जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

सूबे में इन दिनों एक गाना हर कोई गुनगुना रहा है। और तो और सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर आने वाले हर वर्कर की जुबान पर है।

राज को राज रहने दो
सूबे में इन दिनों एक गाना हर कोई गुनगुना रहा है। और तो और सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर आने वाले हर वर्कर की जुबान पर है। गाना करीब 50 साल पुरानी धर्मा फिल्म का है। गाने के बोल हैं इशारों को अगर समझो तो राज को राज रहने दो। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि अटारी वाले भाई साहब समझे या नहीं समझे, मगर मिनेश वंशज डॉक्टर साहब के इस्तीफे के पीछे भी कोई राज जरूर है। अब कहने वालों का तो मुंह नहीं पकड़ा जा सकता, सो उन्हें गाने को गुनगुनाने से कोई रोक नहीं सकता। मगर सावन की घटाओं के बीच इसे पचवारा इलाके में जोर-जोर से जरूर गाया जाएगा। चूंकि सब कुछ ओपन हुए बिना नहीं रहेगा।

तरीका-ए-मैसेज
मैसेज तो मैसेज ही होता है, केवल उसे देने वालों के तरीके पर निर्भर होता है कि वह उसे कैसे दे। अब देखो ना अटारी वाले भाई साहब ने अपने तरीके से जहां मैसेज देना था दे दिया और सफल भी हो गए। केवल एक दर्जन नवरत्नों के साथ मेवाड़, मारवाड़ और शेखावाटी में जनता के बीच जाकर कइयों की बोलती बंद कर दी। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 के साथ ही इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर भी चर्चा है कि ठाले बैठे भाई लोगों ने दिल्ली दरबार के लिए हुई जंग में 11 सीटों पर हार को लेकर एक मुद्दा खड़ा करने की योजना बनाई थी, लेकिन उस पर अमल होने से पहले भाई साहब ने दिल्ली में पग फेरा कर लाल किले तक मैसेज दे दिया कि काम करने के लिए 30 रत्नों का होना जरूरी नहीं है। 

गूंगे, बहरे और अंधे
सूबे में इन दिनों गांधीजी के तीन बंदरों का जुमला खाकी वालों के बीच जोरों पर है। गुजरे जमाने में यह जुमला खादी पर सटीक बैठता था, पर अब खाकी पर फिट है। जुमला पीएचक्यू से शुरू होकर सचिवालय के गलियारों तक पहुंचा। लंच केबिनों में भी चटकारे लगा कर इसे सुनाया जा रहा है। हमें भी स्टेच्यू सर्किल पर खाकी वाले साहब ने सुनाया। खाकी में इन दिनों न कोई सुनता है, न कोई देखता है और न ही कोई बोलता है। आईओ वो करते हैं, जो ऊपर वालों का आदेश होता है। यानि कि वे गूंगे, बहरे और अंधे के समान है।

चर्चा में सुन्दरकांड
इन दिनों सुन्दरकांड को लेकर सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में चर्चा जोरों पर है। सुन्दरकांड भी कोई छोटा-मोटा पंडित नहीं बांच रहा, बल्कि राज की नंबर वन कुर्सी पर बैठते हैं, और गोवर्धनजी की नगरी से ताल्लुकात रखते हैं। जब से भगवा वाली पार्टी में दो-दो हाथ की नौबत आई है, तभी से भाई साहब ने सुन्दरकांड को पढ़ना शुरू किया है। भाई साहब न जगह देखते हैं और न ही वक्त। जब भी मन में आया, छोटी सी किताब जेब से निकाली और पढ़ना शुरू कर देते हैं। उनके अगल-बगल वाले कई मायने भी निकालते हैं, मगर भाई साहब अपनी धुन में मस्त रहते हैं। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि पंडितजी को भी किसी दूसरे पंडितजी ने बिन मांगे सलाह दे दी कि जो चल रहा है, वह ठीक नहीं है, सो सुन्दरकांड का पाठ करने में ही भलाई है।

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एक जुमला यह भी
इन दिनों सांगा बाबा की नगरी को लेकर एक जुमला जोरों पर है। जुमले की चर्चा ब्यूरोक्रेट्स से लेकर दोनों दलों के ठिकानों पर ही नहीं, बल्कि चौपालों तक भी होने लगी है। जुमला है कि सांगानेर के सांगा बाबा की इस बार राज से ट्यूनिंग ठीक नहीं बैठ रही। सो बाबा किसी न किसी बहाने राज को अपना असर दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। पहले तो सांगानेर वाले पंडितजी की आड़ में बाबा ने अपना चमत्कार दिखाया, तो साल के आखरी दिन शनि के बहाने से पूरा दोष ही कर दिया। अब राज करने वालों को कौन समझाए कि जब तक सांगा बाबा के खीर-पुए का भोग नहीं लगाओगे, तब तक उनकी नजरें टेड़ी ही रहेगी।

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-एल एल शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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