शिक्षा के नाम पर लिया जाता है टैक्स व सेस
नरेन्द्र चौधरी
शिक्षा या पढ़ाई जीवन में कितना महत्व रखती है, यह इस बात से साबित होता है कि देश के कई खिलाड़ियों ने ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन करके मेडल जीते, लेकिन कभी खेलों के कारण पढ़ाई को नहीं छोड़ा। खेलों के साथ- साथ पढ़ाई पर भी गंभीरता से फोकस रखा। ओलंपिक में मेडल जीतना बड़ी उपलिब्ध होती है। प्रतिस्पर्धा इतनी कठिन और चुनौतीपूर्ण होती है कि उसकी तैयारी में कई-कई घंटों की कठिन मेहनत की जाती है। समय का अभाव भी रहता है। फिर भी शिक्षा को लेकर गंभीर रहना किसी चुनौती से कम नहीं होता।
कई खिलाड़ियों ने ये साबित भी किया कि खेलना उनके लिए जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त करना भी है। कई खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने खेलों के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त की तो वहीं कुछ खिलाड़ी खेलों के साथ-साथ पढ़ाई को भी जारी रख रहे हैं। उदाहरण के तौर पर ओलंपिक मेडलिस्ट शूटर मनु भाकर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से राजनीति विज्ञान में आनर्स की डिग्री हासिल की, लेकिन अभी भी वह पंजाब विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में डिग्री हासिल कर रही है। नीरज चोपड़ा ने मास्टर आफ फिजिकल एजुकेशन की डिग्री कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने ही उन्हें खेल के क्षेत्र में अधिक गहराई से अध्ययन करने और अपने कौशल को और बेहतर बनाने का मौका दिया।
पैरा शूटर अवनि लखेरा हो, पेरिस पेरालंपिक में रजत पदक जीतने वाले शरद कुमार या फिर क्रिकेटर रविचंद्रन अश्विन, इन्होंने ये साबित किया कि जीवन में शिक्षा का अहम रोल है। वहीं जब हम देश में शिक्षा के स्तर तथा देश में कितने लोग पढ़े लिखे है इस पर नजर डालते है तो यूनेस्को का कहना है कि भारत ने साल 2015 से 2024 के बीच, अपनी जीडीपी का लगभग 4.1 प्रतिशत से 4.6 प्रतिशत शिक्षा के लिए अलॉट किया। सरकार शिक्षा के लिए करदाताओं से टैक्स व सेस लेती है। इसके बावजूद देश में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम है। देश में ज्यादातर लोग पढ़ाई को महत्वपूर्ण नहीं समझते। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी निरक्षर वयस्क आबादी है। यूनेस्को के मुताबिक भारत में 287 मिलियन निरक्षर वयस्क है, जो दुनियाभर में निरक्षर वयस्कों की कुल आबादी का 37 प्रतिशत है। उनको इस बात का भी अहसास नहीं है कि करदाताओं की मेहनत की कमाई का कुछ हिस्सा सरकार इन्हीं चीजों के लिए लेती है। वह पढ़े या नहीं पढ़े, अनपढ़ ही रहे, लेकिन करदाताओं को तो टैक्स देना ही पड़ेगा। उनके पास कर चुकाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। जबकि जो पढ़ नहीं रहे उनके पास विकल्प मौजूद होता है, वह पढ़े या नहीं पढ़े। देश के सभी नागरिक शिक्षित हो या ना हो उनको तो कर समय से देना ही है। जब इतनी आबादी अशिक्षित है तो करदाताओं का पैसा जा कहां रहा है। शिक्षा के नाम पर टैक्स व सेस लिया जाता है। वह कहां जा रहा है? ऐसी स्थिति में करदाताओं के पास भी विकल्प होना चाहिए कि वह टैक्स दे या ना दें। जब शिक्षा पर टैक्स लिया जाता है तो हर व्यक्ति को शिक्षित किया जाना चाहिए। कम से कम सभी ग्रेजुएट हो, जिससे सभी को रोजगार मिले और आत्मनिर्भर बन सकें। आजादी की जंग में भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने में शिक्षा का योगदान रहा। जब शिक्षित हुए तभी देश आजाद हुआ। जो देश शिक्षित नहीं होंगे, वहां एक समान विकास भी नहीं होता है। जब देश का प्रत्येक नागरिक शिक्षित होगा तो देश का एक समान विकास होगा। शिक्षा किसी भी देश की रीढ़ होती है। देश की साक्षरता अगर कम होगी, सभी लोग शिक्षित नहीं होगें तो इससे देश को नुकसान ही है। यदि सभी शिक्षित हो जाएंगे तो देश में व्याप्त कई समस्याओं को जड़ से खत्म किया जा सकता है। शिक्षा एक निवेश है, जो हर व्यक्ति व देश के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है।
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