जाने राजकाज में क्या है खास
सूबे में जब भी सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव होते हैं, तो रामगढ़ वाले जुबेर भाई चर्चा में जरूर होते हैं। उनकी चर्चा एक तरफ ही नहीं, बल्कि दोनों दलों में होती है।
चर्चा में रामगढ़ वाले
सूबे में जब भी सबसे बड़ी पंचायत के चुनाव होते हैं, तो रामगढ़ वाले जुबेर भाई चर्चा में जरूर होते हैं। उनकी चर्चा एक तरफ ही नहीं, बल्कि दोनों दलों में होती है। हाथ वालों में रामगढ़ से ज्योंही खान भाई का नाम फिर से उछलने लगा है, कइयों की बांछे खिल गई, तो कुछेक के चेहरे पर मायूसी छा गई। भाईसाहब के साथ किस्मत से एक जुमला जुड़ा हुआ है। और जुमला भी कुछ सालों से सटीक बैठ रहा है। सो कहने वालों का मुंह भी नहीं रोका जा सकता। जुमला है कि जब भी जुबेर भाई का विधानसभा में पगफेरा होता है, तब हाथ वालों को विपक्ष में ही बैठने का मौका मिलता है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में भी माला फेरी जा रही है कि इस बार भी ऊपर वाला इस बार जुबेर मेम के बजाय जुबेर भाई की मनोकामना जरूर पूरी करे।
खेल किरोड़ी का
सूबे में चुनाव के लिए मतदान तो दिसम्बर को होगा, मगर दौसा वाले डाक्टर साहब का खेल अभी से शुरू हो गया। भगवा वालों की पहली सूची में कुछ सीटों पर किरोड़ी की छाप भी दिखाई देगी। हाथ वालों के साथ भगवा वालों में भी चर्चा है कि यह दिल्ली वाले भाई लोगों और मीनेश वंशज का मिलीभगत का खेल है। कहने वाले तो छाती ठोक कर उदाहरण तक देने में कोई हिचकिचाहट नहीं कर रहे। चर्चा है कि पचवारा में जिन सीटों पर कांग्रेस काफी मजबूत है, वहां भाजपा वाले जानबूझकर किरोड़ीजी की टीम को उतार रहे हैं, ताकि फायदा मिल सके। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि पिछले दिनों दिल्ली से मिले इशारों के बाद मीनेश वंशज ने भी अपनी उड़ान की रफ्तार बढ़ा दी है, चूंकि पचवारा में वैसे ही दस-बारह सीटें देने के लिए चौसर बिछाई जाने लगी है।
गुगली ने उलझाया
गुगली तो गुगली ही होती है, उसके फेर में आकर कई धुरंधर क्रिकेटर भी आउट होकर पेवेलियन में लौट जाते हैं। अब बेचारे नेताओं की तो बिसात ही क्या है, वे सिर्फ खुद को बचाने के चक्कर में सामने वाले को रन आउट कराने में भी संकोच तक नहीं करते। अब देखो ना जोधपुर वाले अशोक जी की गुगली ने भगवा वालों को ऐसे उलझाया कि उनके पास राम और मंदिरों को भूल शहादत की तरफ मुड़ने के सिवाय कोई चारा ही नहीं बचा। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि जब से जादूगरजी ने हाथ वाले राजकुमार को मंदिरों में घुमाया है, तब से भगवा वालों ने राम की जगह शहादत की रट लगाना शुरू कर दिया, जबकि 31 सालों से राम और मंदिरों के सिवाय कोई दूसरा शब्द जुबान पर आता ही नहीं था।
-एल.एल.शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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