उपचुनाव के बाद कांग्रेस संगठन में देखने को मिली कमजोरी, नेतृत्व में जल्द बदलाव की अटकलें

आलाकमान को जल्द ही बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है

उपचुनाव के बाद कांग्रेस संगठन में देखने को मिली कमजोरी, नेतृत्व में जल्द बदलाव की अटकलें

कांग्रेस आलाकमान ने जब इसके पीछे के कारण तलाशे, तो संगठन में नेताओं के गुट, कमजोरी और बिखराव की बातें देखने को मिली। 

जयपुर। लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनाव में प्रदेश कांग्रेस संगठन में आए उतार चढ़ाव पर कांग्रेस आलाकमान की निगाहें बनी हुई हैं। प्रदेश में संगठन की कमजोरी, गुट और बिखराव की सूचनाओं ने आलाकमान को जल्द ही बदलाव करने पर मजबूर कर दिया है। कुछ समय में ही आलाकमान यहां नेतृत्व बदलाव कर सकता है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बार 11 सीटें जीतकर संगठन का दमखम दिखाया, तो कुछ महीने बाद ही विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस की बड़ी संगठनात्मक कमजोरी देखने को मिली। उपचुनाव में कांग्रेस को 7 में से केवल एक सीट दौसा पर ही जीत मिली, जबकि उपचुनाव से पहले 4 सीट दौसा, देवली उनियारा, झुंझुनूं और रामगढ में कांग्रेस विधायक थे। कांग्रेस ने सभी 7 सीटों पर जीत का दावा किया, लेकिन अपने विधायकों वाली झुंझुनूं, देवली उनियारा और रामगढ़ सीट भी नहीं बचा पाई। कांग्रेस आलाकमान ने जब इसके पीछे के कारण तलाशे, तो संगठन में नेताओं के गुट, कमजोरी और बिखराव की बातें देखने को मिली। 

केवल कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट ही अपने प्रभाव वाली दौसा सीट बचा सके। पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा शेखावाटी क्षेत्र में झुंझुनूं और नागौर सीट पर कोई करिश्मा नहीं कर पाए। आलाकमान ने संगठन को मजबूत करने के लिए जल्दी ही यंहा नेतृत्व परिवर्तन का मानस बनाया है, ताकि स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव से पहले संगठन को मजबूत किया जा सके।

हरीश चौधरी की मुलाकातों ने बढ़ाई अटकलें
कांग्रेस सचिव और बायतू विधायक हरीश चौधरी के कुछ दिन पहले जयपुर में कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट और पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा से अलग -अलग मुलाकातों ने सियासी फेरबदल के संकेत मिलने लगे हैं। चौधरी की इस मुलाकात से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। कई लोग इस मुलाकात को राजस्थान में कांग्रेस के नए चेहरे के चयन से जोड़कर चर्चा कर रहे हैं। हरीश चौधरी पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। प्रदेश में उनकी गिनती पायलट खेमे वाले नेता के रूप में होती है। हरीश चौधरी की गांधी परिवार से भी नजदीकी है।

 

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