बीबीएफ पद्धति अपनाकर भारी बरसात में फसलें तबाह होने से बचाएं

करोड़ों की फसलें अतिवृष्टि की भेंट चढ़ी

बीबीएफ पद्धति अपनाकर भारी बरसात में फसलें तबाह होने से बचाएं

नाले को गहरा करने और साफ सफाई समय पर होती तो बच सकती भी फसलें।

भण्डेड़ा। दुगारी बांध के ओवरफ्लो की वजह से बांसी सहित आसपास के गांवों में खेतों में पानी भर गया और अन्नदाताओं की करोड़ों की फसल तबाह हो गई। कृषि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का कहना है कि भारी बरसात से फसलों को बचाने के लिए किसानों को बीबीएफ पद्धति से (नाली व मेड विधि) सोयाबीन व उड़द की फसलों की बुवाई करनी चाहिए। जिससे अतिवृष्टि में ज्यादा बरसात होने की स्थिति में बरसात का पानी नालियों से बाहर निकल जाता है। फसले खराब होने से बच सकती है। इस पद्धति से फसलों की बुवाई करने से मध्यप्रदेश में बहुत उपयोगी साबित हो रही है। जानकारी के अनुसार क्षेत्र में  दुगारी बांध का ओवरफ्लो का पानी की निकासी मोरी के सहारे बांसी के तालाब में पहुंच रहा है। बांसी के तालाब का ओवरफ्लो का पानी तीन जगह के नालों के सहारे निचले क्षेत्र मेज नदी में पहुंच रहा है। इस समय नालों की हालात देखी जाए तो लगता है कि यह नाले नही खेत नजर आते है। नाममात्र की जगह पर ही नाले नजर आ रहे है। क्षेत्र में इस समय लंबे समय से ही बारिश चल रही है। जिसका पानी, डैम व तालाब के ओवरफ्लो का पानी एक साथ नाले में बहाव होने से नालों में पानी ऊफान लेकर धरतीपुत्रों के खेतों में लबालब भरे हुए होने से यह पानी नालों में भी धीरे-धीरे निकलने से पानी खेतों की फसलों में अधिक समय तक रहने से हजारों बीघा फसलें बर्बाद हो गई है। संबंधित विभाग पानी निकासी की जगहों पर नालों का समय रहते नालों को अतिक्रमण से मुक्त करवाकर नालों की चौड़ाई व गहराई करवा देते तो तीन से चार गांव के धरतीपुत्रों की हजारों बीघा भूमि में धरतीपुत्रों की फसलें बच जाती तो धरतीपुत्रों को इसका नुकसान नहीं उठाना पड़ता। नालों की गहराई व चौड़ाई होने से बारिश का पानी खेतों का भी नाले मे पहुंच जाता व नाले ऊफान नही लेते व नुकसान की जगह फायदा मिलता। परिवार के भरण-पोषण में भी बाधाएं नही आती। 

 फसलें बर्बाद की एक वजह यह भी कि क्षेत्र में तालाबों के पानी निकासी के सभी जगहों पर नाले है। जिन पर नालों के दोनों तरफ के ही किसानों ने दोनों तरफ से अतिक्रमण भी कर लिया है। जो किसी जगह पर खेत बना दिया। किसी जगह पर संबंधित विभाग ने पट्टे जारी कर दिए। जिसमें मकान व बाड़े बना लिए। आबादी के अंदर संबंधित विभाग ने सड़कें बना दी। सड़कों की ऊंचाई होने से गांव के बाजारों में पानी अधिक ऊंचाई तक पहुंच गया। वही नालों को खेत का रूप देने से पानी ऊपरी क्षेत्र तक के खेतों तक पानी पहुंच गया। जो क्षेत्र में फसलें बर्बाद होने की यह वजह भी बताई जा रही है।  

बांसी के धरतीपुत्रों के खेतो में पानी भरने की समस्या का समाधान तीन जगह पर हो रहा है। तालाब की पानी निकासी के नाले की दस फीट गहरी व राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज नाले की चौड़ाई तक खुदाई हो जाए तो पूरे क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा नही होगें। पानी की निकासी बढे नालों तक पहुंचने से खेतों में जो पानी बारिश का होगा। वह भी इन्हीं में निकल जाएगा। इसका एक जगह का प्रयास मैंने किया था। नाले की गहराई हेतु स्वीकृति भी ली थी। पर कार्य शुरू करते ही खेत वालों ने आपत्ति जताते है। ऐसी स्थिति पास के खेत वालों ने नालों का मात्र नमूना रख रखा है। खेतों में मिलाने से नाले संकडे होते जा रहे है। तालाबों का ओवरफ्लो का पानी बारिश के साथ ही शुरू हो जाता है, जो पानी की निकासी में रूकावट पैदा हो जाती है।  बाढ़ जैसे हालत बन जाने से खेतों में फसलें लंबे समय तक जलमग्न हो जाती है। फसलें बर्बाद हो जाती है। संबंधित विभाग समय रहते सीमा ज्ञान करके नालों की गहराई व चौड़ाई बनाए तो समस्या का समाधान संभव है। 
- सत्यप्रकाश शर्मा, सरपंच

ग्राम पंचायत बांसी 
दुगारी बांध का पानी जहां निचाई है, वही पर अधिक निकासी होती है। संबंधित विभाग ने गांव में सीसी सड़कों का निर्माण भी करवा दिया। जिससे पानी ऊंचाई तक पहुंच जाता है। नाले के आसपास की जगहों में भी विभाग ने पट्टे जारी करने से मकान बनने से चौड़ाई कम हो गई। गांव में पानी भरने की समस्या अधिक होती जा रही है। पानी निकासी के नालों की गहराई नही हुई, जो पानी फैलकर निकलने से खेतों की फसलें तक भरा रहता है। नाले में जितनी-सी जगह है, उसी आधार पर निकासी हो रही है। नालों का रिकॉर्ड राजस्व विभाग के पास है। नालों की गहराई होती तो तीनों गांव के किसानों की फसलें बर्बाद होने से बच जाती।
- पीसी मीणा, एईएन जलसंसाधन विभाग नैनवां

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पानी की समस्या से जो हालात पैदा हो रहे है। इस समस्या का समाधान व उचित जानकारी जल संसाधन विभाग को है। हमारे राजस्व विभाग के रिकॉर्ड के नाले है। उनमें पानी निकासी में बाधा नजर आती है, तो बारिश रूकने पर समाधान के लिए देखा जाएगा। 
- रामराय मीणा, तहसीलदार राजस्व विभाग नैनवां 

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क्षेत्र में बारिश शुरू होने पर बारिश का बरसाती पानी फसल के खेत में इकट्ठा नही होना चाहिए है। बारिश जारी रहे, ऐसी स्थिति में बारिश का पानी खेत से निकलता रहे। प्रथम प्राथमिकता खेत की फसल के पानी निकासी की समुचित व्यवस्था हो तो फसल को बारिश से बचाया जा सकता है। बारिश के समय नालों का पानी भी खेतों में नही आए अगर पानी आता है, तो खेत की फसल में रहने से फसल की जड़े गलने लगेगी। धीरे-धीरे फसल सुखने लगेगी। फसल नष्ट हो जाती है, आसपास के नालों का पानी खेतों में फैलेगा तो पानी के साथ आने वाले कीटाणु भी सब्जियों की फसल को नुकसान पहुंचाता है, तो अन्य पानी भी पहले वाले खेतों में नही आना चाहिए। यही भारी बारिश से बचाव का उपचार है। 
- प्रेमराज गौचर, सहायक कृषि अधिकारी बांसी  

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काश्तकारों को लंबी अवधी में तैयार होने वाली फसलों को तैयार करना चाहिए। जिससे अतिवृष्टि  होने पर भी फसल बच जाती है। वर्तमान में खेतों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग ज्यादा हो रहा है।  जिससे मिट्टी कठोर हो हाती है। इस वजह से वह पानी को कम अवशोषित करती है।  किसानों को जैविद खाद का उपयोग करना चाहिए  जिससे मिट्टी में जल धारण बढ़ जाती है। जिससे खेतों में मिट्टी अधिक से अधिक पानी को अवशोषित करती है। अन्नदाताओं को मौसम विभाग की भारी बरसात की भविष्यावाणी को देखते हुए फसल बोने का चयन करना चाहिए। वर्तमान में काफी पहले ही भारी बरसात की चेतावनी आ जाती है। ऐसे में सीधी बुवाई वाली धान की फसल को बढ़ावा दे सकते है। अतिवृष्टि ज्यादा बरसात से सोयाबीन और उड़द की फसल को बचाने के लिए बीबीएफ पद्धति (नाली व मेड विधि) से बुवाई करे। इस पद्धति से बरसात का पानी नालियों से बाहर निकल जाता है। यह पद्धति मध्य प्रदेश में उपयोग में ली जाती है। जो काफी सफल साबित हो रही है। 
- डॉ. नरेश कुमार शर्मा, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कोटा

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