जानें राज काज में क्या है खास
बढ़े होली के रंगीले, घटे बहरूपिए
सूबे में इन दिनों एक कहावत की चर्चा जोरों पर है।
करे कोई, भरे कोई :
सूबे में इन दिनों एक कहावत की चर्चा जोरों पर है। चर्चा भी छोटी-मोटी नहीं, बल्कि सदियों पुरानी है और पूर्वजों ने अपने अनुभव के आधार पर ठोक बजाकर बनाई है। सो करे कोई और भरे कोई वाली यह कहावत आज भी सटीक बैठती है। अब देखो ना, पिछले दिनों सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में जो कुछ हुआ, उसके पीछे हाथ किसी और का ही था, लेकिन बेचारे अलवर के गांव वाले भाई साहब को हाथा जोड़ी करने के साथ माफी तक मांगनी पड़ गई। दोनों दलों के नेताओं की मूछों के सवाल के फेर में हुए हंगामे से नुकसान सिर्फ पब्लिक को भुगतना पड़ा।
शूज कंपनियों की बढ़ती सक्रियता :
सूबे में अचानक कई शूज कंपनियां अचानक सक्रिय हो गईं। उनके एमआर सेशन वाले भी दिन-रात भाग दौड़ में जुटे हैं। शूज कंपनियों की सक्रियता अचानक बढ़ी, तो कइयों के कान खड़े हो गए, लेकिन माजरा उनकी समझ में नहीं आया। हमने भी सूंघा-सांघी की तो पता चला कि जब से सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में शूज चर्चा में आए हैं, तब से कंपनियों को आस है कि पता नहीं कब उनकी कंपनी का शूज फेमस हो जाए। तभी तो कंपनियों के एमआर इस जुगाड़ में हैं कि लक्ष्मणगढ़ वाले गोविन्द जी और डूंगरपुर वाले गणेश जी भाई साहब के पैरों में साम, दाम, दण्ड और भेद से उनकी ही कंपनी के शूज शोभा बढाएं। पता नहीं, उनको, कब और किस पर फेंकना पड़ जाए।
फेंक रहे हैं, व्यंग्यों से भरी पिचकारी :
होली का त्योहार हो और हाथ वाले भाई लोग एक दूसरे पर पिचकारी नहीं छोड़ें, यह असंभव है। अब देखो ना राज के रत्न एक-दूसरे को रंग में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उन्होंने पूरे साल ही जब भी मौका मिला व्यंग्यों से भरे रंग की पिचकारियों से एक-दूसरे को खूब रंगा। कुछेक भाई लोगों को रंग नहीं मिला, तो क्रूड ऑयल से भरे गुब्बारे से भी काम चलाया। कई बार तो बड़ी चौपड़ का रंग फीका पड़ता दिखा, तो दिल्ली वाला रंग भी डाला गया। लाल रंग से भरी एक बाल्टी सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर रखी है, जिसमें से पिचकारियों में रंग भर कर दो नंबर साहब थमा रहे हैं। तो पीले रंग वाली बाल्टी सिविल लाईन्स में पेड़ से टंगी है, जिसमें अटारी वाले भाई साहब पीला रंग भर रहे हैं। राज के रत्न भी कम नहीं हैं। उनको इस बार की होली का बेसब्री से इंतजार है, क्योंकि इस बार राज के कई रत्न बाल्टी और पिचकारी दोनों ही बदलने के मूड में हैं। चूंकि बेचारे पूरे साल दो नावों में सवारी करते-करते अपने ही घुटने टेढ़े करवा बैठे। अब बुरा ना मानो होली है की आड़ में वे अपने मन की कसर पूरी करके दम लेंगे।
मार रहे हैं कंडे और उछाल रहे हैं कीचड़ :
इस बार राज के एक रत्न को होली भारी पड़ रही है। रत्न भी छोटे-मोटे नहीं बल्कि राजधानी वाले जिले की विधानसभा के इलाकों से ताल्लुकात रखते हैं और गाड़ी-घोड़े वाले महकमें के मुखिया हैं। जब से होली का डांडा रोपण हुआ है, तब से ही उनको गली मसखरे भी घेर कर मार रहे हैं कंडे-गोबर और उछाल रहे हैं कीचड़। उनकी किश्ती भी वहां डूब रही है, जहां पानी ही कम है। पूरे फाल्गुन के महीने में वे अपनों के ही निशाने पर हैं। रंगे हाथों पकड़ने वाले साहब लोगों ने उनके महकमें में कार्रवाई क्या की वे तो सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में भी पक्ष-विपक्ष के सदस्यों की पिचकारियों से निकली बौछारों के निशाने पर ही रहे। होली के रंगीलों की मानें तो उनकी खेमेबंदी की आदत की वजह से यार-दोस्त कीचड़ उछालने में कोई कमी नहीं छोड़ते।
बढ़े होली के रंगीले, घटे बहरूपिए :
होली का त्योहार हो और रंगीलों तथा बहरूपियों की चर्चा न हो, तो एक-दूसरे पर रंग फेंकने में मजा ही नहीं आता। सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में भी फाल्गुन के महीने में रंगीलों और बहरूपियों को लेकर चर्चा हुए बिना नहीं रहती। सत्ता पक्ष के सदस्यों में भी खुसरफुसर है कि सामने वालों में से किसी को रंगीला बनाना इस बार कतई आसान नहीं है, सो अपनों में से ही किसी एक को उपाधि देने में ही भलाई है। अपनों में बहरूपियों की तो वैसे ही कमी नहीं है, जो हर रोज कोई न कोई नया स्वांग दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। पंचायत में चर्चा है कि इस बार होली के रंगीलों की संख्या कुछ ज्यादा ही बढ़ी है।
एल. एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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