंता की बात यह है कि ग्रामीण ही नहीं शहरी महिलाएं भी इस अधिकार के प्रति जागरूक नहीं है। शहर-गांव में महिलाएं बराबर स्थितियों में है। प्रदेश में कई योजनाओं में महिलाओं को मुखिया बनाया जा रहा है लेकिन फिर भी 20.4 फीसदी महिलाओं के योजनाओं में फायदा लेने के लिए बैंक अकाउंट तक नहीं है।
3. 28.9 फीसदी के पास अभी भी शौचालय नहीं, 1.9 फीसदी आबादी के घर रोशन नहीं
28.9 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनके पास शौच के लिए शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं है। साफ है कि इस आबादी में समाहित महिलाएं आज भी खुले में शौच को मजबूर हैं। शहरी क्षेत्रों तक में 12.8 फीसदी लोगों के पास उचित शौचालय की व्यवस्था नहीं है। वहीं गांवों में तो अभी भी 43.9 फीसदी के पास शौचालय नहीं है।
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