हिन्द प्रशांत में नियम आधारित व्यवस्था हितधारकों की सुरक्षा के लिए जरूरी : आसियान के साथ भारत का रणनीतिक जुड़ाव दीर्घकालिक और सिद्धांत आधारित, राजनाथ सिंह ने कहा- दबाव से मुक्त रहना चाहिए क्षेत्र
ऐसे सुरक्षा ढांचे का निर्माण करना है
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में नौवहन, किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी क्षेत्रीय हितधारकों के सामूहिक हितों की रक्षा के लिए है।
नई दिल्ली। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था और नौवहन तथा उड़ान की स्वतंत्रता का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा है कि भारत का यह विचार किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसमें सभी क्षेत्रीय हितधारकों के सामूहिक हितों की रक्षा निहित है। सिंह ने मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की 12 वीं एडीएमएम-प्लस बैठक में अपने संबोधन में कहा कि भारत का कानून के शासन पर जोर, विशेष रूप से समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में नौवहन, किसी देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि सभी क्षेत्रीय हितधारकों के सामूहिक हितों की रक्षा के लिए है।
रक्षा मंत्री ने एडीएमएम-प्लस के 15 के वर्ष पर चिंतन और भविष्य का रास्ता तैयार करना विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आसियान के साथ भारत का रणनीतिक जुड़ाव लेन-देन संबंधी नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और सिद्धांत-आधारित है। यह इस साझा विश्वास पर आधारित है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र खुला, समावेशी और दबाव से मुक्त रहना चाहिए। सिंह ने समावेशीता और स्थिरता को मौजूदा समय में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि सुरक्षा में समावेशिता का अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि आकार या क्षमता की परवाह किए बिना सभी राष्ट्रों की क्षेत्रीय सुरक्षा को आकार देने में भूमिका हो। उन्होंने कहा कि स्थिरता का तात्पर्य ऐसे सुरक्षा ढांचे का निर्माण करना है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति लचीले हों, उभरते खतरों के अनुकूल हों और अल्पकालिक के बजाय दीर्घकालिक सहयोग पर आधारित हों। उन्होंने कहा कि भारत के लिए ये सिद्धांत उसके अपने रणनीतिक दृष्टिकोण के अनुरूप हैं। हिन्द-प्रशांत के लिए भारत का सुरक्षा दृष्टिकोण रक्षा सहयोग को आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी में साझेदारी और मानव संसाधन उन्नति के साथ एकीकृत करता है। सुरक्षा, विकास और स्थिरता के बीच अंतर्संबंध आसियान के साथ साझेदारी के लिए भारत के दृष्टिकोण को परिभाषित करते हैं।
एडीएमएम-प्लस को भारत की एक्ट ईस्ट नीति और व्यापक हिन्द-प्रशांत दृष्टिकोण का अनिवार्य घटक बताते हुए सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि आसियान और प्लस देशों के साथ रक्षा सहयोग को क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और क्षमता निर्माण में योगदान के रूप में देखा जाता है। उन्होंने कहा कि एडीएमएम-प्लस 16वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, भारत मतभेदों के समाधान के लिए संवाद और शांति एवं स्थिरता सुनिश्चित करने वाले क्षेत्रीय तंत्रों को मजबूत करने के लिए आपसी हित के सभी क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने को तैयार है। एडीएमएम-प्लस और आसियान के प्रति भारत का दृष्टिकोण समावेशी सहयोग, क्षेत्रीय स्वामित्व और सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि भारत महासागर यानी क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति की भावना के साथ संवाद, साझेदारी और व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से रचनात्मक योगदान जारी रखने के लिए तैयार हैं।

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