एमबीएस की ओपीडी में भर्ती मरीजों को आईवी सेट और सिरींज के भी लाले

ओपीडी के दवा काउंटरों पर भी दवाइयों का टोटा

एमबीएस की ओपीडी में भर्ती मरीजों को आईवी सेट और सिरींज के भी लाले

मरीज और तीमारदार तो दूर की बात अस्पताल के कुछ वरिष्ठ चिकित्सक अस्पताल प्रशासन की मरीजों को लेकर इस बेरूखी से हैरान और परेशान हैं।

कोटा। अगर आप बीमार है और आपको एमबीएस अस्पताल में भर्ती होना है तो आपको अपने साथ आईवी सेट और 5 एमएल की सिरेंज साथ लेकर जाना होगा। कारण उसका ये है कि वर्तमान समय में एमबीएस अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए अति आवश्यक ये दोनों वस्तुएं बीते करीब एक माह से आरएमएसई से नहीं आ रही हैं। इतना ही नहीं अस्पताल की ओपीडी में उपचार के लिए आने वाले मरीजों के लिए स्वीकृत लगभग 500 दवाओं में से भी दवा काउटंरों पर केवल 300 से 325 ही उपलब्ध हंै। अस्पताल में भर्ती मरीजों और ओपीडी में आने वाले मरीजों के लिए अस्पताल प्रशासन की ओर से दवाओं की उपलब्धता के हालातों के बाद ये कहा जा सकता हैं कि राज्य सरकार की ओर जरुरतमंदों को सरकारी अस्पताल में नि:शुल्क दवा उपलब्ध करवाने का जो प्रयास किया जा रहा है उस पर सरकारी अस्पतालों के कारिन्दे ही पानी फेर रहे हैं। भले ही अस्पताल प्रशासन की ओर से एनओसी के माध्यम से ये वस्तुएं उपलब्ध करवा दी जाती है लेकिन उस एनओसी को प्राप्त करने में भर्ती मरीज के तीमारदार को कितना पसीना बहाना पड़ता है, कितना दर्द सहन करना पड़ता ये केवल वो ही जान सकता है। विभागीय सूत्रों की माने तो बीते कुछ महीनों में खासकर डॉ. नवीन सक्सेना के देहान्त के बाद मरीजों को अस्पताल प्रशासन से नि:शुल्क दवाओं के लिए एनओसी प्राप्त करना भी काफी टेडी खीर हो गया है। मरीज और तीमारदार तो दूर की बात अस्पताल के कुछ वरिष्ठ चिकित्सक अस्पताल प्रशासन की मरीजों को लेकर इस बेरूखी से हैरान और परेशान हैं। कुछ चिकित्सकों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जब सरकार लोगों को नि:शुल्क दवा दे रही है और एनओसी के बाद दूसरी तय दुकानों से दवा लेने का बिल पास कर रही है तो अस्पताल प्रशासन को क्या दिक्कत आ रही है।

 सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एमबीएस अस्पताल में भर्ती मरीजों को रोजाना लगभग 300 आईवी सेट की जरुरत पड़ती है। वहीं प्रतिदिन करीब 700 से 1000, 5 एमएल सिरेंज की आवश्यकता होती है। इसके अलावा गेस्ट्रो के मरीजों के काम आने वाली लेक्टोलॉज सिरप कई दिनों से नहीं आ रही है। नतीजतन या तो भर्ती मरीज का तीमारदार इन दवाओं के लिए एनओसी प्राप्त करने के लिए कभी उपर तो कभी नीचे, कभी उसके पास तो कभी इसके पास चक्कर काटता रहे या पैसे काटकर दूसरे मेडिकल स्टोर से ले आए। ऐसे में तीमारदार किसी के हाथ जोड़ने की बजाए, बिना समय खराब किए सीधा मेडिकल स्टोर पर जाता है और जरुरत की हर दवा ले आता है।  कमोबेश कुछ ऐसे ही हालात ओपीडी मरीजों के लिए बने दवा काउटंरों के हैं। ये लगभग हर इंसान जानता है कि एमबीएस अस्पताल में चिकित्सक को दिखाना, जांच करवाना और उपचार प्रारम्भ करवाना सीधी या सरल बात नहीं है। मरीज जैसे-तैसे करके सारे काम कर भी लेता है और दवा लेने के लिए जब वो इन दवा काउंटर पर जाता है तो सबसे पहले तो उसे इस काउंटर पर जा, उस काउंटर पर जा सुनना पड़ता है। लम्बी कतार में लगने के बाद जब उसका दवा लेने का नम्बर आता है तो अन्दर बैठा कार्मिक उसकी पर्ची पर लिखी दवाइयों में से कुछ पर क्रॉस का निशान बनाकर ये कह देता है कि यहां तो ये दवाइयां ही बाकी की बाहर से ले लेना। यानि आपोडी के दवा काउटंरों पर दवाओं का टोटा है। 

इनका कहना हैं...
आरएमएसई से तो आईवी सेट और सिंरेज ही नहीं और भी कई दवाइयां नहीं आ रही है, अब उनका लंबा चौड़ा काम है। लेकिन एनओसी से मरीज को दवाइयां उपलब्ध करवा दी जाती है। 
- डॉ. दिनेश वर्मा, अधीक्षक, एमबीएस अस्पताल। 

काफी देर से दवा लेने के लिए लाइन में लगी थी, करीब आधे घंटे बाद जब नम्बर आया तो पता लगा कि पर्ची में लिखी 5 दवाईयों में से 2 तो हैं ही नहीं। अब ऐसी दवाइयों को डाक्टर लिखते ही क्यों हैं जो यहां मिलती ही नहीं है। 
- कौशल्या कुमारी। 

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इन दवा काउंटरों से दवाई लेना किसी किले को जीतने से कम नहीं है। अस्पताल प्रशासन को दवा काउंटरों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि भीड़ कम हो। मैं काफी देर से लाइन में लगा था, जब पर्ची दवा काउंटर पर काम करने वाले के पास गई तो उसने स्पीड से पर्ची पर दो-तीन क्रॉस के निशान बना दिए और बोल दिया कि यहां नहीं है। 
- दीपक कुमार। 

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