कुंभकारों ने चाक से तैयार कर दिए डेढ़ करोड़ दीये
पांच हजार कुंभकारों के जलेंगे उम्मीदों के दीपक
मशीन से ज्यादा देशी चाक पर विश्वास, पूजन के लिए अब भी साधारण दीपक पहली पसन्द ।
कोटा । इस बार कुंभकारों की इस दीपावली खुशियां लेकर आएगी। रामन्मोत्सव को धूमधाम से मनाने के लिए दीपोत्सव सहित कई कार्यक्रमों में मिट्टी के दीपक की डिमांड आ रही है। पिछले एक माह से कुंभकारों के चाक अनवरत चल रहे है। अब तक करीब डेढ़ करोड़ से अधिक के दीपक तैयार हो चुके है। इलेक्ट्रॉनिक दीपक और रोशनी की लड़ियों के आगे परंपरागत मिट्टी का दीपक बाजार की प्रतिस्पर्धा में पिछले कुछ साल से पिछड़ रहा है। बाजार में इस बार चाइनीज दीपक नहीं आए है। हाड़ौती संभाग के कुंभकारों को दीपावली से काफी आस रहती है। पिछले एक दशक से दीपक से घर रोशन करने का चलन कम हुआ है, उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक बिजली के बल्ब की लड़ियों ने ले लिया है। ऐसे में कुंभकारों की हालत पहले से पतली हो गई है। इस बार चाइनीज के बल्व की झालर बाजार में नहीं है। इसके चलते दीपक की डिमांड बढ़ने की उम्मीद कुंभकार लगा रहे हैं।
पत्थर के चाक पर काम करने से मिलती है संतुष्टि
धनराज प्रजापति ने बताया कि पुराने पारंपरिक पत्थर के चाक की जगह अब इलेक्ट्रॉनिक चाक ने ले ली है। उससे काम जल्दी हो जाता है। लेकिन जो आत्मीय जुड़ाव डंडे से मिट्टी के चाक चलाने में मिलता है वह मोटर चलित चाक पर नहीं मिलता है। मिट्टी के चाक में फिजिकल वर्क ज्यादा होने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और आइटम में फिनिशिंग अच्छी आती है।
देशी दीपक पर टेराकोटा दीपक पड़ रहा भारी
कुंभकार कैलाश प्रजापत ने बताया कि पिछले कुछ सालों से मिट्टी के साधारण दीपकों की डिमांड कम हुई है। अब लोग कलात्मक और स्टाइलिश दीपक की मांग करते हैं। हालांकि पूजन के लिए साधा दीपक की अभी डिमांड है। लेकिन लोग घरों में अब रोशनी के लिए लोग 10 से 20 दीपक ही लेकर जाते है। पहले एक व्यक्ति 50 से 100 दीपक लेकर जाता था। वर्तमान में मिट्टी के दाम बढ़ने से लागत भी नहीं निकलती, लेकिन पुस्तैनी कार्य है इसलिए कर रहे हैं। साधारण दीपक 2 रुपए में बिक रहा है वहीं टेराकोटा और डिजायन वाला दीपक 5 रुपए का एक बिक रहा है। 10 हजार दीपक तैयार किए अभी तक 2 हजार दीपक ही बिके हंै।
हाड़ौती में 5 हजार कुंभकार परिवार बना रहे दीपक
अखिल भारतीय प्रजापति कुंभकार महासंघ नई दिल्ली के राष्टÑीय उपाध्यक्ष नंदलाल प्रजापति ने नवरात्र के बाद से बाजारों में रौनक लौटी तो लघु उद्योग से जुड़े लोगों को फिर से रोजगार मिलने की आस बनी है। कुंभकारों के चाक इन दिनों तेजी से घूम रहे हैं। हाड़ौती में 5 हजार कुंभकार परिवार है, जो मिट्टी के बर्तन, दीपक, मुर्तियां बनाने का कार्य करते हैं। कोटा में करीब एक हजार परिवार हैं जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। अभी एक-एक कुंभकार 10 हजार से लेकर 20 हजार मिट्टी के दीपक तैयार करने जुटा है। करीब डेढ करोड़ दीपक तैयार हो चुके हैं।
मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण में आती है शुद्धता
ज्योतिषाचार्य पंडित अरुण श्रृंगी ने बताया कि पुरातन समय से ही घी के दीपक जलाकर पूजा अर्चना की जाती है। इसके पीछे का लॉजिक यह है कि घी के दीपक जलाने से वातावरण में शुद्धता आती है। पुराने समय से ही हवन यज्ञ धूप दीप जलाकर वातावरण को शुद्ध बनाते आ रहे हैं। जिससे नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। इससे लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है । पिछले तीन दशक से महंगाई और आधुनिक शैली के चलते घी के दीपक की जगह तेल के दीपक ने ले ली और अब तो इसका चलन भी कम होने लगा है। लोग घरों में दीपावली पर इलेक्ट्रानिक लड़िया और मोमबत्ती जलाने लगे हैं। इससे तो वातावरण शुद्ध होने के बजाए प्रदूषित हो रहा है।
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