महाकुंभ : अध्यात्म और आस्था की डुबकी, भव्य और दिव्य है महाकुंभ, सबसे पहले स्रान करते हैं नागा साधु

नागा साधु शुद्धता और साधना की मिसाल

महाकुंभ : अध्यात्म और आस्था की डुबकी, भव्य और दिव्य है महाकुंभ, सबसे पहले स्रान करते हैं नागा साधु

भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का प्रतीक है महाकुंभ। हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाला यह मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारत की पौराणिक परम्पराओं और आध्यात्मिक विरासत का उत्सव है

नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का प्रतीक है महाकुंभ। हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाला यह मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि भारत की पौराणिक परम्पराओं और आध्यात्मिक विरासत का उत्सव है। प्रयागराज, जहां तीन नदियों- गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, इस दिव्य आयोजन का केंद्र होता है। हर 12 वर्ष में प्रयागराज में संगम के किनारे महाकुंभ का आयोजन होता है। हम आज आपको महाकुंभ की वो कहानी बता रहें हैं, जिसका इतिहास और धार्मिक महत्व इसे दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे खास उत्सव बनाता है। देवों की पवित्र भूमि प्रयागराज, जहां मान्यता है कि जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है। मान्यता है कि प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी संगम में स्नान करने से पुण्यों की प्राप्ति होती है और पापों का प्रायश्चित। महाकुंभ सिर्फ पाप से प्रायश्चित का अवसर ही नहीं है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी है।

नागा साधु शुद्धता और साधना की मिसाल

संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी, 2025 से शुरू होकर, 26 फरवरी चलेगा। श्रद्धालुओं के साथ-साथ कुंभ में लाखों की संख्या में साधु-संत पहुंचते हैं और उनके लिए भी खास तैयारी की जाती है। इस पावन अवसर पर देश-दुनिया से आए करोड़ों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाएंगे। कुंभ मेले में बाबाओं के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं। कोई पेशवाई में अपने अनूठे करतब से अभिभूत कर रहा है तो कोई अपने अनूठे संकल्पों और प्रणों के कारण चर्चा में है। हर बार कुंभ में जुटने वाले नागा साधुओं की चर्चा सबसे ज्यादा होती है। इसका कारण है उनकी जीवन शैली, पहनावा और भक्ति। नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना तक नहीं की जा सकती। धर्म रक्षा के मार्ग पर चलने के दौरान नागा साधु अपने जीवन को इतना कठिन बना लेते हैं कि आम आदमी के लिए सोचना भी मुश्किल है। नागा साधु उन्हें कहा जाता है जो पूरी तरह से सांसारिक मोह माया से मुक्त होकर भगवान भोलेनाथ की आराधना में लिप्त रहते हैं। नागा साधु तपस्वी जीवन जीते हैं। ये संसार की सभी चीजों का त्याग कर शुद्धता और साधना की मिसाल पेश करते हैं।

17 शृंगार करते हैं, और अखाड़ों में लौट जाते हैं साधु  
हिंदू धर्म के 16 श्रृंगारों के बारे में तो सब जानते हैं, जो सुहागन महिलाएं करती हैं। लेकिन नागा साधु 17 शृंगार करते हैं और इसके बाद ही संगम में शाही स्नान के लिए डुबकी लगाते हैं। नागा साधुओं के यह 17 शृंगार हैं- भभूत, लंगोट, चंदन, पांव में चांदी या लोहे के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटना। रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में चिमटा, डमरू, कमंडल, जटाएं, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, विभूति का लेप और गले में रुद्राक्ष। नागा साधु 17 श्रृंगार के अलावा अक्सर त्रिशूल लेकर चलते हैं और अपने शरीर को भस्म से ढकते हैं। कपड़े के नाम पर वे सिर्फ लंगोट और कमर से नीचे व घुटने के ऊपर कुछ लपेटकर रहते हैं। महाकुंभ या कुंभ में सबसे पहले नागा साधु ही स्नान करते हैं, इसके बाद ही अन्य श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति होती है। महाकुंभ और कुंभ के आयोजन के दौरान तिथि और महत्व के हिसाब से शाही स्नान के लिए कुछ विशेष दिन निर्धारित होते हैं। इन सभी मौकों पर सबसे पहले नागा साधु ही संगम में स्नान करते हैं। महाकुंभ और कुंभ की समाप्ति के बाद सभी नागा साधु अपनी-अपनी रहस्यमयी दुनिया में लौट जाते हैं।

Read More भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ सहित नेताओं ने उड़ाई पतंग

महाकुंभ के बाद नागा साधु कहीं नजर नहीं आते। लोगों के मन में सवाल रहता है कि ये कहां चले जाते हैं और हर कुंभ, महाकुंभ में नजर आते हैं। दरअसल, नागा साधु महाकुंभ के बाद देश के अलग-अलग हिस्से में बने अखाड़ों में लौट जाते हैं। इनमें से कुछ हिमालय की गुफाओं और कंदराओं और कुछ देश के अन्य पहाड़ी इलाकों में चले जाते हैं। नागा साधुओं के दो सबसे बड़े अखाड़े, वाराणसी में महापरिनिर्वाण अखाड़ा और पंच दशनाम जूना अखाड़ा हैं। ज्यादातर नागा साधु यहीं से आते हैं।

Read More स्काउट का काम देश को योग्य, अच्छे और सुसंस्कारित नागरिक देना : दिलावर

Post Comment

Comment List

Latest News

पशु चिकित्सक और दलाल 12 हजार की घूस लेते गिरफ्तार पशु चिकित्सक और दलाल 12 हजार की घूस लेते गिरफ्तार
डॉ दिव्यम की मूल पोस्टिंग कुंभलगढ़ के प्रथम श्रेणी चिकित्सालय में है, लेकिन उस पर रीछेड़ पशु चिकित्सा केंद्र का...
दिल्ली विधानसभा चुनाव : बंट सकता है आप का वफादार वोट बैंक, ऑटो वाले इस बार विकल्पों पर कर रहे विचार
जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में जगह-जगह बनाए फूड कोर्ट और पिंक टॉयलेट 
तारागढ़ पर हजरत मीरा साहब के उर्स का झंडा चढ़ा, दरगाह रोशनी से जगमग
जरूरतमंद की मदद ईश्वर पूजा समान है : बिरला
भूखे-प्यासे मारे गए 100 से ज्यादा मजदूर
पुलिस की छापेमार कार्रवाई में जुआ खेलते 10 गिरफ्तार