बनाइए कन्याओं को शक्ति रूपा
केवल कन्याओं को ही नहीं संपूर्ण महिला शक्ति को सम्मान से जीने का वातावरण मिले
अच्छी परंपराओं को निभाया जाना अच्छी बात है, लेकिन केवल परंपरा निर्वाह का दिखावा करना किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं है।
देश भर में नवरात्र चल रहे हैं। अष्टमी व नवमी पर कन्या पूजन की समृद्ध परंपरा है। देवी मां के भक्त इन कन्याओं के चरण धोते हैं, इन्हें भोजन कराते हैं, नए वस्त्र एवं उपहार आदि भेंट करपुण्य कमाते हैं। हर साल वर्ष में दो बार यह परंपरा निभाई जाती है, लेकिन कुछ प्रश्न हर बार पीछे छूट जाते हैं। यदि कन्याओं का सम्मान है तो फिर क्या वजह है कि उन्हें समाज में उनका उचित स्थान आज तक नहीं मिल पाया है और उनके शोषण के प्रकरण प्रकाश में आते रहते हैं।
अच्छी परंपराओं को निभाया जाना अच्छी बात है, लेकिन केवल परंपरा निर्वाह का दिखावा करना किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं है। आइए इन नवरात्रों में सार्थक नवरात्र एवं कन्या पूजन पर कुछ चिंतन करें। नवरात्रों में मां दुर्गा के नव रूपों का वंदन एवं पूजन करते हैं। भक्तों में मान्यता है कि देवी मां शक्ति का प्रतिरूप है और वह नौ अलग-अलग रूपों में ममत्व, वात्सल्य, पराक्रम, वीरता की प्रतिमूर्ति होने के साथ-साथ दुष्ट दलन एवं भक्तों की रक्षा भी करती हैं और उनके प्रतिरूप के रूप में ही कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है। जब उन्हीं शक्ति रूपा कन्याओं का शोषण होता है तो फिर उनके शक्तिरूपा होने पर संदेह होने के साथ-साथ उस समाज की नीयत पर भी संदेह होता है।
भूखे को भोजन कराना हिंदू धर्म में बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला माना जाता है और वर्ष में लोग कई ऐसे अवसर निकाल ही लेते हैं, जिसमें यह सब पुण्यकार्य करते हैं और उससे आत्मिक शांति का अनुभव भी करते हैं, लेकिन वर्तमान संदर्भ में यदि नवरात्र को देखें तो इसमें अमूमन संपन्न घरों की आस पड़ोस की बच्चियों को ही जिमाया जाता है। कहीं कूड़ा बीनती, सफाई का कार्य करती या दूसरों के घरों में काम करने वाली बाइयों की बच्चियों को बहुत कम ही जीमते हुए देखा गया है। ऐसा कन्या भोज कितना उचित है,आज इस पर विचार मंथन एवं चिंतन की जरूरत है। भक्तजन नवरात्रों में देवी मां का वंदन करते हैं और कामना करते हैं कि मां हम पर अपनी करुणामयी दृष्टि रखेंगी और वे रखती भी हैं। कहा जाता है कि मां से बड़ा कृपालु, दयावान और करुणामयी कोई दूसरा हो ही नहीं सकता और मां कभी अपने बच्चों से नाराज नहीं हो सकती। अगर हो भी जाए तो वह किसी भी रूप में उनका अहित न स्वयं करती हैं और न ही किसी और को करने देती हैं। इसलिए यदि किसी वजह से व्रत उपवास न कर पाएं या कन्या जिमाने का कार्य न कर पाएं, तो मां नाराज हो जाएंगी। निश्चित ही मां नाराज नहीं होंगी, लेकिन जब वह अपने बच्चों को कुछ सार्थक करते हुए देखेंगी तो कहीं अधिक प्रसन्न होकर अधिक कृपा की वर्षा करेंगी।
समय की मांग है कि हम नवरात्र समय, काल, देश और परिस्थिति के अनुसार थोड़ा हटकर मनाएं। यदि केवल दिखावे के लिए या पुण्य कमाने के लिए कन्या पूजन करेंगे तो अपशकुन तय है । इसलिए सावधानी बरतें। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि बहुत अधिक खाना या खाने में बहुत अधिक चिकनाई अथवा मुश्किल से पचने वाले पदार्थ का होना स्वास्थ्य खराब कर सकता है और बच्चियां तो बहुत छोटी होती हैं। नवरात्रों में इन कन्याओं को एक नहीं कई कई घरों में जीमते हुए देखा जा सकता है। अब बच्चों को तो अधिक ज्ञान नहीं, मगर यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें बीमारी का शिकार न बनने दें। बजाय पकवान बनाने के पोषक तत्वों वाला संतुलित खाना उन्हें परोसें। इससे भी बेहतर हो कि उन्हें ड्राई फ्रूटस आदि देने की परंपरा शुरू करें, ताकि उन्हें सही पोषण भी मिल सके। इससे भी बढ़कर कन्या जिमाने के पीछे का सबसे बड़ा भाव होता है बालिकाओं को सम्मान देना। इसलिए सामाजिक रूप से ऐसा वातावरण तैयार करें कि केवल कन्याओं को ही नहीं संपूर्ण महिला शक्ति को सम्मान से जीने का वातावरण मिले।
आप दूसरे तरीके से दान करके भी पुण्य कमा सकते हैं, अनेक ऐसे लोग हैं जो गरीबी के चलते पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं ले पा रहे हैं। इसके लिए आप अपने आसपास की किसी भी धार्मिक संस्था या एनजीओ को यह बता दें कि आप कितने लोगों को भोजन या वस्त्र आदि दान करना चाहते हैं और ऐसे में नियत समय पर आकर उनका प्रतिनिधि आपसे वह भोजन वस्त्र ले जाए तथा उस भोजन को जरूरतमंदों को दें। साथ ही अपनी श्रद्धा के अनुसार उपयुक्त दक्षिणा भी उस संस्था को दान दे सकते हैं। इससे उन्हें काफी मदद मिलेगी और कन्या पूजन भी हो जाएगा। इस लेख का मंतव्य धार्मिक मान्यताओं को नकारना नहीं, अपितु समय, काल एवं परिस्थिति के अनुसार उन्हें और अधिक सार्थक बनाने का है। इसलिए बच्चियों को दक्षिणा में नकद पैसे न देकर यदि उनके लिए स्कूल की यूनिफॉर्म, किताबें उनके लिए पढ़ाई लिखाई का सामान अथवा उनके खाने-पीने की ऐसी वस्तुएं दें, जो लंबे समय तक प्रयोग में ला सकें तो शायद नवरात्र कहीं अधिक सार्थक होगा। इन सब से भी बढ़कर हमें बजाय उन बच्चों को जिमाने या पूजने के जो पहले से ही संपन्न घरों से संबंध रखते हैं और जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं, हम स्कूलों के माध्यम से, सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से ऐसे बच्चों की मदद करें, जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है। उम्मीद है जिन कन्याओं को आप पूज रहे हैं,उन्हें ऐसा उपहार कदापि नहीं दें जो नुकसान करें।
-डॉ.घनश्याम बादल
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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