राज्यसभा में पेश की देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाल स्थिति की तस्वीर, विपक्ष का दावा- देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थिति पहले से खराब
श्रीलंका और थाइलैंड जैसे देश भी स्वास्थ्य पर भारत से अधिक खर्च कर रहे
विपक्षी सदस्यों ने यह भी दावा किया कि कई राज्यों में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति केन्द्र की तुलना में कहीं बेहतर है
नई दिल्ली। राज्यसभा में विपक्षी दलों ने देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाल स्थिति की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि कुछ मानकों में देश बंगलादेश और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से भी पीछे है जबकि सत्ता पक्ष ने कहा कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से स्वास्थ्य क्षेत्र में कई गुना सुधार हुआ है। विपक्षी सदस्यों ने यह भी दावा किया कि कई राज्यों में स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति केन्द्र की तुलना में कहीं बेहतर है। द्रविड मुनेत्र कषगम के तिरूचि शिवा ने मंगलवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल बजट में इसके लिए मात्र 1.4 प्रतिशत का आवंटन किया गया है जो जीडीपी का केवल 0.02 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि अन्य देशों में यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट का आवंटन करते समय स्थायी समिति की सिफारिशों को नजरंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका और थाइलैंड जैसे देश भी स्वास्थ्य पर भारत से अधिक खर्च कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को इस स्थिति की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।
शिवा ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने राज्य के कुल बजट का 4.9 प्रतिशत स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में सबसे अधिक 79 मेडिकल कालेज हैं और राज्य में डाक्टर तथा रोगी का अनुपात देश भर में सबसे बेहतर है। उन्होंने कहा कि सरकार गैर संचारी रोगों पर काबू पाने में पूरी तरह विफल रही है। मानसिक रोगियों और मानसिक स्वास्थ्य को भी देश में नजरंदाज किया जा रहा है। मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए नीट परीक्षा को राज्यों पर थोपने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यह परीक्षा राज्यों से विचार विमर्श के आधार पर तय की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि विशेष रूप से दक्षिण के राज्य केन्द्र की तुलना में कहीं बेहतर स्वास्थ्य सुविधा ढांचा उपलब्ध करा रहे हैं। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में 50 प्रतिशत अस्पताल सरकारी हैं और 48 प्रतिशत निजी अस्पताल हैं जबकि अन्य राज्यों में सरकारी अस्पतालों की संख्या कम है। उन्होंने स्वास्थ्य बीमा पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाए जाने का भी मुद्दा उठाया और इसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि मदुरै एम्स अभी भी कागजों में ही अटका हुआ है और इसका काम जल्द शुरू किया जाना चाहिए। द्रमुक सदस्य ने कहा कि तमिलनाडु को परिवार नियोजन के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने के लिए परिसीमन के नाम पर दंडित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया आबादी के आधार पर नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि उत्तर के राज्यों में भी परिवार नियोजन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी के भागवत कराड़ ने इसका प्रतिवाद करते हुए मोदी सरकार के कार्यकाल में अस्पतालों से लेकर मेडिकल कालेज, मेडिकल सीटों , टीकाकरण और स्वास्थ्य ढांचे में कई गुना सुधार होने का दावा किया। उन्होंने कहा कि सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट निरंतर बढा रही है और इस बार भी इसे 1.9 प्रतिशत से बढकर 1.97 प्रतिशत किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में शिशु मृत्यु दर निरंतर कम हो रही है। डाक्टर और रोगी का अनुपात 1.2 प्रतिशत डाक्टर प्रति हजार रोगी पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि मेडिकल शिक्षा में सुधार के लिए कालेज और मेडिकल सीटों की संख्या भी निरंतर बढायी जा रही है। उन्होंने कहा कि आयुष्मान योजना का दायरा गिग वर्कर तक बढाया गया है। देश भर में 70 हजार अस्पतालों में से 26000 सरकारी और 44000 निजी अस्पताल हैं। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित चिकित्सा ढांचे को बढाये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दूर दराज के क्षेत्रों में भी डाक्टरों की सुविधा बढाई जा रही है।
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