आम का आनंद लीजिए, लेकिन सतर्क रहकर
लोग साल भर मौसम का इंतजार करते
भारत में गर्मियों का मतलब केवल चिलचिलाती धूप नहीं होता, बल्कि यह वह समय होता है, जब बाजार आमों से भर जाते हैं और घरों में आम से जुड़ी तमाम रेसिपियां बनने लगती हैं।
भारत में गर्मियों का मतलब केवल चिलचिलाती धूप नहीं होता, बल्कि यह वह समय होता है, जब बाजार आमों से भर जाते हैं और घरों में आम से जुड़ी तमाम रेसिपियां बनने लगती हैं। आम को फलों का राजा यूं ही नहीं कहा जाता। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि लोग साल भर इसके मौसम का इंतजार करते हैं, लेकिन बढ़ती मांग ने आम के उत्पादन और आपूर्ति को लेकर एक गंभीर समस्या को जन्म दिया है, जिससे न केवल उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ रही है। यह समस्या है रसायनों की मदद से आम पकाना, विशेष रूप से कैल्शियम कार्बाइड जैसे घातक रसायन का उपयोग करना। कैल्शियम कार्बाइड एक औद्योगिक रसायन है, जिसका मूल उपयोग वेल्डिंग और एसिटिलीन गैस बनाने में होता है। लेकिन कई फल व्यापारी इसका उपयोग फलों को जल्दी पकाने के लिए करते हैं, खासतौर से आम के मामले में। बाजार में समय पर आम पहुंचाने और अधिक मुनाफा कमाने की होड़ में बहुत से व्यापारी प्राकृतिक पकने की प्रक्रिया का इंतजार नहीं करते और इन रसायनों का सहारा लेते हैं।
जब कैल्शियम कार्बाइड को नमी के संपर्क में लाया जाता है, तो यह एसिटिलीन गैस उत्पन्न करता है, जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले इथाइलीन हार्मोन की तरह काम करता है। यह गैस आम को तेजी से पकाती है और दो दिन के भीतर फल को पीला कर देती है। लेकिन यही प्रक्रिया स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाती है। एसिटिलीन गैस के साथ कैल्शियम कार्बाइड से आर्सेनिक और फॉस्फोरस जैसे हानिकारक तत्व भी निकलते हैं, जो फल में अवशिष्ट रूप से रह सकते हैं। इनसे मनुष्य के शरीर में तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे गले में खराश, जलन, चक्कर आना, प्यास लगना, उल्टी आना, त्वचा में अल्सर और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं। यही कारण है कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर पूर्णत प्रतिबंध लगा रखा है।
बावजूद इसके, इसका गैरकानूनी उपयोग आज भी जारी है। समय-समय पर छापेमारी कर इस तरह के आमों की जब्ती की खबरें सामने आती रहती हैं। मई 2024 में कोयंबटूर में 575 किलो आम जब्त किए गए थे, जिन्हें अवैध रूप से कैल्शियम कार्बाइड से पकाया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस रसायन का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है और जागरूकता की कमी के कारण उपभोक्ता अनजाने में स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि उपभोक्ता स्वयं सतर्क रहें और कुछ आसान तरीकों से पहचान कर सकें कि उनके द्वारा खरीदा गया आम प्राकृतिक ढंग से पका है या रसायन के जरिए। सबसे आसान तरीका है पानी परीक्षण। एक बाल्टी में आम डालें, अगर आम डूब जाए तो समझिए कि वह प्राकृतिक रूप से पका हुआ है, लेकिन अगर वह तैरे तो उसके रसायन से पकने की संभावना अधिक है।
दूसरा तरीका है उसका रंग और बनावट देखना। प्राकृतिक रूप से पके आमों का रंग एक समान पीला होता है, जबकि रसायन से पके आमों में कभी बहुत पीला, कभी हरा या काले धब्बे दिखाई देते हैं। उनके ऊपर अक्सर अनियमित रंगों के चकत्ते होते हैं। ऐसे आम को छूने से भी अंतर पता चलता है, प्राकृतिक आम थोड़ा ठोस होगा जबकि रसायन से पका आम अत्यधिक नरम और बेडौल हो सकता है। स्वाद के आधार पर भी अंतर महसूस किया जा सकता है। अगर आम खाने के तुरंत बाद गले में जलन हो या जीभ पर तीखापन महसूस हो तो यह संकेत हो सकता है कि उसमें हानिकारक रसायन मौजूद हैं। हालांकि यह तरीका वैज्ञानिक नहीं है, परंतु अनुभव के आधार पर कई बार सटीक साबित होता है। इन तमाम खतरों को देखते हुए उपभोक्ताओं को सजग रहना चाहिए।
बाजार से आम खरीदते समय हमेशा ध्यान दें कि वह किस स्रोत से आ रहे हैं। जब भी संभव हो, स्थानीय किसानों से सीधे आम खरीदने का प्रयास करें, जो बिना रसायनों के आम उगाते हैं। फल को अच्छी तरह धोकर और कुछ समय पानी में भिगोकर ही खाएं ताकि उसकी सतह पर लगे किसी भी अवशिष्ट रसायन को हटाया जा सके। इसके साथ ही सरकार और प्रशासन को भी इस पर कड़ी निगरानी बनाए रखने की जरूरत है। खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को नियमित जांच करनी चाहिए, जिससे बाजार में इस तरह के अवैध आम न पहुंच सकें। आम जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वह इस विषय को गंभीरता से लें और स्वस्थ फलों का चयन करें। आज जब स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, तब यह और भी जरूरी हो जाता है कि हम केवल स्वाद नहीं बल्कि सुरक्षा को भी प्राथमिकता दें। आम का आनंद लीजिए, लेकिन सतर्क रहकर, ताकि यह मीठा फल आपके स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाए।
-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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