सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोर्डिनेटर और उत्तराधिकारी के ओहदे से मुक्त कर दिया। कारण उनका अभी अपरिपक्व होना बताया।

परिश्रम और विकल्प!
मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोर्डिनेटर और उत्तराधिकारी के ओहदे से मुक्त कर दिया। कारण उनका अभी अपरिपक्व होना बताया। उन्होंने यूपी की चुनावी रैलियों में भाषा का असंयम दिखाते हुए बड़बोलापन दिखाया। जिससे पार्टी को फायदे के बजाए नुकसान की आशंका दिखी। सो, मायावती ने उन्हें चुनावी प्रचार से भी दूर कर दिया। लेकिन सवाल यह कि आनंद का राजनीतिक प्रशिक्षण क्या ठीक से नहीं हुआ? या फिर आनंद को जमीनी राजनीति का उतना ज्ञान नहीं? जो उनके ओहदे के मुताबिक होना चाहिए। उन्हें जिम्मेदारी देने में क्या जल्दबाजी की गई? जब से आनंद को मायावती ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया। तभी से पार्टी कैडर में बेचैनी सी। क्योंकि बसपा खुद को राजनीतिक दल ही नहीं। बल्कि बाबा साहब अंबेडकर के मिशन से भी जोड़ती। अभी चुनावी मौसम। परिवारवाद और वंशवाद पर पीएम चोट कर रहे। कहीं मायावती उसे महसूस तो नहीं कर रहीं?

कहां पहुंच गए?
कांग्रेस ने देश पर करीब 55 साल शासन किया। लेकिन आज हिंदी पट्टी ही नहीं। बल्कि लगभग चारों दिशाओं में वह समय के साथ मानो सिमटती सी चली गई। दक्षिण के तमिलनाडु में वह 50 साल से सत्ता से बाहर। तो पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी यही हाल। हिंदी पट्टी के यूपी और बिहार में लगभग चार दशकों से अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही। इसी प्रकार महाराष्टÑ में कांग्रेस एक क्षेत्रीय दल सी। आंध्रप्रदेश और असम में एक दशक हो गया सत्ता से बाहर हुए। पूर्वोत्तर में उसका स्थान अब भाजपा ने ले लिया। मध्यप्रदेश और गुजरात बारे में कुछ कहने की जरुरत नहीं। पंजाब और हरियाणा में भी पार्टी गुटबाजी से जूझ रही। अभी कांग्रेस तीन राज्यों- कर्नाटक, तेलंगाना एवं हिमाचल प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार। लेकिन इनमें भी कब कौन सी सरकार संकट में जा जाए। पता नहीं। ऐसे में, कांग्रेस कहां से कहां पहुंच गई?

हरियाणा का खेला!
हरियाणा के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम से आयाराम और गयाराम का दौर याद आ गया। भाजपा सरकार को समर्थन दे रहे तीन निर्दलीयों विधायकों ने पाला बदला। तो मानो सरकार की स्थिरता पर आ गई। फिर इसमें तड़का लगाया जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने। लेकिन दो दिन बाद ही जेजेपी के तीन विधायक पाला बदलकर सत्तापक्ष के साथ खड़े हो गए। कहीं यह कांग्रेस की आंतरिक राजनीति का परिणाम तो नहीं? हाल ही में चौधरी वीरेन्द्र सिंह कांग्रेस में वापस आए। लेकिन उनके बेटे ब्रजेन्द्र सिंह को हिसार से लोकसभा का टिकट नहीं मिल सका। जबकि पूर्व सीएम भूपिन्दर सिंह हुड्डा के बेटे दीपेन्दर सिंह रोहतक से टिकट पा गए। वह वर्तमान में राज्यसभा सांसद भी। अब कहीं ऐसा तो नहीं कि सीनियर हुड्डा ने अपनी पकड़ साबित करने के लिए तीन विधायकों को तोड़ लिया हो। फिर इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सीएम पद के प्रबल दावेदार भी!

केजरीवाल की जमानत
तो आखिरकार तमाम कानूनी दांवपेचों के बाद अरविंद केजरीवाल को सर्वोच्च न्यायालय से दिल्ली की शराब नीति मामले में चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिल ही गई। लेकिन कुछ शर्तों के साथ। जिसमें वह सीएम पद पर काम नहीं कर सकेंगे। न ही अपने आॅफिस जा सकेंगे। लेकिन इतने दिनों से जिस बात के लिए वह अपने नामचीन वकीलों के जरिए जमानत मांग रहे थे। क्या वह लक्ष्य पूरा हो सकेगा? क्योंकि दिल्ली में ‘आप’ चार, पंजाब की 13 और गुजरात एवं हरियाणा की एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही। मतलब उन्हें कुल 18 सीटों के लिए प्रचार करना। एक सीट गुजरात की पर मतदान हो भी चुका। ऐसे में आइएनडीआइए गठबंधन के लिए उनकी जमानत कितना फायदा देगी। यह देखने वाली बात। लेकिन इतना जरुर। उनके जेल जाने से आम आदमी पार्टी में जो तूफान खड़ा हो गया था। वह थोड़े दिन थम जरुर जाएगा। लेकिन अभी खतरा बाकी!

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शाह की स्वीकारोक्ति
भाजपा नेता अमित शाह ने स्वीकार किया कि राजस्थान में पार्टी इस बार शायद हैट्रिक नहीं लगा पाए। एक दो सीटें कम होने की संभावना। मतलब यह भाजपा नेतृत्व को भी आभास। सांसदों का संख्याबल राजस्थान में घटेगा। ऐसे में, अमित शाह की स्वीकारोक्ति के मायने क्या? इन सबसे वह प्रदेश भाजपा नेताओं को आगाह कर रहे या भविष्य का संकेत दे रहे? दिल्ली में चर्चा। प्रदेश में पंचायतीराज चुनाव तक मंत्रिमंडल फेरबदल संभव। जिसमें नॉन परफार्मर मंत्रियों को बाहर किया जाना संभव। उनके बदले जिनका नंबर नहीं लग सका था। शायद उन्हें अब अवसर मिले। इसके अलावा प्रदेश से इस बार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व घटेगा। यह भी तय। बल्कि उन राज्यों से ज्यादा मंत्री बनाए जाएंगे। जहां विधानसभा चुनाव होने वाले। सो, यह भी अपने आप में संदेश होगा। पिछली बार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के आंतरिक समीकरण अलग थे। लेकिन बदले हुए हालात में बिल्कुल अलग!

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बड़बोलापन
कांग्रेस अपने बड़बोले नेताओं से परेशान। पार्टी पहले भी इसका नुकसान उठा चुकी। उसके बावजूद पार्टी नेता यह समझने को राजी ही नहीं। देश में आम चुनाव चल रहे। आज चौथे चरण का मतदान। पहले भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स की बात करके कांग्रेस आलाकमान की मुश्किलें बढ़ाईं। उसके बाद मणिशंर अय्यर सोशल मीडिया पर एक विडियो के जरिए नमूदार हो गए। हालांकि दोनों ही नेताओं के बयानों से पार्टी नेतृत्व ने असहमति जताई। लेकिन जो नुकसान होना था। वह हो गया। उसकी भरपाई किसी पद से इस्तीफा देने या संबंधित बयान को व्यक्तिगत टिप्पणी बता देने से नहीं हो सकती। दोनों ही नेता पूर्व में भी कांग्रेस को बैकफुट पर लाने वाले बयान दे चुके। इसके बावजूद अपने में सुधार करने को राजी नहीं। इन सबसे जहां चुनावी प्रचार की रौ खराब होती। बल्कि सत्ता में बैठी भाजपा को बैठे बिठाए मुद्दे मिल जाते।

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-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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