कांग्रेस में बगावत का सिलसिला

कांग्रेस में बगावत का सिलसिला

कांग्रेस में अंदरुनी कलह का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। केरल विधानसभा चुनावों से पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर पार्टी को करारा झटका दिया है। पीसी चाको ने केरल कांग्रेस और आलाकमान पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार तय करने में गुटबाजी हावी रही है।

कांग्रेस में अंदरुनी कलह का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। केरल विधानसभा चुनावों से पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर पार्टी को करारा झटका दिया है। पीसी चाको ने केरल कांग्रेस और आलाकमान पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका आरोप है कि चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार तय करने में गुटबाजी हावी रही है। कांग्रेस में कोई लोकतंत्र नहीं बचा है। उम्मीदवारों की सूची के बारे में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के साथ कोई चर्चा नहीं की गई। उनने यह आरोप भी लगाया कि केरल में 6 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों का चयन दो समूहों ने अलोकतांत्रिक तरीके से किया। इसमें एक ए समूह का नेतृत्व ओमन चांडी और आई समूह का नेतृत्व रमेश चेन्नीथला कर रहे हैं। चाको ने कहा कि दोनों समूह दिवंगत नेता के. करूणाकरन और वरिष्ठ नेता एके एंटनी के समय से ही सक्रिय हैं। ए समूह का नेतृत्व एंटनी और आई समूह का नेतृत्व करूणाकरन करते थे। केन्द्रीय नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई नहीं है, जो पार्टी का नेतृत्व संभाल सके और ऐसे में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रही सोनिया गांधी ने यह जिम्मेदारी ली। चाको ने कहा कि कांग्रेस कार्य समिति ने एकमत से राहुल गांधी से आग्रह किया कि वह पार्टी के अध्यक्ष फिर से बनें, लेकिन वह तैयार नहीं हुए।

कांग्रेस में ग्रुप-23 से जुड़े विवाद की पृष्ठभूमि में चाको ने यह आरोप भी लगाया कि पिछले दो वर्षों से पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व सक्रिय नहीं है। पिछले एक साल के भीतर ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद चाको ऐसे दूसरे वरिष्ठ नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी है। चाको कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे हैं। याद करें कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह से टकराव के बीच सिंधिया पिछले साल मार्च में भाजपा में शामिल हो गए थे। सिंधिया खेमे के 20 से अधिक विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था, जिसके बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी। चाको ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अपना इस्तीफा भेज दिया है। यों तो केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने चाको के इस कदम पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। मगर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने उन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह बात वह व्यक्ति कहता है, जिसने दिल्ली में गुटबाजी को सक्रियता के साथ प्रोत्साहित किया और बढ़ावा दिया। बहुत देर कर दी हुजूर जाते-जाते।

कांग्रेस ने उन्हें लंबे समय तक दिल्ली का प्रभारी बनाया था। लेकिन वे शीला दीक्षित से निभा नहीं पा रहे थे। बल्कि उन दोनों के बीच की तनातनी का फायदा आम आदमी पार्टी ने बखूबी उठाया। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस दिल्ली में अपना खाता भी नहीं खोल पाई। पूरे 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर बैठने वाली कांग्रेस ने 2020 में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया। पार्टी को 5 फीसदी से भी कम वोट मिले। कांग्रेस के 66 में से 63 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इसके बाद पीसी चाको ने पार्टी के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि हार का ठीकरा वे शीला दीक्षित पर ही फोड़ते नजर आए थे। यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि पवन खेड़ा चाको के साथ किसी निजी खुन्नस में यह बात कह रहे हैं या पार्टी की सहमति से, क्योंकि खेड़ा शीला दीक्षित के बेहद करीबी रहे हैं। हालांकि पीसी चाको ने टिकट वितरण पर नाराजगी जताते हुए जिस तरह इस्तीफा दिया है, ऐसा लग रहा है कि वे शायद ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे। क्योंकि बेशक चाको जी-23 का हिस्सा न हो। मगर इस्तीफे के समय इस्तेमाल की गई शब्दावलियां जी-23 के नेताओं सरीखी ही है। इन नेताओं की केन्द्रीय नेतृत्व से आम शिकायत है कि वह उनकी योग्यताएं का सही इस्तेमाल नहीं कर रही है।

गौर करने की बात है कि ये वही नेता हैं, जिन्होंने दशकों तक कांग्रेस में रह कर सत्ता का सुख भोगा है। ये सभी नेता अपने जीवन का अधिकांश समय सत्ता में गुजार चुके हैं। उन्हें ना तो लंबे समय तक विपक्ष में रहने की आदत है, ना ही विपक्ष की सियासत करने का अधिक अनुभव। इनमें अधिकांश नेताओं का अपना कोई जनाधार नहीं है। वे कांग्रेस नेतृत्व यानी नेहरू-गांधी परिवार से अपनी निकटकता का लाभ उठाकर अपनी सियासत को अंजाम देते रहे हैं। पीसी चाको भी इसके अपवाद नहीं हैं। दो साल पहले उनने नेहरू-गांधी परिवार को मुल्क का पहला परिवार बताकर नया विवाद खड़ा कर दिया था। बेशक, नेहरू-गांधी परिवार के लिए अपनी निष्ठा और सदाशयता प्रकट करने के लिए उन्होंने ऐसा कहा हो, मगर उन्होंने तब नेहरू-गांधी परिवार के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी थी। क्योंकि भाजपा ऐसा बयानों का लाभ उठाना खूब जानती है। पीसी चाको अब उसी परिवार के खिलाफ बगावत पर उतर आए हैं। केरल की सियासत के जानकार पीसी चाको के इस्तीफे को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका बता रहे हैं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व और खासतौर से राहुल गांधी क्या वाकई इसे लेकर चिंतित हैं। ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि जी-23 को लेकर उनकी नीति तो यही समझ में आती है कि भीतरघात से बेहतर है कि बागियों का सामना किया जाए।
-शिवेश गर्ग (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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