हिन्द महासागर में बढ़ता चीनी वर्चस्व भारत के लिए मुफीद
भारतीय नौसेना ने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत बताई
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। जबकि यहां भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। भारत का समुद्री तट बहुत बड़ा है, लगभग 7,517 किलोमीटर
नई दिल्ली। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। जबकि यहां भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है। भारत का समुद्री तट बहुत बड़ा है, लगभग 7,517 किलोमीटर। यह पश्चिम एशिया,अफ्रीका और पूर्वी एशिया के व्यस्त व्यापार मार्गों के लिए महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों के बीच में स्थित है। भारत के पास अभी केवल दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं,जो अब उतने सक्षम नहीं हैं। तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर नौसेना की जरूरत ही नहीं,बल्कि आर्थिक विकास,रणनीतिक आवश्यकता और वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में भारत के उदय का प्रतीक भी होगा। भारतीय नौसेना ने सरकार से भी इसकी मांग की है। जबकि चीन अपनी परमाणविक पनडुब्बियों के बूते क्षेत्र में लगातार अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
भारत के लिए समुद्री सुरक्षा बहुत जरूरी है। इसलिए एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है। ये कैरियर समुद्र में भारत की ताकत को दर्शाते हैं और दूर देशों में भी हमारी रक्षा भी करते हैं। हॉर्मुज से मलक्का तक समुद्री रास्तों की सुरक्षा हमारे व्यापार के लिए जरूरी है। इस साल अदन की खाड़ी में हुए हमलों से भारत को भी नुकसान हुआ। भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। आईएनएस विक्रमादित्य रूस से 2013 में लिया गया था, जो पहले एडमिरल गोर्शकोव के नाम से जाना जाता था। आइएनएस विक्रांत 2022 में शामिल हुआ,जो भारत में बना पहला कैरियर है। यह भारत की तकनीकी ताकत दिखाता है।
हालांकि,परिचालन सीमाओं के कारण कभी-कभी केवल एक ही वाहक युद्ध के लिए तैयार रह पाता है। एक तीसरा वाहक होने से लगातार दो वाहक हमेशा तैनात रहेंगे। इससे भारतीय नौसेना पूर्वी और पश्चिमी दोनों समुद्री तटों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेगी और साथ ही मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों के लिए भी तैयार रह सकेगी। चीन अपनी नौसेना का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहा है। ये भारत के लिए भी सबक है। भारत को तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की जरूरत है। इस हफ्ते कुछ वीडियो सामने आए हैं। इनमें चीन का नया छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान पहली बार उड़ान भरता दिख रहा है। लेकिन चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर,फुजियान हकीकत बन गया है। इसने पहला समुद्री परीक्षण पूरा कर लिया है। जल्द ही इसे नौसेना में शामिल किया जाएगा,हालांकि कोई तारीख घोषित नहीं की गई है।
फुजियान 1 मई को शंघाई जियांगनान शिपयार्ड से अपने पहले समुद्री परीक्षण के लिए निकला था। 8 मई को यह वापस शिपयार्ड लौट आया। आठ दिनों के समुद्री परीक्षण के दौरान,फुजियान ने अपने प्रणोदन विद्युत प्रणालियों और अन्य उपकरणों का परीक्षण किया। 80,000 टन का यह एयरक्राफ्ट कैरियर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम से लैस है। यह तकनीक चीन को दुनिया की कई नौसेनाओं से आगे रखती है। चीन की योजना 2050 तक और भी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की है।
तीसरा वाहक जहाज बनाना केवल एक रणनीतिक फैसला नहीं है,बल्कि यह अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगा। विक्रांत परियोजना से सीधे 2000 रोजगार सृजित हुए,लेकिन इसके अलावा 13,000 और रोजगार भी अप्रत्यक्ष रूप से पैदा हुए। इस जहाज के निर्माण में बड़े उद्योगों के साथ-साथ कई छोटे और मध्यम उद्योगों ने भी हिस्सा लिया। इसे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया था। इससे रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी। एक नए वाहक जहाज की परियोजना से भी इसी तरह की आर्थिक गतिविधियां होंगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
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