धरतीपुत्र लाचार, बम्पर आवक से किसान हो रहे परेशान

केन्द्र सरकार के पास अटकी पड़ी है फाइल

धरतीपुत्र लाचार, बम्पर आवक से किसान हो रहे परेशान

भामाशाह मंडी परिसर के विस्तार की दरकार ।

कोटा। भामाशाहमंडी में बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर तथा प्रदेश की अन्य मंडियों के मुकाबले यहां किसानों को जिंस का दाम ज्यादा मिलने के कारण माल की आवक लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में प्रतिदिन दो लाख बोरी से अधिक माल मंडी में बिक्री के लिए आ रहा है। कृषि जिंसों की तुलना में मंडी परिसर छोटा पड़ने से किसानों को परेशान होना पड़ता है। भामाशाहमंडी में हाड़ौती के अलावा मध्यप्रदेश के किसान भी माल बेचने आते हैं। राज्य बजट में भामाशाहमंडी के विस्तार की घोषणा की गई थी, लेकिन अभी तक सुस्ती के कारण प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया है। कृषि विपणन विभाग ने भामाशाहमंडी के विस्तार के लिए 96 हैक्टेयर वन भूमि का प्रस्ताव राज्य सरकार के माध्यम से केन्द्र को भेज रखा है। वहां पर अभी तक मामला आगे नहीं बढ़ा है। इस कारण किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए इंतजार करना पड़ता है। 

96 हैक्टेयर जमीन हस्तान्तरण का भेजा प्रस्ताव
भामाशाहमंडी में कुल माल की आवक का तीस फीसदी माल मध्यप्रदेश से आ रहा है। मंडी प्रशासन ने आगामी 40 साल की सभावनाओं को देखते हुए विस्तार के लिए 96 हैक्टेयर जमीन हस्तान्तरण का प्रस्ताव तैयार कर केन्द्र को भेजा है। मंडी विस्तार होने के बाद जिंसों की आवक भी दोगुनी बढ़ जाएगी और जाम से भी मुक्ति मिल जाएगी। विस्तार होने के बाद मंडी परिसर में ही रेलवे यार्ड, माल गोदाम बनाए जाएंगे, ताकि मंडी में कृषि जिंसों को परिसर में ही स्टोर किया जा सके और यहीं मालगाड़ी में लदान कर बाहर भेजा जा सके। पिछले डेढ़ दशक में कोटा कृषि विपणन के मामले में राजस्थान का हब बन गया है।  भामाशाहमंडी का सालाना टर्नओवर 6000 करोड़ रुपए है, जो कोटा में सबसे बड़ा व्यवसाय है।

फॉरेस्ट लैंड डायवर्जन के चलते अटकी फाइल 
मंडी प्रशासन के अनुसार मंडी एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव साल 2016 से सरकार के पास है। इसमें वन विभाग की जमीन का लैंड डायवर्जन होगा। इसके बाद यह जमीन मंडी प्रशासन को मिल पाएगी, तब एक्सटेंशन होना है. वन विभाग की जमीन मिलने में अभी समस्या आ रही है और फाइल अटकी हुई है। मंडी का एक्सटेंशन हो जाने के बाद 4 से 6 लाख बोरी रोज की आवक मंडी में हो सकेगी। फिलहाल यह दो से ढाई लाख बोरी तक ही सीमित है। इसी के चलते किसानों को माल बेचने के लिए इंतजार करना पड़ता है। क्षमता बढ़ने पर शेड बढ़ाए जाएंगे। इससे किसानों को फायदा मिलेगा और उन्हें माल बेचने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। 

प्रोसेसिंग इकाइयां लगे तो खुले समृद्धि के द्वार 
हाड़ौती अंचल में कृषि जिंसों का बपर उत्पादन होता है, लेकिन यहां प्रोसेसिंग यूनिट नहीं होने से दूसरे राज्यों के व्यापारी यहां से कच्चा माल ले जाकर अपने राज्यों में प्रोसेसिंग कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। हाड़ौती में ही प्रोसेसिंग इकाइयां लगे तो समृद्धि के द्वार खुल सकते हैं और सरकार का खजाना भी भर सकता है। बंपर कृषि उत्पादन के चलते भामाशाहमंडी भी अब छोटी पड़ने लबी है। प्रदेश में अकेले हाड़ौती में ही 95 फीसदी धनिया की बुवाई होती है, लेकिन प्रोसेसिंग यूनिट्स नहीं होने के कारण नामी मसाला कपनियां यहां से धनिया खरीद कर ले जाती हैं और मसाला बनाकर बेचती हैं। गुजरात और मध्यप्रदेश एग्रो प्रोसेसिंग के बड़े हब बन गए हैं। 

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सोयाबीन उत्पादन में हाड़ौती अव्वल
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट में भी हाड़ौती की धरती को पीला सोना यानी सोयाबीन उत्पादन के लिए अग्रिम पंक्ति में माना है। मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र के बाद राजस्थान देश का तीसरा बड़ा सोयाबीन उत्पादक है। कुल सोयाबीन उत्पादन में राजस्थान की 11 प्रतिशत हिस्सेदारी है। सोयाबीन फसल उत्पादन की दृष्टि से कोटा का राजस्थान में प्रथम स्थान है। खरीफ सीजन की सोयाबीन प्रमुख फसल है। हर साल करीब 6 से 7 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई होती है। उत्पादन पांच से साढ़े छह लाख मीट्रिक टन होता है। इस बार कोटा संभाग में धान की बुवाई एक लाख 70 हजार हैक्टेयर में हुई थी। अभी धान से मंडी अटी हुई है।

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इनका कहना है
भामाशाहमंडी परिसर का जल्द से जल्द विस्तार होना चाहिए। इस समय किसानों को उपज बेचने के लिए काफी परेशान होना पड़ रहा है। सर्दी के मौसम में दो से तीन दिन तक मंडी के बाहर इंतजार करना पड़ता है। परिसर का विस्तान होने के बाद किसानों को काफी राहत मिलेगी।
- सुल्तान गुर्जर, किसान

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भामाशाहमंडी परिसर के विस्तार के मामले में कृषि विपणन विभाग और वन विभाग के स्तर पर प्रक्रिया चल रही है। जमीन के सम्बंध में वन विभाग कई तरह की फॉर्मेलिटी को पूरा करता है। इस प्रक्रिया में समय लगता है। जो भी जानकारी निदेशालय मांगता है हम वो भिजवाते रहते हैं। मंडी का विस्तार होने से किसानों को काफी सुविधाएं मिलेंगी।
- शशिशेखर शर्मा, संयुक्त निदेशक, कृषि विपणन विभाग

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