राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र करेंगे करपात्री महाराज की बुक से पढ़ाई

करपात्री जी महाराज के दर्शन में छुपा है भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति का भाव

राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र करेंगे करपात्री महाराज की बुक से पढ़ाई

इन किताबों में धर्म की जय हो, धर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो सहित अन्य के बारे में जानकारी शामिल है।

जयपुर। राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में वेद और उपनिषद का पढ़ाया पाठ जा रहा है, इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने सिलेबस में करपात्री जी महाराज की दो किताबों को शामिल किया गया है। इन किताबों में धर्म की जय हो, धर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो सहित अन्य के बारे में जानकारी शामिल है। करपात्री जी महाराज ने अपनी किताबों के दर्शन में भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति का भाव छुपा है। 

भागवत पर प्रवचन श्रृंखला
मार्क्सवाद और राम राज्य में भारतीयता की शर्तों पर वेदांती दृष्टि से अनु प्रणीत अहिंसक समाजवादी दृष्टि की करपात्री जी महाराज ने स्थापना की। भक्ति रस अर्णव ग्रंथ में भक्ति तत्व की नवीन व्याख्या करते हुए उसका अद्वैत दर्शन के साथ समन्वय करने का प्रयास करते हैं।  

वेद का प्रमाण
वेद का प्रमाण वेद का स्वरूप और प्रामाणिक ग्रंथ में स्वामी जी द्वारा वेद शब्द के अर्थ वेद के अपरिषत तथा प्रामाणिकता पर विचार करते हुए सदाचार आर्य समाज पश्चिम के विद्वानों सी अरविंद, आनंद कुमार स्वामी आदि के मतों की समीक्षा करते हैं और पारंपरिक मत की स्थापना करते हैं। इस ग्रंथ में वेद की एक अति मौलिक व्याख्या करते हैं। 

स्वामी करपात्री जी महाराज मूल रूप से उपनिषद दर्शन तथा वेदांत परंपरा के विचारक थे, आजकल जिसे नव्या वेदांत कहा जाता है, वह 90 वेदांत की धारा स्वामी करपात्री जी महाराज की देन है। वैदिक परंपरा एवं उसकी अद्वैत धारा की प्रतिष्ठा के लिए कर स्वामी करपात्री जी महाराज ने लगभग 40 ग्रंथ लिखे। वेदांत पारिजात ग्रंथ में स्वामी करपात्री जी महाराज द्वारा महर्षि दयानंद और कुछ अन्य वेद विद्वानों के वेद विषय विचारों की समीक्षा कर आचार्य सहायक के मत की पुणे प्रतिष्ठा की।
-प्रो. अरविन्द विक्रम सिंह, हैड, दर्शान शास्त्र और डीन, कला संकाय, आरयू

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आरयू के छात्रों को वेद और उपनिषद् का ज्ञान प्रदान करने के लिए इस सत्र से पढ़ाई करवाई जा रही है। जिससे विद्यार्थियों को अपने धर्म के वेदों और उपनिषदें का विस्तार से ज्ञान हो सकें। 
-प्रो. अल्पना कटेजा, कुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।

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