Kota Suicide: कोटा पर दाग लगाती आत्महत्या की घटनाएं

पिछले अगस्त महीने में ही कोटा में कोचिंग करने वाले छह छात्रों ने आत्महत्या कर चुके हैं

Kota Suicide: कोटा पर दाग लगाती आत्महत्या की घटनाएं

साल 2023 में अब तक कोटा में 24 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। उनमें 20 छात्र व चार छात्राएं शामिल हैं। इनमें से 16 छात्र नीट परीक्षा की व 8 छात्र जेईई परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।

राजस्थान का कोटा शहर देश में कोचिंग की सबसे बड़ी मंडी बन चुका है। यहां प्रति वर्ष लाखों छात्र कोचिंग करने के लिए आते हैं। जिससे कोचिंग संचालकों को सालाना कई हजार करोड़ रुपए की आय होती है। हालांकि कोटा आने वाले सभी छात्र मेडिकल व इंजीनियरिंग परीक्षा में सफल नहीं होते हैं। मगर देश की शीर्षस्थ मेडिकल व इंजीनियरिंग संस्थानों में चयनित होने वाले छात्रों में कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों की संख्या भी काफी होती है। इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों को प्रति वर्ष लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। बहुत से छात्रों के अभिभावकों की स्थिति इतना खर्च वहन करने की नहीं होने के उपरांत भी वह अपने बच्चों को इस आशा से कोटा भेजते हैं कि यदि वह परीक्षा में सफल हो जाता है तो भविष्य में इंजीनियर या डॉक्टर बन जाएगा। इसके लिए लोग लाखों रुपए के कर्ज के बोझ तले भी दब जाते हैं।

कोचिंग के बड़े केंद्र कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की घटनाएं शहर के दामन पर कलंक लगा रही है। पिछले अगस्त महीने में ही कोटा में कोचिंग करने वाले छह छात्रों ने आत्महत्या कर चुके हैं। साल 2023 में अब तक कोटा में 24 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। उनमें 20 छात्र व चार छात्राएं शामिल हैं। इनमें से 16 छात्र नीट परीक्षा की व 8 छात्र जेईई परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। इनमें बिहार के नौ, उत्तर प्रदेश के आठ, राजस्थान के चार, मध्य प्रदेश का एक, महाराष्टÑ के दो छात्र शामिल हैं। कोटा में आत्महत्या करने वाले 24 में से 15 छात्र ऐसे थे जिनके टेस्ट में कम नंबर आने के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या करने वालों में 10 छात्रावास में, दो निजी आवास में व 12 छात्र पेइंग गेस्ट में रह रहे थे। वर्ष 2012 से अब तक यहां 142 छात्रों ने आत्महत्या की है। कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या की घटनाओं से पूरा देश सकते की स्थिति में है। सरकार व प्रशासन द्वारा लाख प्रयासों के उपरांत भी कोटा के छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं नहीं रूक पा रही है। कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रों में से अधिकांश गरीब या मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं।

कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का मुख्य कारण छात्रों पर पढ़ाई करने के लिए पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दबाव को माना जा रहा है। कोटा में पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों में अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों से होते हैं। उनके अभिभावक आर्थिक रूप से अधिक सक्षम नहीं होते हैं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए वह लोग विभिन्न स्तरों पर पैसों की व्यवस्था कर बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। कोटा आने वाले छात्रों को पता है कि उनके अभिभावकों ने कितनी मुश्किल से कोचिंग लेने के लिए उन्हें कोटा भेजा है। ऐसे में यदि वह सफल नहीं होंगे तो उनके अभिभावक जिंदगी भर कर्ज में दबे रह जाएंगे। यही सोचकर छात्र हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता रहता है। इसके अलावा कोटा में पढ़ने वाले छात्रों पर पढ़ाई का भी बहुत अधिक दबाव रहता है। यहां चलने वाले सभी कोचिंग संस्थाएं कई शिफ्टों में संचालित होती है। जिसमें अलग-अलग बैच में पढ़ाई होती हैं। कोटा में पढ़ने वाले छात्रों पर मेडिकल या इंजीनियर की परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल करने को लेकर अभिभावकों व कोचिंग संस्थानों का दबाव होता है।

कोचिंग संस्थान भी अच्छा परिणाम दिखाने के चक्कर में छात्रों को मशीन बनाकर रख देते हैं। छात्रों पर हर दिन पढ़ाई का दबाव बना रहता है तथा साप्ताहिक टेस्ट पास करने के चक्कर में छात्र दिन-रात पढ़ाई करते रहतें हैं। जिससे ना तो उनकी नींद पूरी हो पाती है ना ही वह मानसिक रूप से आराम कर पाते हैं। ऐसे में छात्र जल्दी उठकर कोचिंग संस्थान में जाकर पढ़ाई करने व दिनभर पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण वह तनाव में आ जाता है। बाहर से आने वाले बहुत से छात्र पढ़ाई में पिछड़ जाने के डर से वह आत्महत्या जैसा अमानवीय कदम उठा लेते हैं। कोटा में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर विधायक पानाचंद मेघवाल ने विधानसभा में प्रश्न पूछा था। जिसके जवाब में सरकार ने आत्महत्या के प्रमुख कारण कोचिंग सेंटर में होने वाले टेस्ट में छात्रों के पिछड़ जाना, उनमें आत्मविश्वास की कमी होना, माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा होना, छात्रों में शारीरिक मानसिक और पढ़ाई संबंधित तनाव उत्पन्न होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम-प्रसंग शामिल हैं। कोटा कभी राजस्थान का बड़ा औद्योगिक नगर होता था। मगर श्रमिक आंदोलनों के चलते यहां के उद्योग धंधे बंद होते गए। आज कोटा में नाम मात्र के ही उद्योग रह गए हैं। वर्ष 1990 के दौरान कोटा शहर में कोचिंग संस्थान खुलने लगे थे। सन 2005 के आसपास तो यहां बड़ी संख्या में कोचिंग संस्थान स्थापित हो गए जिनमें प्रति वर्ष लाखों छात्र पढ़ने लगे। आज कोटा में कोचिंग संस्थान एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है।        

-रमेश सर्राफ  धमोरा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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