जानलेवा हो रहा प्रदूषित भूजल
सबसे बड़ी समस्या बन चुका
समूची दुनिया में प्रदूषित भूजल जहां सबसे बड़ी समस्या बन चुका है, वहीं वह करोड़ों लोगों की मौत का सबब भी बन गया है।
समूची दुनिया में प्रदूषित भूजल जहां सबसे बड़ी समस्या बन चुका है, वहीं वह करोड़ों लोगों की मौत का सबब भी बन गया है। इसमें वर्तमान में तेजी से बढ़ रही भूजल स्तर और भूजल की गुणवत्ता में आ रही गिरावट इस खतरे की भयावहता का एक बहुत बड़ा कारण है। वहीं वह पीने के साफ पानी की कमी के भीषण संकट का संकेत भी है। दुनिया के शोध-अध्ययन सबूत हैं कि रेडियो एक्टिव पदार्थों और भारी धातुओं की भूजल में बढ़ती मात्रा ने भूजल की गुणवत्ता में जहां भारी गिरावट दर्ज की है, वहीं मानव जीवन को संकट में डालने में अहम योगदान दिया है। हांगकांग यूनिवर्सिटी आफ साइंस एण्ड टैक्नोलाजी के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि दुनिया के 156 देशों के भूजल में सल्फेट की मात्रा अधिक पाई गई है जिनमें भारत के अलावा अल्जीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, इटली, स्पेन, मैक्सिको, अमेरिका, ट्यूनीशिया, ईरान आदि देशों के भूजल में सल्फेट की मात्रा अधिकाधिक होने से लगभग 1.70 करोड़ लोग पेट और आंत की बीमारी की भीषण चपेट में हैं। अध्ययन के मुताबिक दुनिया में लगभग 194 मिलियन लोग 250 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक सल्फेट युक्त पानी के संपर्क में हैं। इसे डब्लयूएचओ ने भी माना है। रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में 1.70 करोड़ लोग 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक सल्फेट वाला पानी पी रहे हैं। इनमें से 82 फीसदी लोग भारत, अमेरिका, मैक्सिको, स्पेन समेत 10 देशों में रहते हैं। शोधकर्ता वैज्ञानिकों की मानें तो सल्फेट युक्त पानी स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है। सल्फेट के कारण पाइप भी गल जाता है। यही नहीं फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों को अलग करके पारिस्थितिकी के नुकसान का कारण भी बनता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण से सल्फेट की अधिकता भी बढ़ी है और इससे वैश्विक स्तर पर जल की गुणवत्ता भी गहरे तक प्रभावित होगी। जहां तक भारत का सवाल है, देश की अधिकांश आबादी पीने के पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर है। जल संकट का अहम कारण बढ़ती आबादी तो है ही जिसके चलते पीने का साफ पानी मुहैय्या करा पाना सरकारों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। 1960 के बाद से पानी की मांग दोगुनी से भी अधिक हो जाना भी एक बड़ा कारण है। 2050 तक पानी की मांग में 25 फीसदी से अधिक की और बढोतरी की चेतावनी ने यह सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर इस संकट का समाधान कैसे होगा यह तो सर्वविदित है कि भूजल दोहन के मामले में हमारा देश शीर्ष पर है। इसके चलते देश के उत्तरी गांगेय इलाके में तो भूजल खत्म होने के कगार पर है।
देश की राजधानी सहित देश के कई शहरों का डार्क जोन में आना और एनसीआर में गंभीर पानी का संकट इसका जीता जागता सबूत है। भूजल के मामले में पंजाब की स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर है क्योंकि वहां की 94 फीसदी आबादी पीने के पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर है। भूजल में बढ़ते प्रदूषण के परिणाम के कारण यहां के लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और वे गंभीर जानलेवा बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इसमें अच्छे मानसून के अभाव में यहां सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूजल का अत्याधिक उपयोग भी एक अहम कारण है जिससे यहां भूजल की मांग बढीÞ और वहीं भूजल की गुणवत्ता भी लगातार खराब होती चली गयी। नतीजतन भूजल में भारी धातुओं और रेडियो एक्टिव पदार्थों की मौजूदगी में तेजी से इजाफा हुआ। इस मामले में हरियाणा भी पंजाब से पीछे नहीं है। वर्तमान में भूजल की कमी वह चाहे हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा के मैदानी क्षेत्र तक ही नहीं, देश के सर्वत्र भूभाग में दिखाई देती है। असलियत में आर्सेनिक, नाइट्रेट, सोडियम, यूरेनियम, फ्लोराइड आदि की अधिकता के कारण भूजल की खराब गुणवत्ता की चिंता केवल पीने के साफ पानी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये सिंचाई के लिए भी नुकसानदेह साबित हो रही है।
आंध्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और उत्तर प्रदेश के भूजल के 12.5 फीसदी नमूने उच्च सोडियम की मौजूदगी के कारण सिंचाई के लिए अनुकूल नहीं पाए गए हैं। सोडियम का यह स्तर पानी को सिंचाई के लिए अनुपयुक्त बना देता है। देश के 440 जिलों के भूजल में बढ़ा नाइट्रेट का स्तर गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर रहा है। सीजीडब्लयूबी की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। पानी में नाइट्रेट प्रदूषण मुख्यत: नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों और पशु अपशिष्ट के अनुचित निपटान के कारण होता है। रिपोर्ट की मानें तो पानी के 9.04 फीसदी नमूनों में फ्लोराइड का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक और 3.55 फीसदी आर्सेनिक की मौजूदगी पाई गई। यह प्रदूषण पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों के लिए भयावह स्तर तक हानिकारक है। इससे कैंसर, किडनी, हड्डियों और त्वचा की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। नवजात शिशु: के लिए तो यह जानलेवा बन गया है। पीने के पानी में उच्च नाइट्रेट का स्तर नवजात शिशुओं में बेबी सिंड्रोम की वजह बन रहा है जिससे शिशु के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है।
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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