अफगान संकट

अफगान संकट

पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान में अफगानिस्तान को लेकर एक दिन मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई।

पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान में अफगानिस्तान को लेकर एक दिन मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। पाकिस्तान के सम्मेलन में 57 देशों के विदेश मंत्रियों और प्रतिनिधियों के अलावा अफगानिस्तान, रूस, अमेरिका व चीन और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में भारत को आमंत्रित नहीं किया गया। गौरतलब है कि भारत ने पिछले दिनों जब अफगानिस्तान पर पड़ोसी देशों के सुरक्षा सलाहकारों का सम्मेलन हुआ था तब भारत ने पाकिस्तान व चीन दोनों को आमंत्रित किया था, लेकिन दोनों देशों ने उसका बहिष्कार किया। भारत ने विदेश मंत्रियों का जो सम्मेलन बुलाया था उसमें मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम गणतंत्रों के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। ये देश पाकिस्तानी सम्मेलन में नहीं गए। पाकिस्तानी सम्मेलन में सिर्फ अफगानिस्तान था, जबकि भारतीय सम्मेलन में अफगानिस्तान से संबंधित सभी विषयों पर चर्चा की गई। सम्मेलन में शामिल कजाकिस्तान किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने भारत सहित अफगानिस्तान की हालात पर चिंता व्यक्ति की। इन सभी देशों पर अफगानिस्तान की हर घटना का असर पड़ रहा है। ये सभी देश अफगानिस्तान के पड़ोसी हैं। सभी देशों की बड़ी चिंता यह थी कि आखिर अफगानिस्तान की जमीन से होने वाले आतंकवाद से कैसे बचा जाए? भारत शुरू से ही इस बात पर जोर देता रहा है कि अफगानिस्तान को आतंकवाद का नया ठिकाना बनने से रोकना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो पाकिस्तान के बाद वह भी दुनियाभर में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर देगा। अफगानिस्तान इस समय न केवल भुखमरी और कंगाली से जूझ रहा है, बल्कि तालिबानी शासन भी जनता के लिए संकट बना हुआ है। अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता के चार महीने से ज्यादा का समय हो चुका है, लेकिन अभी तक वहां से यह संकेत नहीं मिला कि तालिबानी शासन दुनिया के साथ मिलकर चलना चाहता है। अफगानिस्तान के पड़ोसी देश इस बात से भी चिंतित हैं कि बड़ी संख्या में शरणार्थी उनके यहां पहुंच रहे हैं। तालिबानी लड़ाकों और अन्य आतंकी गुटों के बीच चल रहे संघर्ष से नागरिक खासा चिंतित हैं। महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। सभी पड़ोसी देश चिंतित हैं, लेकिन भारत की चिंताएं विशेष हैं। सभी पड़ोसी देश अफगानिस्तान की मदद को तैयार हैं, लेकिन तालिबानी सत्ता किसी के हितों को समझने को तैयार नहीं है।

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