जाने राजकाज में क्या है खास

जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे के साथ-साथ कंट्री में भी ब्रेन गेम को लेकर चर्चा जोरों पर है। ब्रेन गेम भी और किसी ने नहीं, बल्कि जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब ने खेला है। उनके ब्रेन गेम को तो पॉवर गेम खेलने वाले छोटा भाई-मोटा भाई भी नहीं समझ सके।

चर्चा में ब्रेन गेम
सूबे के साथ-साथ कंट्री में भी ब्रेन गेम को लेकर चर्चा जोरों पर है। ब्रेन गेम भी और किसी ने नहीं, बल्कि जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब ने खेला है। उनके ब्रेन गेम को तो पॉवर गेम खेलने वाले छोटा भाई-मोटा भाई भी नहीं समझ सके। भाईसाहब भी बड़े अजीब हैं, अपनी जादूगरी से अपने दाएं हाथ से कब क्या ब्रेन गेम खेल लें, उनके बाएं हाथ तक को पता ही नहीं चलने देते। राज का काज करने वाले में चर्चा है कि भाईसाहब ने पहले तो ओपीएस का ब्रेन गेम खेल खेला और अब गरीबों को सस्ता सिलेण्डर का ऐलान कर ऐसा ब्रेन गेम खेला कि सामने वालों को सिर खुजलाने के सिवाय कोई चारा ही नजर नहीं आ रहा। अब सामने वालों की नींद तो इसलिए भी उड़ी हुई है कि अभी तो भाईसाहब का बजट भी आना बाकी है, उसमें भी कोई ना कोई ब्रेन गेम खेले बिना नहीं रहेंगे।

इंडिसिपलिन मीन्स इंडिसिपलिन
सूबे में हाथ वाले भाई लोगों में इन दिनों इंडिसिपलिन को लेकर जोरदार कानाफूसी है। हो भी क्यों ना, कई दिनों से भाई लोगों के पास इंडिसिपलिन के सिवाय कोई काम ही नहीं है। हाथ वाले भाई लोगों का एक खेमा तो दिन रात इंडिसिपलिन के सिवाय कुछ बोलता ही नहीं है। दिल्ली दरबार में जब भी कोई मीटिंग होती है, तो सिर्फ इंडिसिपलिन का मैसेज देने में कोई नहीं छोड़ते। लेकिन दिल्ली वाले भी एक कदम आगे हैं, उन्होंने भी संदेशा भिजवा दिया कि इंडिसिपलिन मीन्स इंडिसिपलिन होता है, चाहे वह तीन महीने पहले हुई हो या फिर 29 महीने पहले।  इस मैसेज को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

पढ़ो और जानो
भगवा वाले भाई लोगों में इन दिनों कंफ्यूजन कुछ ज्यादा ही है। कंफ्यूजन भी और किसी को लेकर नहीं, बल्कि फ्यूचर के लीडर को लेकर है। बेचारे वर्कर्स को समझ में नहीं आ रहा है कि किस लीडर को तरीके से सेल्यूट करें। हाथ जोड़ कर राम-राम करने से पहले भी अगल-बगल में देखना पड़ता है। गुजरे जमाने में पॉवरफुल रहा भगवा वालों का एकजुट यह सब चुपचाप देख रहा है। उसके लोग केवल आंखों ही आंखों में बात करते हैं, लेकिन कुछ समझ जाते हैं। मौका मिलने पर अपना मुंह भी खोल देते हैं कि हमारी आंखें पढ़ो और जानो, हमारी रजा क्या है, हर बात लफ्जों से हो तो मजा क्या है।

नाराज अफसर-असंतुष्ट वर्कर
राज के रत्नों ने अपने-अपने हिसाब से चार साल में काम करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। कुछेक ने तो अपनी दूसरी पीढ़ी को भी दिन-रात लगाया, ताकि काम में कोई कसर नहीं रहे। कसर किस बात की, यह तो अपने-अपने हिसाब से मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन रत्नों ने न दिन देखा और न ही रात। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि राज के रत्नों की ओर से इतने करने के बाद भी न तो अफसर राजी हैं और न ही वर्कर्स संतुष्ट हैं। अब कहने वालों का मुंह तो पकड़ा नहीं जा सकता और वो भी न आगा देखते और न ही पीछा। वो कहते हैं कि भविष्य की सोच कर ही तो राज के रत्न दिन-रात काम कर रहे हैं, पता नहीं अगली बार दूसरी पीढ़ी के लिए ऐसा काम करने का मौका मिले या नहीं।

डिफरेंस ऑफ ओपिनियन
राज में आजकल डिफरेंस ऑफ ओपिनियन का असर साफ दिखने लगा है। इससे कुर्सी के इंतजार में लाइन में खड़े लोग चिन्ता में ऐसे डूबे हुए हैं कि न तो उनको दिन में चैन है और न ही रातों को नींद आती है। सत्ता चलाने वाले भाईसाहब अनुभवी और पुराने लोगों के पक्ष में हैं, तो दिल्ली वाले कुछ भाई लोग अलग ही रास्ते पर चल रहे हैं। संगठन वाले साहब के समझ में नहीं आ रहा कि वह कौनसा रास्ता चुनें। उनकी ओपिनियन नए युवा लोगों के पक्ष में है। डिफरेंस आॅफ ओपिनियन के चलते कुछ राजनीतिक नियुक्तियां एक बार फिर लेट होती नजर आ रही हैं।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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