जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

सूबे में भगवा वाले कुछ भाई लोगों की नजरें कहीं न कहीं टिकी रहती हैं। पहले दिल्ली दरबार के नतीजों पर टिकी थी तो अब पड़ोसी सूबे हरियाणा में हो रही चुनावी जंग के नतीजों पर टिकी हैं।

अब नजरें हरियाणा की ओर
सूबे में भगवा वाले कुछ भाई लोगों की नजरें कहीं न कहीं टिकी रहती हैं। पहले दिल्ली दरबार के नतीजों पर टिकी थी तो अब पड़ोसी सूबे हरियाणा में हो रही चुनावी जंग के नतीजों पर टिकी हैं। भगवा वालों के ठिकाने पर चर्चा है कि इन नतीजों का असर सूबे की राजनीति पर भी दिखाई देगा। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि एक खेमे को लोगों को रात दिन राज की कुर्सी के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। इसके लिए पसीने बहाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अब इन भाई लोगों को कौन समझाए कि सियार के उतावलेपन से बेर नहीं पकते।

चर्चा दिन में सपनों में खोने की
वैसे तो राज किसी का भी हो काज करने वालों की नजरें सिविल लाइन्स की तरफ ही टिकी रहती हैं। छोटे-मोटे नेताओं का जमावड़ा भी बंगला नंबर आठ और 13 पर दिखाई देता है, लेकिन इस बार सिविल लाइन्स की तरफ कई लोग टकटकी लगाए बैठे हैं। सूबे की शहरी सरकारों के चुनावों के लिए भगवा वालों में कई बड़े नेता तो पहले से ही लाइन में हैं। चर्चा है कि अब तो कई छुटभैये नेता भी सिविल लाइन्स के सपनों में खोए हुए हैं। इन नेताओं ने शनि को अटारी वाले भाई साहब की अगवानी करने में भी अपनी अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

तीतर गए 13 के भाव
बीकाणा में इन दिनों तीतर गए 13 के भाव और खरगोश हो गए खालसा वाली कहावत काफी चर्चा में हैं। बीकानेरी नमकीन के चटकारों के साथ जमाली चौक के पाटों पर लोग बतियाते हैं कि  25 में से 14 सीटें देने वाला मरु प्रदेश जिस ढंग से नमो टीम के बाद निर्मला सीतारमणजी के बजट में भागीदारी नहीं पा सका, उसी तरह तीन दिन राज के ठहरने के बावजूद बीकाणा की उम्मीदों पर पानी फिर गया। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में बतियाते हैं कि तीतर और खरगोशों की संख्या के अनुपात में बीकाणा का खयाल रखा गया तो सूरसागर की पाल पर बनी चौपाटी की ठण्डी हवा के झौंकों का भी अलग ही आनंद होगा।

माहिरता पब्लिसिटी में
महामहिम का पहले महीने ही आदिवासियों के प्रति प्रेम क्या उमड़ा भाई साहब के खेमे को चिंता में डाल दिया। बैठे ठाले राज की एसटी नीति पर सवाल निशान जो लग गया। फ्लैगशिप योजनाओं में रात दिन भाग दौड़ करने वाले साहब लोग भी समझ नहीं पा रहे कि महामहिम को मैथी के लड्डू कहां से हाथ लग गए, सो आते ही सक्रिय हो गए। अब उनको कौन समझाए कि यह भवन ही ऐसा है, जो भी उसमें आता है, राज करने और पब्लिसिटी लेने में माहिर होता है। मैडम के वक्त भी दिल्ली वाले खुराना साहब ने अश्कजी की आड़ में जो कुछ किया था, वह भी आदिवासियों प्रति प्रेम का ही राज था।

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अब आसरा सिर्फ ब्यूरोक्रसी
राज के नवरत्नों की परफोरमेंस को लेकर दिल्ली दरबार में भी चिंतन-मंथन का दौर जारी है। अमित भाई से लेकर नड्डा जी तक माथापच्ची कर चुके हैं, मगर बेस्ट परफोरमेंस वाले नवरत्नों का आंकड़ा छह को भी पार नहीं कर पा रहा। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि अब भाई साहब को केवल ब्यूरोक्रेसी के मुखिया लखनऊ वाले साहब से ही आस है।

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