पारंपरिक व्यवसाय को निगल रहा है ई-कॉमर्स
व्यवसाय करने के परिदृश्य को पूर्णत बदल कर रख दिया
ई-कॉमर्स बिजनेस के क्षेत्र में किसी बड़ी क्रांति से कम नहीं है।
ई-कॉमर्स बिजनेस के क्षेत्र में किसी बड़ी क्रांति से कम नहीं है। इसने व्यवसाय करने के परिदृश्य को पूर्णत बदल कर रख दिया है। विक्रेता और क्रेता दोनों के नजरिए में परिवर्तन किया है। घर, ऑफिस, दुकान आदि हर सेवा क्षेत्र से संबंधित सामान ऑनलाइन उपलब्ध है। एक सुई से लेकर हवाई जहाज तक सबकी डील ऑनलाइन संभव हो चुकी है। यदि ई-कॉमर्स के इतिहास पर एक नजर डालें तो पाएंगे कि 1960 के दशक में, इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज मूल्य वर्धित नेटवर्क वैन के जरिए ई-कॉमर्स की शुरुआत हुई थी। 1990 के दशक में इंटरनेट का व्यावसायीकरण हुआ और ऑनलाइन शॉपिंग और पेमेंट की सुविधा को ई-कॉमर्स का नाम दिया गया। माना जाता है कि वर्ष 1999 में रेडिफ डॉट कॉम ने भारत में ई-कॉमर्स ऑनलाइन शॉपिंग शुरु की थी। इसी वर्ष के.वैथीस्वरन ने भारत की पहली ई-कॉमर्स कंपनी फैबमार्ट की स्थापना की थी। जिसका बाद में नाम बदलकर इंडियाप्लाजा कर दिया गया।
2002 में आईआरसीटीसी ने ऑनलाइन पेमेंट करके टिकट बुक करने का विकल्प दिया। 2003 में एयर इंडिया ने भी ऑनलाइन टिकट बेचना शुरू कर दिया। 2006 में यात्रा डॉट कॉम ने ऑनलाइन टिकट देने की सुविधा शुरू की। आज ई-कॉमर्स के क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियों ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। ई-कॉमर्स ईलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ने भारतीय बाजार में क्रांति ला दी है, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। जिसके भविष्य में दूरगामी प्रभाव को देखने को मिल सकते हैं जैसे ई-कॉमर्स के कारण पारंपरिक दुकानदारों, छोटे दुकानदारों और स्थानीय खुदरा व्यापारियों की बिक्री में गिरावट आई है। ग्राहक आज ऑनलाइन सामान, सस्ते दामों पर खरीदना पसंद करते हैं, जिससे स्थानीय व्यापार कमजोर हो रहा है। जबकि ग्राहक भूल जाता है कि दुकान से खरीदी गई सामान का खराब निकलने पर तुरंत बदला जा सकता है, जबकि ऑनलाइन खरीदारी में सामान के वापिस या बदलने के लिए कई नियम और शर्ते ऑनलाइन प्लेटफॉर्म द्वारा लगाई जाती हैं।
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स की माने तो ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव से देश भर में 40प्रतिशत तक व्यापार में गिरावट दर्ज की गई है।
भारत में करीब 7 करोड़ छोटे व्यापारी हैं, जिनमें से लाखों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के कारण नुकसान उठाना पड़ा है। ऑनलाइन खरीदारी में ग्राहक को उत्पाद देखने का मौका नहीं मिलता। कई बार नकली या घटिया या फिर डैमेज्ड सामान भेजा जाता है। एक सर्वे के अनुसार, 38प्रतिशत ग्राहकों ने माना कि उन्हें ऑनलाइन खरीदे गए उत्पाद की गुणवत्ता उम्मीद से कम मिली। फिक्की की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बिकने वाले नकली उत्पादों का 30प्रतिश से अधिक हिस्सा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से आता है। ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करती हैं। अगर यह डेटा लीक होता है, तो ग्राहक को धोखाधड़ी का सामना करना पड़ सकता है। ग्राहक डेटा की सुरक्षा में जोखिम की संभावना बनी रहती है। सी ईआरटी-इन के अनुसार, 2022 में भारत में लगभग 13 लाख साइबर सुरक्षा घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें ई-कॉमर्स वेबसाइटें भी शामिल थीं। वर्तमान डिजिटल अरेस्ट और साइबर क्राइम के बढ़ते जोखिम के कारण ई-कॉमर्स वेबसाइट और भी संवेदनशील बनती जा रही हैं।
बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियां भारी छूट देकर बाजार पर कब्जा कर रही हैं, जिससे छोटे व्यापारी प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। इसे एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा ही माना जा सकता है। एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 70प्रतिशत ऑनलाइन खरीदारी डिस्काउंट के चलते होती है, न कि ब्रांड या गुणवत्ता के आधार पर। ई-कॉमर्स कंपनियों में डिलीवरी बॉय और वेयरहाउस स्टाफ जैसे कामों में अस्थायी नौकरियां मिलती हैं, जिनमें वेतन कम और काम का दबाव अधिक होता है। नौकरी की अनिश्चितता हमेशा बनी ही रहती है। अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, भारत में ई-कॉमर्स सेक्टर के श्रमिकों में से 65प्रमिशत अनुबंध या अस्थायी कर्मचारी होते हैं। ई-कॉमर्स ने सुविधा, विकल्प और कीमतों में पारदर्शिता तो दी है, लेकिन इसके कारण स्थानीय व्यापार, उपभोक्ता अधिकार, और रोजगार की स्थिति पर नकारात्मक असर भी पड़ा है।
सरकार, नीति निर्धारक और अर्थशास्त्रियों को इस दिशा में विचार कर एक ई कॉमर्स और पारंपरिक व्यवसाय के बीच संतुलन बनाने की पहल करनी होगी अन्यथा पारंपरिक व्यवसाय जैसी अवधारणा समाप्त होने के साथ ही छोटे और माध्यम व्यवसाय वर्ग आर्थिक संकट के शिकार हो सकते हैं। भारतीय संदर्भ में पारंपरिक व्यवसाय आज भी लोगों की एक महत्वपूर्ण जरूरत बनी हुई है क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी आर्थिक रूप से इतना संपन्न नहीं हुआ है कि वह सारी खरीदारी कैश में कर सके।
-राजेंद्र कुमार शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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