पाक में औरंगजेब से प्यार, अकबर से नफरत; मुगल शासकों को लेकर क्या पढ़ाया जाता है? जानें सबकुछ

एक वर्ग औरंगजेब को महान बताने में लगा है

पाक में औरंगजेब से प्यार, अकबर से नफरत; मुगल शासकों को लेकर क्या पढ़ाया जाता है? जानें सबकुछ

भारत में औरंगजेब पर घमासान मचा हुआ है। महाराष्ट्र में तो औरंगजेब के नाम पर हिंसा तक हो गई है

इस्लामाबाद। भारत में औरंगजेब पर घमासान मचा हुआ है। महाराष्ट्र में तो औरंगजेब के नाम पर हिंसा तक हो गई है। एक वर्ग औरंगजेब को महान बताने में लगा है तो दूसरा वर्ग औरंगजेब की कब्र को ध्वस्त करने पर तुला है। लेकिन विभाजन के बाद पाकिस्तान में मुगल शासकों को लेकर लेकर क्या राय है? पाकिस्तान की किताबों में औरंगजेब और अकबर को कैसे पढ़ाया जाता है? जब हमने इसे जानने की कोशिश की तो हम काफी हैरान हुए। पाकिस्तान की किताबों में अकबर को जरूर एक महान राजा कहा जाता है, लेकिन उनके बारे में नफरती बातें लिखी हुई हैं। भारतीय किताबों में जहां अकबर को महान, न्यायप्रिय, सहिष्णु सम्राट बताया गया है, जिसने देश को अपने धर्म से ऊपर रखा है, वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं से अच्छा व्यवहार करने के लिए अकबर की निंदा की गई है। पाकिस्तान में औरंगजेब को एक महान मुस्लिम शासक बताकर सम्मानित किया गया है और कहा गया है कि उन्होंने अपने धर्म को सबसे ऊपर रखा। हालांकि अकबर को भी एक विजेता बताकर उनकी प्रशंसा की गई है, लेकिन उनकी धार्मिक नीतियों के लिए पाकिस्तान में उनकी निंदा की जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी इतिहासकार मुबारक अली ने अपने शोधपत्र अकबर इन पाकिस्तानी टेक्स्टबुक्स (1992) में लिखा है कि स्कूली किताबों के साथ-साथ अकादमिक कार्यों में भी, अकबर की आलोचना मुसलमानों और हिंदुओं के साथ समान व्यवहार करने और मुसलमानों की अलग पहचान को खतरे में डालने के लिए की जाती है।

पाकिस्तान में औरंगजेब और अकबर पर क्या है राय?

आपको बता दें कि इतिहासकारों ने अकबर को एक सहिष्णु राजा बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अकबर की धर्मनिरपेक्षता का जिक्र उसकी सुलह-ए-कुल या सार्वभौमिक सद्भाव की नीति में छिपी है। रहस्यवादी विचारक सूफी इब्न अरबी ने 12वीं शताब्दी में पहली बार इस धारणा को व्यक्त किया था। जिसमें माना जाता है कि राजा अपनी प्रजा के साथ एक निश्चित सामाजिक कॉन्ट्रैक्ट से बंधे होते हैं जो अपनी प्रजा को किसी भी धर्म का पालन करने की इजाजत देता है, बशर्ते कि सभी धर्म ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता देता हो। पाकिस्तानी किताबों में गायों के वध पर रोक लगाने, वेदों, महाभारत और रामायण का फारसी में अनुवाद करने का आदेश देने के लिए अकबर की आलोचना की गई है। अकबर ने शियाओं को दरबार में नमाज पढ़ने की इजाजत दी, इसकी निंदा भी की गई है। दूसरी तरफ इतिहासकारों में औरंगजेब को लेकर अक्सर बहस होती रही है। मुताबिक जदुनाथ सरकार जैसे कुछ लोग उसे एक रूढ़िवादी कट्टरपंथी मानते हैं, जबकि शिबली नौमानी जैसे अन्य लोग तर्क देते हैं कि उसके इरादे धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक थे। उदाहरण के लिए ए शॉर्ट हिस्ट्री आॅफ औरंगजेब में दावा किया है कि उसका मकसद भारत में एक पूर्ण इस्लामी राज्य दार-उल-इस्लाम की स्थापना करना था और सभी असंतुष्टों को मार डालना था। लेकिन नौमानी ने अपनी पुस्तक, औरंगजेब आलमगीर पर एक नजर में लिखा है कि इस्लाम के प्रति औरंगजेब का उत्साह एक संत के बजाय एक राजनेता जैसा था।

भारत और पाकिस्तान में औरंगजेब और अकबर
भारतीय इतिहासकार अकबर को एक इंसाफ पसंद, सहिष्णु मुस्लिम नेता मानते हैं। जोधा अकबर में अकबर को एक अलग ही तरह का महान सम्राट बनाकर पेश किया गया है। इसके विपरीत, औरंगजेब को गैर-मुसलमानों के खिलाफ उसकी क्रूरता, आधुनिक समय के जिहादियों पर उसके प्रभाव और मुगल साम्राज्य के पतन में उसकी भूमिका के लिए दोषी ठहराया जाता है। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में औरंगजेब को एक कट्टरपंथी और घनघोर कट्टरपंथीह्व बताया है, जो भारतीय शासक से ज्यादा एक मुसलमान की तरह काम करता था। लेकिन पाकिस्तान में औरंगजेब को एक आदर्श मुस्लिम नेता का अवतार माना जाता है। इस्लाम को लेकर औरंगजेब की धारणा की वजह से उसका सम्मान किया जाता है। अल्लामा इकबाल ने औरंगजेब को एक राष्ट्रवादी और भारत में मुसलमान राष्ट्रीयता के संस्थापक बताया है। मौलाना अबुल अला मौदूदी जैसे प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं ने इस्लाम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए औरंगजेब की प्रशंसा की है और पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य को मजबूत करने के लिए औरंगजेब के रास्ते पर चलने का आह्वान किया है। पाकिस्तानी पाठ्यपुस्तकों में मुगल साम्राज्य के पतन के लिए औरंगजेब को नहीं, बल्कि अकबर को जिम्मेदार बताया गया है। पाकिस्तानी किताबों में अकबर की वजह से मुगलों के कमजोर होने की शुरूआत बताया गया है।

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