ट्रंप के फैसलों से जारी है दुनिया में हड़कंप

डोनाल्ड ट्रंप ने जब से शासन की बागडोर संभाली है 

ट्रंप के फैसलों से जारी है दुनिया में हड़कंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से शासन की बागडोर संभाली है, तब से उनकी ओर से लिए जा रहे ताबड़तोड़ फैसलों ने पूरी दुनिया में हड़कंप मचा रखा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से शासन की बागडोर संभाली है, तब से उनकी ओर से लिए जा रहे ताबड़तोड़ फैसलों ने पूरी दुनिया में हड़कंप मचा रखा है। फिर चाहे मामला गाजा से फिलस्तीनियों को विस्थापित कराने का हो या एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट की मदद पर रोक लगाने का हो। या इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का हो। मामला प्रिंस हैरी के वीसा मामले को फिर से खोलने का हो या अमेरिका से अवैध प्रवासियों को हथकड़ियां और बेड़ियां लगाकर उनके देश भेजने का। और अब तो ईसाइयों को संरक्षण देने के लिए बनाए जाने वाले आयोग के गठन का ऐलान भी कर दिया। 

जिसकी अमेरिका में ही कड़ी आलोचना हो रही है। 130 देशों को मदद देने वाले यूएसएड के दस हजार कर्मियों की छंटनी का मामला भी गरमा रहा है। ट्रंप अब स्टील और एल्यूमीनियम आयात पर 25 फीसदी टैरिफ  लगाने जा रहे हैं। यह फैसला ऐसे समय लिया गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 से 14 फरवरी तक अमेरिका दौरे पर हैं। भारत ने वर्ष 2023 में 4 बिलियन डॉलर का इस्पात और 1.1 बिलियन डॉलर का एल्यूमिनियम निर्यात किया है। ऐसे में मेटल इंडेक्स में 2.6 फीसदी की गिरावट आ गई। सेंसेक्स में 548 अंक की गिरावट आई सो अलग। ट्रंप का ताजा फैसला जिसमें उन्होंने अमेरिका के फॉरेन करप्ट प्रेक्टिसेज एक्ट 1977 को निरस्त कर दिया है। भारत के लिए यह अच्छी खबर है। इस कानून के निरस्त होने के साथ ही अमेरिका में अडाणी समूह के खिलाफ  की जा रही जांच रोक दी गई है। 

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले बाइडन प्रशासन की ओर से अडाणी समूह के खिलाफ  इस कानून के तहत जांच के आदेश दिए गए थे। पहले गाजा के मामले को लेते हैं। अमेरिका दौरे पर आए इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बातचीत के बाद ट्रंप ने गाजा क्षेत्र से फिलस्तीनियों को मिस्र और जॉर्डन में विस्थापित कर उस क्षेत्र को खाली करके बेहद खूबसूरत रेवेरा क्षेत्र में विकसित करने का ऐलान किया। उन्होंने इस प्लान के प्रति फिर से प्रतिबद्धता जाहिर की। गाजा के पुननिर्माण से नौकरियों के कई अवसर पैदा होंगे। इस घोषणा के तुरंत बाद सउदी अरब और कतर जैसे अरब देशों ने इस योजना का जबरदस्त तरीके से विरोध जताया। इस योजना के विरोध में मिस्र आगामी 27 फरवरी को आपातकालीन अरब शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। फिलस्तीन ने इस सम्मेलन की मांग की थी। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अलसिसी और जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने ट्रंप की भावी योजना का विरोध जताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया है। बता दें, वर्ष 1948 में फिलिस्तीन में इजराइल राज्य बनाया गया था। तब सात लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को इस क्षेत्र से विस्थापित होना पड़ा था। 

फिलिस्तीनी लोग इस जबरन सामूहिक निष्कासन को आपदा के रूप में आज भी याद करते हैं। वर्ष 1967 में हुए छह दिवसीय युद्ध के दौरान भी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र से फिलिस्तीनियों का निष्कासन हुआ था। कुछ गाजा चले गए, तो कुछ वेस्ट बैंक इलाके में। लगातार शांति वार्ताओं के बावजूद इजराइल ने फिलस्तीनी लोगों की घर वापसी के अधिकारों को पूरी तरह से नकार दिया था। पिछले 15 माह से गाजा क्षेत्र लगातार इजराइली बमबारी का सामना कर रहा है। ऐसे में फिलस्तीनियों को विस्थापित कर वहां सेना भेजने के वाशिंगटन के फैसले का विरोध होना स्वाभाविक है। अरब देशों के विरोध के स्वर उठते ही अब व्हाइट हाउस का यह कहना कि उसका मतलब फिलस्तीनियों केअस्थायी पुनर्वास से था। दरअसल ट्रंप की योजना से तीन बुनियादी समस्याएं हैं। सबसे पहले खुद फिलस्तीनियों ने ही यहां से जाने से इंकार कर दिया है। दूसरी समस्या है अरब देशों का विरोध। इसमें वे अरब देश भी शामिल हैं, जिन्हें अमेरिका से मदद मिलती है। वे फिलस्तीनियों को दूसरे अरब देशों में विस्थापित होते नहीं देखना चाहते। 

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तीसरी समस्या आशंकाओं भरी है कि कहीं गाजा के पुनर्निर्माण के पीछे ट्रंप का इरादा, इजराइल के एजेंडे को पूरा करने वाला न बन जाए। कहीं इसके पीछे उनके क्षेत्र में यहूदियों को बसाने की कोई योजना तो नहीं है। दरअसल अमेरिका को चाहिए कि वह अपनी किसी कार्ययोजना की बजाय गाजा में युद्धविराम को सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। अमेरिका को द्विराष्ट्र समस्या का न्याय संगत समाधान करने में पहल करनी चाहिए। ताकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता की स्थापना हो सके। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो फिलस्तीनियों के विस्थापित करने की कोई भी कोशिश हालात को और अधिक जटिल बना सकती है। खैर, इजराइल और हमास के बीच हाल ही हुए समझौते के तहत नेत्जारिम गलियारे से इजराइली सेना लौटने लगी है। 

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(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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