तेलंगाना विधानसभा चुनाव: त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
संभावित उम्मीदवारों को भी चिन्हित किया गया। ऐसा लग रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव एक तरफा नहीं होगा। मुकाबला समिति, कांग्रेस एंड बीजेपी के बीच त्रिकोणीय होगा।
कुछ महीने पूर्व कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में भारी बहुमत से जीतने के बाद अब कांग्रेस पार्टी यही इतिहास दक्षिण के तेलंगाना में दोहराने की तैयारी में जुटी है। पिछले हफ्ते कांग्रेस पार्टी की नव गठित केंद्रीय कार्य समिति पहली बैठक राज्य की राजधानी हैदराबाद में हुई। इसमें निकट भविष्य में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की रणनीति पर लम्बा विचार-विमर्श हुआ। मोटे तौर पर इन राज्यों में कर्नाटक विधानसभा चुनावों के मॉडल पर लड़ने का निर्णय किया गया। कर्नाटक विधानसभा चुनाव मुख्य रूप से मुफ्त रेवड़ियां बांटने के रणनीति के आधार पर लड़ा गया था। पार्टी की यह रणनीति पूरी तरह सफल रही। पार्टी ने मतदाताओं को पांच गारंटियां दीं। जिसमें 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली। प्रत्येक परिवार की मुखिया महिला को दो हजार रूपये मानदेय महिलाओं के सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा दिया जाना तथा शिक्षित बेरोजगार युवकों को प्रति माह 15,00 रूपये बेरोजगार भत्ता देने का वायदा शामिल था।
पार्टी की बैठक के बाद राजधानी में एक जनसभा का आयोजन किया गया। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन सभाओं में मतदाताओं से यह वायदा किया, अगर पार्टी इस राज्य में सत्ता में आती है न केवल यह पांच सुविधाएं देगी बल्कि घरेलू गैस सिलेंडर पर 500 रूपये अनुदान भी दिया जाएगा। उन्होंने इस तरह मतदाताओं को पांच के स्थान पर 6 गारंटियां दीं।
2014 में आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर पृथक तेलंगाना राज्य बनाया गया था। तब से यहां भारत राष्ट्र समिति (जिसका पूर्व नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति था) सत्ता में है। वस्तुत: नया राज्य बनाने के लिए इस क्षेत्रीय दल ने बड़ा आन्दोलन किया था। इसके नेता के तब से इस प्रदेश में इसी पार्टी का दबदबा है तथा चंद्रशेखर राव पार्टी के मुखिया के साथ राज्य के मुख्यमंत्री भी है। राज्य विधानसभा के कुल 119 सदस्य हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव लगभग एक तरफा थे। भारत राष्ट्र समिति लगभग 90 सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी को मात्र 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इसके अलावा यहां के एक क्षेत्रीय दल आल इंडिया इंडिया मजलिस-ए- इतिहादुल मुस्लिमीन। इसके नेता असदुद्दीन ओवैसी हैं जो लोकसभा के सदस्य हैं। यह पार्टी भारत राष्ट्र समिति के बहुत नजदीक हैं। इसके विधानसभा में सात सदस्य है।
राज्य में आमतौर पर भारत राष्ट्र समिति की छवि अच्छी है। पार्टी की सरकार अपने कार्यों के बल पर तीसरा चुनाव जीतने के लिए जोर लगा रही है। चूंकि चंद्रशेखर राव पार्टी के एक छत्र नेता है। इसलिए उन्हें पार्टी के उम्मीदवार तय करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं आती। पिछले चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची चुनावों से दो महीने पहले ही जारी कर दी थी। राजनीतिक विशेषज्ञ यह मानते हैं कि पार्टी को इसका भरपूर लाभ मिला। इस बार भी उन्होंने वही रणनीति दोहराई। उन्होंने एक महीना पूर्व ही पार्टी के सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
बीजेपी पिछले तीन साल से यहां अपने विस्तार में लगी है। लगभग तीन वर्ष पूर्व यहां हैदराबाद नगर निगम का चुनाव लड़ा था। चुनावों से पूर्व इस 150 सदस्यों वाली निगम में समिति के सदस्यों की संख्या 99 थी। जबकि बीजेपी के कुल मिलाकर 4 ही सदस्य थे। बीजेपी ने यहां चुनावों में सारी ताकत झोंक दी। केद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तक ने यहां आकर चुनाव प्रचार किया।
इसका फायदा बीजेपी को हुआ। भारत राष्ट्र समिति बड़ी मुश्किल से यहां ओवैसी के साथ मिलकर बहुमत जुटा पाई। इसका सदस्य संख्या बल 99 से घटकर 56 रह गई। बीजेपी के सदस्य 4 से बढ़कर 48 हो गए।
इस जीत के बाद से ही बीजेपी ने दक्षिण के इस राज्य में अपने विस्तार का रोड माप बनाना शुरू किया। पार्टी के संगठन में बड़े बदलाव किए। कुछ माह पूर्व यहां पार्टी की केंद्रीय कार्यकारणी की बैठक भी यहां की गई। कार्यकारणी के सभी सदस्यों को बैठक से तीन दिन पूर्व ही हैदराबाद पहुंचने के लिए कहा गया। इन सभी को अलग-अलग में विधानसभा क्षेत्रों में भेजकर पार्टी की जमीनी स्थिति की जानकारी जुटाने के लिए कहा गया।
संभावित उम्मीदवारों को भी चिन्हित किया गया। ऐसा लग रहा है कि इस बार विधानसभा चुनाव एक तरफा नहीं होगा। मुकाबला समिति, कांग्रेस एंड बीजेपी के बीच त्रिकोणीय होगा।
-लोकपाल सेठी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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