जाने राजकाज में क्या है खास

जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे में इन दिनों एक सरदारजी को सरदारों की कमी खटक रही है। खटके भी क्यों नहीं, रात दिन सरदारों के बीच रहने वाले सरदारजी अकेले जो पड़ गए।

और यादें हो गई ताजा
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में कमरे को देख एक नेताजी की यादें ताजा हो गई, तो साथ में चल रहे दूसरे नेताजी ने भी ढांढस बंधवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गुजरे जमाने में राज के खास रत्न रह चुके अजमेर संभाग वाले भाई साहब मंगल को विधानसभा के पहले माले पर बने कॉरिडोर से गुजरते हुए जब अपने कमरे के सामने पहुंचे, तो उनकी कमरे से जुड़ी पुरानी यादें ताजा हो गई। धरती के भगवानों को संभाल चुके नेताजी ने से रहा नहीं गया, तो कमरा खोल कर देखने लगे। उनके साथ चल रहे जयपुर वाले राज के रत्न भी मौके को कहां चूकने वाले थे, सो तपाक से बोल पड़े, भीतर वाली कुर्सी पर भी बैठकर देख लो, अभी फोटो लेने वाला कोई नहीं है। राज का काज करने वाले में चर्चा है कि ज्यादा बोलने वाले नेताजी इस बात को पचा नहीं पाए और बात कॉरिडोर से निकल कर हां पक्ष लॉबी तक पहुंच गई।

अब नजरें फिर दिल्ली की तरफ
सूबे में हाथ वाले भाई लोगों के साथ भी आए दिन अजीब खेल हो रहा है। एक सप्ताह भी नहीं गुजर पाता है कि दिल्ली की तरफ नजरें उठाने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसा कालचक्र ढाई साल से हो रहा है। अब देखो ना, राजकुमार की भारत जोड़ो यात्रा पूरी होते ही जोर आजमाइश शुरू हो गई। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि इस बार दोनों तरफ के नेता आर-पार के मूड में हैं। इसीलिए तो दोनों एक-दूसरे को निपटाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। दो पाटों के बीच फंसे ब्यूरोक्रेट्स भी दस तारीख का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। चूंकि उसके बाद ही असली तस्वीर सामने आएगी कि किस देवरे को दण्डवत करने में भलाई है। वैसे पंडितों की मानें, तो शनि की साढ़े साती के फेर में फंसे कुंभ और मेष राशि वालों में से मई माह में अवतरण होने वालों का पगफेरा कुछ ज्यादा ही भारी है।

राज लाल आंखों का
सूबे की राजधानी में गुजरे दिनों लाल आंखों की काफी चर्चा रही। चर्चा हो भी क्यों ना , मामला ही कुछ ऐसा ही था। लाल आंखें बन्नाओं की हो तो समझ में आता है, लेकिन परशुराम वंशज अपनी लाल आंखें बन्नाओं को दिखाए, तो माजरा बदले बिना नहीं रहता। विद्या के नाम से बसे नगर में परशुराम वंशजों के प्रोग्राम में आए एक विधायक पुत्र बन्ना को देख परशुराम वंशज पार्षद की अचानक आंखें लाल हो गई। वहां आसपास मौजूद लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले ही मीन राशि वाले परशुराम वंशज ने अपने श्रीमुख से कड़ी वाणी की बौछारें कर दी। अपने बेचारे विधायक पुत्र के सामने पौष बड़ों से भरा दोना वापस रखने के सिवाय कोई चारा भी नहीं था, सो, चुपचाप ही खिसकने में अपनी भलाई समझी। लाल आंखों के राज का पता चला तो हर कोई मुस्कराए बिना नहीं रहा। यह सारा किया धरा बन्ना जी के समर्थकों की जल्दबाजी का नतीजा था। उनके साथ भी वो ही हुआ, जो बिन बुलाए मेहमानों के साथ होता है।

सरदार को सरदारों की तलाश
सूबे में इन दिनों एक सरदारजी को सरदारों की कमी खटक रही है। खटके भी क्यों नहीं, रात दिन सरदारों के बीच रहने वाले सरदारजी अकेले जो पड़ गए। सरदारजी भी पांच नदियों वाले सूबे से ताल्लुक रखते हैं और मरु भूमि में दो-दो हाथ करने पर उतारू हाथ वाले भाई लोगों का दमखम टटोलने आए हैं। सरदारजी जब भी हाथ वालों के ठिकाने पर कदम रखते हैं, तो बिना पगड़ी वाले की भीड़ देख उदास हुए बिना नहीं रहते। वैसे तो सरदारजी भी स्याणै हैं, जब भी आते हैं, अपने साथ पांच-छह पगड़ीदारी जरूर लाते हैं, ताकि अकेले नजर नहीं आए। अब सरदारजी को कौन समझाए कि यहां पगड़ीधारियों का बोलबाला होता, तो हाथ वाले भाई लोगों की यह दशा थोड़े ही होती। लाख कोशिशों के बाद भी शनि को पीसीसी से जयपुर डिविजन के हाथ वाले 34 में से 20 एमएलए दूर नहीं रहते।

- एल. एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

Tags: Politics

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